फर्रुखाबाद: हिन्दी के प्रख्यात कवि मुन्शी प्रेमचन्द्र जिन्होंने एक पुस्तक में लिखा हिन्दुस्तान का व्यक्ति रेल का डिब्बा है। बस उसे इंजन की जरूरत है। इंजन में फंसने के बाद फिर यह डिब्बे जिस दिशा में चाहो ले जा सकते हो। संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसे कोई न कोई परेशानी न आती हो। जो व्यक्ति पूरी तरह से सुखी और सम्पन्न है उसे इस संसार में रहने का कोई अधिकार नहीं ऐसा ग्रन्थ कहता है। क्योंकि दुनियां में हर व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार से कोई न कोई समस्या जरूर रहती है। फिर वह समस्या चाहे संतान को लेकर हो, पैसे को लेकर हो, बीमारी को लेकर हो, कानूनी दाव पेच को लेकर हो, पुलिस थानों के चक्कर को लेकर हो, राजनीतिक हार को लेकर हो, धन्धे में बरक्कत को लेकर हो या अपनी इच्छा पूर्ति के अनुसार कार्य करने को लेकर हो। किसी न किसी प्रकार से आदमी अपनी समस्याओं में उलझा हुआ है।
कभी फर्रुखाबाद में भी निर्बल बाबा थे| नाम है कन्हैया लाल शाक्य| लाखो की भीड़ में से खींच के जेल की सलाखों के पीछे ऐसे पहुचाये पुलिस ने कि २५ साल पुँराना दर्द आज भी जिन्दा है मगर कन्हैया लाल ने छत पर खड़े होकर सार्वजनिक दुआ से तौबा कर ली| अब निर्मल बाबा है जो हांगकांग सिंगापूर घूम रहे है| इन्होने पैसे लेकर दुआ बाटी सो सब जायज है| यहीं पर चूक कर दी थी कन्हैया लाल ने बेचारे मुफ्त में लाखो लोगो को हर रविवार कृपा से नवाज रहे थे|
टेलीविजन में कुछ समय पूर्व काफी चर्चा में रहे कृपा बरसाने वाले निर्मल बाबा ऐसी ही समस्याओं का इलाज बड़े ही सहज भाव से हाथ हिलाकर करते थे। जिनके पास हजारों की भीड़ अपनी समस्याओं को लेकर उमड़ती थी। लेकिन धीरे-धीरे निर्मल बाबा की कमियां पकड़ में आने के बाद स्थिति डगमगा गयी और निर्मल बाबा के भक्तों का ग्राफ गिरने लगा। बाबा पर कई केस दर्ज हो गये। कृपा तो बाबा अभी भी कर रहे हैं लेकिन उन पर यही दो लाइनें सटीक बैठती हैं-
दिल रो रहा मगर आंख नम नहीं,
दुनियां यह समझ रही कि मुझे कोई गम नहीं।
विदित हो कि फर्रुखाबाद में निर्मल बाबा से भी कहीं ज्यादा चर्चा में एक बार एक प्राइमरी स्कूल का मास्टर कन्हैयालाल निवासी पपियापुर ऐसा आया कि पुलिस प्रशासन तो छोड़िये जिलाधिकारी, आईजी, डीआईजी सबकी नाकों से चने फुड़वा दिये। बात तकरीबन आज से तकरीबन 18 वर्ष पहले शहर क्षेत्र के पपियापुर में मास्टर कन्हैयालाल ने दुखी, बीमार लोगों का इलाज दुआ देकर शुरू किया। कन्हैयालाल का मानना था कि वह किसी से दो रुपये नहीं लेते थे। कन्हैयालाल के पास पहुंचे जेएनआई के रिपोर्टर ने जैसे ही उनसे पूछा कि मास्टर साहब क्या आजकल भी दुआ दे रहे हो, कैमरा ओन करते ही मास्टर साहब एकदम से हरकत में आ गये और हाथ फटकारते हुए बोले। सुनो! मैं मास्टर नहीं बोल रहा मैं बड़े पीर साहब बोल रहा हूं। मास्टर मेरा चार जन्मों का पुजारी है। मेरा जन्म बगदाद में हुआ था। मेरे पिता बचपन में ही गुजर गये थे। मैं इतना सच्चा और ईमानदार था कि अल्लाह ने मुझे बड़े पीर साहब बना दिया और अब मैं मास्टर कन्हैयालाल को अपना सेबक बनाये हुए हूं।
