अक्षय तृतीया पर जन्‍में भगवान परशुराम ने पिता के आदेश पर मां का सर काट लिया था

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 मां की आज्ञा का पालन करने वाले तो कई बेटे हुए लेकिन परशुराम ऐसे बेटे थे जो मां से अधिक पिता की आज्ञा मानते थे। अक्षय तृतीया के दिन शाहजहांपुर में पैदा हुये परशुराम ने अपने पिता के कहने पर अपनी मां का सिर काट दिया था। पौराणिक कथाओं में परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार कहा गया है और उनके जन्म दिवस से ही वर्ष की शुरूआत मानी जाती है।

भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। परशुराम का जन्म भले ही पड़ोसी शाहजहांपुर जिले के जलालाबाद में हुआ हो मगर उनकी कर्म एवं तपोभूमि जौनपुर जिले का आदि गंगा गोमती के पावन तट पर स्थित जमैथा गांव ही रहा जहां उनके पिता महर्षि यमदग्नि ऋषि का आश्रम आज भी है। उन्हीं के नाम पर जौनपुर जिले का नाम यमदग्निपुरम पड़ा था लेकिन बाद में लोगों ने इसे जौनपुर कहना शुरू कर दिया।

परशुराम यमदग्नि और रेणुका की संतान थे। इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चला कि एक बार उनके पिता ने मां का सिर काट देने की आज्ञा दी। पिता की आज्ञा को मानते हुये उन्होंने पलक झपकते ही मां रेणुका का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद ऋषि यमदग्नि ने परशुराम से कहा कि वरदान मांगों इस पर उन्होंने कहा कि यदि वरदान ही देना है तो मेरी मां को पुन: जीवित कर दों इस पर पिता यमदग्नि ने रेणुका को दोबारा जीवित कर दिया। जीवित होने के बाद रेणुका ने कहा कि परशुराम तुमने मां के दूध का कर्ज अदा कर दिया। इस प्रकार पूरे विश्व में परशुराम ही ऐसे व्यक्ति हैं जो मां और बाप दोनों के रिण से उरिण हुये।

परशुराम के गुरू भगवान शिव थे। उनसे उन्हें आर्शीवाद स्वरूप फरसा मिला था। महर्षि यमदग्नि ऋषि जमैथा स्थित अपने आश्रम पर तपस्या करते थे। आसुरी प्रवृत्ति का राजा कीर्तिवीर उन्हें परेशान करता था। यमदग्नि ऋषि तमसा नदी के किनारे बसे आजमगढ़ गये जहां भृगु ऋषि रहते थे।

उन्होंने यमदग्नि को अयोध्या जाने और राजा दशरथ के दो पुत्र राम लक्ष्मण की सहायता लेने की सलाह दी। यमदग्नि ऋषि अयोध्या गये और राम लक्ष्मण को अपने साथ लाये। राम लक्ष्मण ने कीर्तिवीर को मारा और गोमती नदी में स्नान किया तभी से इस घाट का नाम रामघाट हो गया। भगवान परशुराम ने तत्कालीन आसुरी प्रवृति वाले क्षत्रियों का ही वध किया था। जौनपुर के जमैथा में अभी भी उनकी मां रेणुका का मंदिर है जहां लोग पूजा अर्चना करते हैं।