पांच वर्ष पूर्व सपा से इस्तीफ़ा देने का दंश आज भी साल रहा है उस्ताद को……………

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फर्रुखाबाद: विजय सिंह चुनाव तो फिर जीत गए लेकिन लगता है कि 2007 में सपा छोड़ने का दंड उन्हें इस बार भी भुगतना पड़ेगा। इस बार सपा सरकार बना रही है और विजय सिंह चुनाव जीतने के बाद भी सपा से दूर हैं। सियासत के उस्ताद विजय सिंह किस तरह सपा से नजदीकी बना पाते हैं यह तो समय ही बताएगा।

 

बताते चलें कि विजय सिंह 2007 का चुनाव सपा से ही जीते थे और बसपा सरकार बनी तो सपा से इस्तीफ़ा दे बैठे। उस समय भी उन्हें तमाम विरोधों के वावजूद सपा की टिकट मिल पायी थी। उपचुनाव में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने राजेपुर की सभा में कहा भी था कि उन्हें बहुत लोगों ने धोखा दिया पर इतनी जल्दी किसी ने धोखा नहीं दिया जितनी जल्दी विजय सिंह ने दिया। ऐसा नहीं कि विजय सिंह ने किसी पार्टी से टिकट लेने का प्रयास नहीं किया। किसी पार्टी से टिकट न मिलने पर ही निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। अब कैसा समीकरण बना कि सपा की सरकार बन रही है और विजय सिंह सपा से बहुत दूर हैं। ऐसे में विजय सिंह खुद सोंच रहे होंगे कि अगर उन्होंने सपा न छोड़ी होती तो वे आज किस जलबे के मालिक होते। सपा छोड़ने के उनके फैसले ने उनके राजनीतिक जीवन में कितने हिचकोले लाया यह सभी जानते हैं।

 

विजय सिंह ने अपना सियासी सफ़र 21 फरवरी 2002 को राक्रांपा के समर्थन से निर्दलीय विधायक चुनकर शुरू किया था। इससे पहले वह अपनी पत्नी दमयंती सिंह को नगरपालिका का अध्यक्ष चुनवा चुके थे। 5 अप्रैल 2007 को विजय सिंह सपा में शामिल हुए और 11 मई 2007 को सपा से विधायक चुने गए। 11 जून 2007 को सपा से इस्तीफ़ा देकर बसपा में शामिल हुए। उनके इस इस्तीफे से जनपद ने सियासत की दिशा ही बदल गयी। उपचुनाव से पहले विजय सिंह को 26 जून 25007 को बसपा से  निष्काषित कर दिया गया। विजय सिंह ने 8 अगस्त 2007 को सलमान खुर्शीद की पैरबी पर कांग्रेस की टिकट लाकर नामांकन किया। लेकिन वह तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अनन्त मिश्रा से चुनाव हार गए। वह कांग्रेस में बहुत दिन सक्रिय नहीं रह पाए। जिन सलमान खुर्शीद ने उन्हें दो बार कांग्रेस का टिकट दिलवाया वह 2009 के लोकसभा चुनाव में उनके खिलाफ चुनाव लड़ रहे नरेश अग्रवाल का साथ देने के लिए वह 22 जून 2008 को बसपा में दोबारा शामिल हो गए। लेकिन नरेश अग्रवाल चुनाव हरे तो कुछ दिन बाद ही विजय सिंह को पुनः बसपा से निष्कासित कर दिया गया। तब से वह चुनाव की तैयारी में लगे थे। उनका संपर्क कई पार्टियों से रहा पर बात न बनने पर वह निर्दलीय ही मैदान में उतरे।