इसके बाद कन्हैयालाल अपनी पूर्व स्थिति में आ गये और पुरानी यादों में खो गये। 18 साल पहले पपियापुर का नाम शायद गिनीज वर्ड रिकार्ड में दर्ज होने वाला था। जो भीड़ उमड़ती थी वह बाकई में ताज्जुब था। प्रतिदिन तकरीबन लाखों की संख्या में व्यक्ति अपना इलाज करानेमास्टर कन्हैयालाल के यहां पहुंचता था और कन्हैयालाल अपने दो मंजिला इमारत पर खड़े होकर लोगों को ठीक होने की दुआयें हाथ हिलाकर देते थे। दिनों दिन फैल रही ख्याति को देखकर कन्हैयालाल के पड़ोसियों को जलन महसूस होने लगी और हो भी कैसे नहीं। आने वाली भीड़ ने दो चार गांवों तक की फसलें चौपट कर दीं। इस बात की शिकायत पुलिस प्रशासन से की गयी। पुलिस प्रशासन के आंखों में पहले से ही कन्हैयालाल खटक रहा था। क्योंकि आये दिन बढ़ रही भीड़ पुलिस प्रशासन के लिए सिरदर्द बन गयी थी। पुलिस ने 1996 में कन्हैयालाल को गिरफ्तार कर लिया और भीड़ से बचने के लिए कन्हैयालाल को 13 मार्च 1996 में बरेली जेल भेज दिया। 22 मई 1996 को कन्हैयालाल को वेल मिल गयी। मुकदमा अभी भी चल रहा है। लेकिन उस गिरफ्तारी का असर आने वाले लोगों पर ऐसा पड़ा कि फिर भीड़ छंटती ही चली गयी और जिन रास्तों पर सरसों रखने तक की जगह नहीं रहती थी। पपियापुर के वह रास्ते जो मास्टर कन्हैयालाल के दरबाजे तक जाते थे अब बिलकुल सूनसान रहते हैं। मुकदमा अभी भी चल रहा है। कई मुकदमें छूट भी चुके हैं और मास्टर कन्हैयालाल अब पद से सेवानिवृत्त होने के बाद घर पर ही सामान्य जीवन बिता रहे हैं।
एकदम से चमका पपियापुर गांव का मास्टर सिर्फ आंखों में आंसू भरकर अपने उन आस पास वालों के बारे में बताकर अचानक फफक पड़ा और बोला कि मैने इन लोगों का क्या बिगाड़ा था। मैं तो किसी से पैसे भी नहीं लेता था। अनायास ही कन्हैयालाल के मुहं से शब्द निकले –
नजरें हैं नींचीं और सर झुकाये बैठे हैं,
लगता है वो कोई मन्जर छुपाये बैठे हैं।
क्या नसीहत दें किसी को आशियाने की,
हम तो खुद ही अपना घर जलाये बैठे हैं।
करीबी लोगों से जरा सी दूरियां बनाकर रखना,
वो भोली मुस्कान के पीछे खंजर छुपाये बैठे हैं।
दुश्मन करे दगा तो इतना दर्द नहीं होता,
हम तो अपनों से ही चोट खाये बैठे हैं।
अभी भी रविवार को देते हैं कन्हैयालाल मरीजों को दुआ
रिटायरमेंट होने के बाद कन्हैयालाल अपने निवास पपियापुर में मरीजों को अभी भी रविवार के दिन बीमारियों से निजात दिलाते देखे जा सकते हैं। लेकिन न अब वह भीड़ रह गयी और न ही शायद दुआ का असर। जेएनआई रिपोर्टर के सामने कन्हैयालाल मरीजों को देखकर बोल रहे थे, क्या हुआ- महिला बोली बाबा जी हाथ में दर्द है। कन्हैयालाल बोले- ठीक है बैठ कर खड़ी हो जाओ, अब हो रहा है। महिला- हां अब तो सही हो गया। तब तक दूसरी महिला बीच में बोल पड़ती है- बाबा जी मेरा सिर चकराता रहता है, चक्कर से आते रहते हैं- बाबा बोलते हैं हाथ में गड़ा ताबीज तो नहीं बांधे हो- महिला बोली हां बाबा बांधे हैं। बाबा- इसको खोल दो तभी तो दर्द बंद नहीं हो रहा। खोलने के बाद बाबा पूछते हैं – अब आराम मिला। महिला बोली- नहीं बाबा अभी भी हो रहा है। बाबा बोले- यह बताओ किसी देवी देवता को घंटा इत्यादि बोला था। महिला थोड़ी देर सोचने के बाद – हां बाबा बोला तो था। बाबा- चढ़ाया। महिला- अभी कैसे चढ़ा दें बाबा अभी तो मेरी मन्नत ही पूरी नहीं हुई। मन्नत पूरी हो या न हो घंटा चढ़ा देना सर का दर्द बंद हो जायेगा। पूरी अदा कन्हैयालाल की निर्मल बाबा की तरह नजर आ रही थी। ऐसा कर देना लेकिन जिन मरीजों ने सामने ही तुरंत बोल दिया कि दर्द बंद हो गया यह बाकई में हैरतअंगेज बात थी। मरीज सच बोल रहे थे या बनावटी यह तो भगवान ही जानता होगा। फिलहाल कन्हैयालाल इस समय अटल की तरह प्रसिद्ध होने के बाद अब गर्दिश के दिन काट रहे हैं और दो चार आने वाले लोगों को कृपा…………………….
दीपक शुक्ला की कलम से……….