फर्रुखाबाद: वर्तमान में जनपद की कानून व्यस्था की स्थिति किसी ऐसे मरीज की सी है जो मानों किसी अस्पताल के आईसीयू में पड़ा वेंटीलेटर पर सांसे ले रहा हो। जिसके शरीर के सारे मूवमेंट डाक्टरों व उनके स्टाफ की अनुमति पर निर्धारित हों। उसे यदि प्राकृतिक आवश्यकताओं का भी आभास हो तो डाक्टर के कहे अनुसार अपना भ्रम समझ कर उसे भूल जाये। पाठकों से क्षमा की अपेक्षा है, क्योंकि इससे अधिक कुछ कहने की अनुमति पत्रकारिता के मानक नहीं देते हैं।
जनपद में तैनात सीधी भर्ती के युवा आईपीएस अधिकारी नीलाब्जा चौधरी से जनपद वासियों को बड़ी उम्मीदें थी। जनपद के तेजतर्रार जिलाधिकारी मुथु कुमार स्वामी के साथ उनकी टीम के प्रदर्शन की लालसा जनपद वासियों के दिल में ही रह गयी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लाख लखनऊ में बैठ कर स्वच्छ प्रशासन की दुहाई देते रहें। अधिकारियों को सीधे तौर पर कानून व्यवस्था में सुधार की सीख देते रहें। परंतु धरातल पर स्थिति बद से बदतर हो रही है। हाल कि दिनों में सत्तारूढ दल से जुड़े जाति विशेष के लोगों के कहर के कारण अन्य छोटी जातियों के लोगों के गांव छोड़कर पलायन करने तक की स्थितियां बन चुकी हैं। हत्या, लूट, चोरी जैसी घटनाओं में आशातीत वृद्धि हुई है। हो सकता है पुलिस अधीक्षक कार्यालय के आंकड़े इन तथ्यों को नकार दें परंतु वास्तविक स्थिति यही है।
कहते हैं कि कानून व्यवस्था पुलिस के “इकबाल” से चलती है। इकबाल सुरक्षा बलों की संख्या से नहीं अपितु दोषियों के विरुद्ध उदाहरण-योग्य कार्रवाई से बनता है। परंतु जब जनता में यह संदेश जाने लगता है कि प्रशासन की अपनी कोई मर्यादा नहीं है, वह तो किसी चौखट का गुलाम है, तो फिर जनता का विश्वास व्यवस्था से उठने लगता है। इसका परिणाम या तो मजलूमों का पलायन होता है या विद्रोह। हर विद्रोह सशस्तत्र ही नहीं होता। कुछ विद्रोह पांच साल बाद चुनाव में भी अपना असर दिखाते हैं। परंतु यह मानता कोई नहीं है। न कल्याण सिंह ने माना, न मायावती ने माना और न ही लगता है कि अखिलेश यादव मानने को राजी हैं।
शनिवार को थाना शमसाबाद के ग्राम अकबरपुर दामोदर में यादवों के कहर के कारण शाक्य विरादरी के कई घरों के लोग पलायन कर गये। पलायन, अपना घर छोड़कर जाने का निर्णय कोई परिवार केवल जान और महिलाओं की आबरू जाने की स्थिति में ही करता है। स्थिति जब यह आ जाये कि ग्रामीण पुलिस अधीक्षक के पास शिकायत करने जायें, और परिणाम स्वरूप उनकों ही संगीन आरोपों में अंदर कर दिया जाये तो, व्यवस्था से विश्वास उठ जाना लाजिमी है। मजे की बात है कि थानाध्यक्ष केवल शांतिभंग की कारर्वार् कर व अपर पुलिस अधीक्षक इसको केवल मीडिया की प्रायोजित खबर कह कर टाल जाते हैं। यह बात तब और ज्यादा खतरनाक हो जाती है जब मुश्किल से तीन सप्ताह पूर्व ही जनपद के राजेपुर के खाकिन के ग्राम कटैला में इसी प्रकार की घटना पर प्रशासन की फजीहत हो चुकी हो।
जाति विशेष के लोगों के कहर के आगे दूसरी बिरादरी के लोगों के गांव छोड़ कर पलायन कर जाने की इन दो घटनाओं में ग्रामीणों ने जो निर्णय लिया वह कोई क्षणिक निर्णय नहीं है। प्रशासन के प्रति अविश्वास और निराशा की भावना की यह नींव पूर्व में हुई छिटपुट घटनाओं से पहले ही पुख्ता हो चुकी थी। विगत माह कायमगंज में एक व्यक्ति की उसके घर में हत्या कर दी गयी। मृतक की संदिग्ध गतिविधियां व उसकी दूसरी पत्नी के संदिग्ध चरित्र की कहानी हर जुबान पर होने के बावजूद घटना स्थल पर ही दूसरे दिन लूट हो गयी। पूरे क्षेत्र में थानाध्यक्ष की भूमिका व उनके पूर्व तैनातियों के दौरान रहे क्षेत्रीय लोगों से संबंधों की चर्चा आम होने के बावजूद कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया। इसी माह की शुरूआत में शहर में दिन दहाड़े एक व्यापारी से चार लाख रुपये की लूट हो गयी। पुलिस टापती रह गयी। कचहरी की हवालात से आठ शातिर अपराधी फरार हो गये, जिनमें से पांच अभी भी पुलिस की गिरफ्त से दूर हैं। चुनाव के दौरान एक दबंग सभासद प्रत्याशी ने घर में घुस कर तोडफोड़ कर दी। नमजद रिपोर्ट के बाद भी कुछ नहीं हुआ। केंद्रीय कारागार के दो बंदी रक्षकों को स्थानीय लोगों ने मारपीट कर हड्डी पसली तोड़ दी, नमाजद रिपोर्ट के बावजूद नतीजा ढाक के वही तीन पात। थाना मऊदरवाजा में दिन दहाड़े एक बाइक सवार कोटेदार की हत्या कर दी गयी। नमाजद रिपोर्ट पर कार्रवाई….। पुलिस के लिये इससे ज्यादा शर्मनाक क्या होगा कि एक महिला कांस्टेबिल के सरकारी आवास से उसकी वर्दी व नगदी-जेवर चोरी हो गये। यह बानगी तो वह है जो बिल्कुल ताजी है व पाठकों की याद्दाश्त में होगी।