फर्रुखाबादः शहरीकरण व आधुनिकता की दौड़ में कच्ची ईंटों के मकान, झोपड़ीनुमा घरों के साथ ही घरों के कच्चे मकानों व छप्पर/झोपड़ियों में रहने वाली चिड़िया भी अब विलुप्त होने जा रही है। सुबह चूं-चूं कर आंगन में आ जाने वाली चिड़िया अब तो बागों व उद्यानों तक में नहीं दिखती है।
दिनों दिन बढ़ रही जनसंख्या के साथ ही रहने के लिए अधिक आवासों की आवश्यकता होने लगी है। जिससे बड़ी-बड़ी झोपड़ियों की जगह पक्की ईंटों से बने छोटे-छोटे फ्लेटों का जमाना आ गया है। ऐसे में इन घरों में चिड़िया तो बड़ी होती है चीटी भी नजर नहीं आती। शहर को तो छोड़िये ग्रामीण क्षेत्रों में भी पक्षियों ने पलायन शुरू कर दिया है। कुछ वर्ष पहले आसमान में मड़राने वाला गिद्ध अक्सर मृत जानवरों को खाते झुण्ड के साथ देखा जा सकता था। लेकिन अब कई वर्ष से इन गिद्धों के झुण्ड तो दूर की बात एक गिद्ध देखने को नहीं मिल रहा है। जानकारों की माने तो इनकी विलुप्ति का मुख्य कारण खेतों में छिड़काव की जाने वाली जहरीली दवाई है। जिसको पशु खाकर मरे और उस पशु का मांस खाकर गिद्ध की प्रजाति लुप्त प्राय हो गयी।
यही हाल है घरों में चूं-चूं कर सबेरा करने वाली चिड़िया हुर्रइया का है। जो कुछ वर्षों पूर्व कच्ची ईंटों से बने घरों की दीवारों के अंदर सुराख बनाकर अपने घोंसले बनाकर रहती थी और सुबह-सुबह घर के आंगन में आकर पड़े अनाज के दानों को बड़े ही चाव से खाती थी। वहीं झोपड़ियों/छप्परों में छोटे-छोटे घोसले बनाकर यह चिड़िया रहती थी। तो दादी मां भी इन्हीं चिड़ियों पर बच्चों को लोरियां व कहानियां सुनाकर गुदगुदाया करती थीं।
लेकिन अब टेलीविजन व आधुनिकता की दौड़ में न दादी मां की लोरियां रहीं और न चिड़िया वाली राजा रानी की कहानी। अब तो बच्चे भी हाईटेक हो गये हैं। यह चिड़िया (हुर्रइया) अब बिलकुल विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी है। अगर शीघ्र ही इसको संरक्षण न मिला तो यह भी गिद्धों की तरह बच्चों को किताबों में ही दिखायी देगी।
ऐसी ही स्थिति तोते की प्रजाति के साथ हुई। सुबह तकरीबन 6 बजे और शाम तकरीबन 5 बजे तोतों के बड़े-बड़े झुण्ड आसमान में गुजरते देखे जाते थे। लेकिन अब पेड़ों के कटने व उनके खाने के पसंद वाले आम पर जहरीली दवाइयों के छिड़काव से ये तोते भी विलुप्ति के कगार पर हैं।
वहीं गांव के नींव पर झुण्डों के साथ बैठने वाले बगुले का भी है जो अब कम ही देखने को मिल रहे हैं। वहीं गांवों में अपनी आवाज व शिकार के लिए मशहूर तीतर तो अब किताबों में ही रह गये हैं। ऐसी और भी कई प्रजातियां हैं जो विलुप्त होने की कगार पर हैं।
भारत में पाई जाने वाली आठ गिद्ध प्रजातियों में सात की उपस्थिति पन्ना टाईगर रिजर्व में दर्ज की गई है इसके अलावा टाईगर रिजर्व में गत वर्ष हुई गिद्धों की गणना के मुकाबले करीब 427 गिद्ध अधिक पाए गए हैं। ये नतीजे 21 से 23 जनवरी तक चली गिद्धों की गिनती के बाद सामने आए हैं। वर्ष 2004 तक यहाँ इजिप्शिन वल्चर, लागविल्ड वल्चर, रेड हेडेड वल्चर और व्हाईट बैक्ड वल्चर भी देखे जाते रहे हैं। फरवरी 2010 में हुई गिद्धों की गिनती में पहली बार उक्त चार प्रजातियों के अलावा हिमालयन वल्चर और सिरेनियश वल्चर देखने आया था। इस साल यहाँ यूरेशियन ग्रिफान वल्चर पहली बार देखने में आया है। गिद्धों की गणना के दौरान गणनाकर्ताओं द्वारा सातों प्रजातियों की प्रमाणिक उपस्थिति साबित करके इनकी फोटोग्राफी की गई है। 21 जनवरी से जारी गिद्धों की गणना रविवार को समाप्त हो गई। इसमें 54 प्रतिभागियों सहित एक पर्यवेक्षक ने स्वैछिक भाग लिया। इनमें से 34 वालेंटियरों में से 17 महाराष्ट्र् से आए थे। कुल वालेंटियरों में से 11 महिलाएँ भी थीं। गिद्धों की गिनती करने वाले सभी प्रतिभागियों ने निजी व्यय पर उपस्थित होकर गिद्धों की गणना की। पन्ना टाईगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक आर.श्रीनिवास मूर्ति के अनुसार गणना कार्यक्रम फे्रन्डस आफ पन्ना टाईगर रिजर्व द्वारा आयोजित किया गया था। यह संस्था पन्ना टाईगर रिजर्व द्वारा प्रायवेट पब्लिक पाटर्नरशिप पर गठित की गई है। गणना के लिए टाईगर रिजर्व में गिद्धों के 26 आवासीय स्थान चिन्हित किए गए हैं। इन पर दो-दो प्रतिभागियों की टीम बनाकर उसी क्षेत्र की वन्य चैकियों में वन्य जीवों के बीच रूकने की व्यवस्था की गई थी। गणना प्रातः साढ़े सात बजे से आरंभ हो जाती थी। श्री मूर्ति ने बताया कि गणना कार्य में पगडंडी कंजरवेशन सेल मड़ला के दो नेच्युरलिस्ट, टाईगर रिजर्व के 15 गाईड, भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के तीन अन्वेषकों ने भी भाग लिया। फ्रेन्डस आफ पन्ना टाईगर रिजर्व द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मप्र राज्य पर्यटक विकास निगम सह प्रायोजक था।
पन्ना टाईगर रिजर्व के उपसंचालक विक्रमसिंह परिहार के अनुसार फरवरी 2010 में गिद्धों की गिनती में 6 प्रजाति के साढ़े छः सौ गिद्ध पाए गए थे। इस साल संख्या में बढ़कर 1077 हो गई है। एक नई प्रजाति के गिद्ध भी देखने को मिले हैं। गिद्धों के कुल 26 आवासीय स्थल चिन्हित किए गए थे। जिनमें से एक स्थान की रिपोर्ट अप्राप्त है। चार स्थानों पर गिद्ध नहीं मिले। केवल 21 स्थानों पर गिद्ध दिखे। गिद्धों की गणना में उनके चूजे शामिल नहीं किए गए।