अब छोटे शहरों की ओर मल्टीप्लेक्स इंडस्ट्री का रुख

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छोटे-छोटे शहरों में मल्टीप्लेक्स में फिल्में देखने के लिए लोग बड़े शहरों जैसा ही पैसा खर्च कर रहे हैं। यही वजह है कि छोटे शहरों में मल्टीप्लेक्स खोलने के लिए कई कंपनियां मैदान में उतर रही हैं। जबकि बड़े शहरों में कम ऑक्यूपेंसी रेट (प्रतिदिन किसी मल्टीप्लेक्स में आने वाले लोगों की औसत संख्या) इन शहरों के मल्टीप्लेक्स के लिए चिंता का विषय हैं।

कुरुक्षेत्र, अजमेर, रांची, भिलाई, बोकारो, मुजफ्फरपुर, रायपुर, देहरादून, बिलासपुर जैसे गैर मेट्रो शहर अब मल्टीप्लेक्स शुरू करने वाली कंपनियों के निशाने पर हैं। फिलहाल, मौजूदा मल्टीप्लेक्स में से ज्यादातर देश के 8 सबसे बड़े शहरों में सीमित हैं। देश में करीब 11,000 सिनेमा हॉल में से 1000 मल्टीप्लेक्स स्क्रीन हैं। इन मल्टीप्लेक्स स्क्रीन में करीब 750 इन 8 बड़े शहरों (दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, मुंबई, अहमदाबाद, हैदराबाद, पुणे और बेंगलुरु) में ही हैं जबकि सिर्फ 250 के करीब मल्टीप्लेक्स छोटे शहरों के खाते में हैं।

देश के इन्हीं छोटे शहरों में ग्लिट्ज सिनेमा नाम से करीब 22 मल्टीप्लेक्स स्क्रीन चला रही कंपनी स्टारगेज एंटरटेनमेंट के प्रबंध निदेशक सुमंत भार्गव कहते हैं, ‘हम छोटे शहरों में ही विकास की संभावनाएं देख रहे हैं। बड़े शहरों में मल्टीप्लैक्सेस की भीड़ की वजह से इस धंधे में भारी प्रतिस्पद्र्धा है जबकि छोटे शहरों में अभी तक का हमारा अनुभव काफी उत्साहवद्र्धक रहा है। हम इस जून तक कुछ नए शहरों में 9 नए मल्टीप्लेक्स स्क्रीन शुरू कर देंगे।’

दरअसल, देश के मल्टीप्लेक्स मालिकों की प्रतिनिधि संस्था ‘मल्टीप्लेक्स ओनर्स एसोसिएशन’ मल्टीप्लेक्स चलाने वालों पर मनोरंजन कर, सेवा कर, वैट जैसे कई करों के बोझ का हवाला देकर खुद के लिए रियायतें मांगती रही है और आरोप लगाती है कि एक तरफ सरकार चाहती है कि देश में सिनेमा हॉल की संख्या में बढ़ोतरी हो लेकिन दूसरी तरफ इस इंडस्ट्री को करों के बोझ से लगातार दबाए रखती है।

हाल में योजना आयोग की एक समिति ने भी आबादी की तुलना में कम सिनेमा हॉल का रोना रोया था। मल्टीप्लेक्स ओनर्स एसोसिएशन के एक प्रतिनिधि ने कहा कि नतीजतन सिनेमा हॉल मालिक फिल्म के टिकटों की दरें बढ़ाते हैं और इसका भार दर्शकों पर पड़ता है और मल्टीप्लेक्स जाकर फिल्में देखने वालों की संख्या में गिरावट आती है।

लेकिन सुमंत भार्गव दावा करते हैं कि इस सच्चाई के बावजूद, छोटे शहरों में ज्यादा पैसे देकर फिल्में देखने वालों की कोई कमी नहीं है। भार्गव के अनुसार, छोटे शहरों के उनके मल्टीप्लेक्स में सबसे महंगी ‘गोल्ड क्लास’ की सीटें (500 रुपये प्रति टिकट) सबसे पहले फुल होती हैं जबकि औसत टिकट दरें 140 रुपये है।