गिन-गिन कर मारो एक भी बचने न पाए…..!

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मुंबई में मच्छर मारने की एक नई मशीन पर प्रयोग चल रहा है। इसमें किसी तरह के रसायन या पेस्टीसाइट्स का इस्तेमाल नहीं होता है। इससे मच्छरों को पनपने से रोकने में मदद मिलेगी।

अगर वृहनमुंबई म्युनिसिपल कॉपरेरेशन (बीएमसी) द्वारा कलानगर में किया जा रहा प्रयोग सफल रहा तो हो सकता है कि मच्छरों की रोकथाम का एक प्रभावी तरीका हमें मिल जाए। बीएमसी के अधिकारियों ने इस इलाके में मच्छर मारने वाली मशीन लगाई है। इंस्टॉलेशन के शुरुआती दो हफ्ते में इसके सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं।

इसे देखते हुए बीएमसी इस तकनीक की औपचारिक स्वीकृति के लिए नेशनल वेक्टर बॉर्न डिसीज कंट्रोल प्रोग्राम के पास एक प्रस्ताव भेज रही है। इस पर अनुमोदन मिलते ही इस मशीन को पूरे मुंबई और बाद में देश के अन्य हिस्सों में इंस्टॉल किया जा सकेगा।

क्या है तकनीक

यह वास्तव में एक एल्यूमीनियम टैंक है, जो इंसानी शरीर के तापमान जितनी गर्मी का उत्सर्जन करता है। यह गर्मी मच्छरों को अपनी ओर आकर्षित करती है, खासकर मादा मच्छरों को। मच्छर गर्मी के आधार पर ही अपने शिकार का पीछा करता है। इस टैंक के पास पहुंचते ही मशीन मच्छरों को तेज हवा के जरिए भीतर खींच लेती है। इसके बाद इलेक्ट्रोकशन ग्रिड मच्छरों को मार देता है। इस तकनीक की खास बात यह है कि इसमें मच्छरों को मारने के लिए रसायन या पेस्टीसाइट्स का इस्तेमाल नहीं होता है। इस तरह यह किसी तरह के साइड इफैक्ट से भी बचाती है।

अभी तक की स्थिति

फिलहाल तक मच्छरों से मुक्ति के लिए परंपरागत तरीकों के अलावा वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें खुले स्थानों पर पानी जमा न होने देने से लेकर फॉगिंग तक शामिल है। इससे फौरी तौर पर तो राहत मिल जाती है, लेकिन मच्छर कुछ समय बाद फिर सक्रिय हो जाते हैं। इस कारण मच्छर जनित बीमारियों पर पूरी तरह से काबू नहीं पाया जा सका है।

हालांकि इस मशीन की कार्यप्रणाली बाजार में पहले से उपलब्ध इलेक्ट्रिक रैकेट से मिलती जुलती है। अंतर बस इतना है कि ये रैकेट या मच्छर मारने वाले यूनिट मच्छरों को आकर्षित करने के लिए मानव शरीर जितना तापमान उत्सर्जित नहीं करते हैं। इसके अलावा मच्छर मारने वाले क्वॉयल और अन्य उत्पाद भी बाजार में मौजूद हैं, लेकिन इनसे निकलने वाला धुआं स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है।

क्या होगा फायदा

इस मशीन से किसी तरह का साइड इफैक्ट होने की आशंका न के बराबर है। इसे कहीं भी इंस्टॉल किया जा सकता है, खुले पार्क से लेकर छतों पर भी। इस मशीन में उपयोग में लाई जाने वाली बिजली फोटो सेल से पैदा होती है। सिस्टम ऑटोमेटिक होने से शाम होते ही मशीन काम करना शुरू कर देती है और सुबह सूरज के प्रकाश में काम करना बंद कर देती है।

क्या है कीमत

फिलहाल इस मशीन की कीमत डेढ लाख रुपए आई है। अगर इसके व्यापक इस्तेमाल की अनुमति मिल जाती है, तो संभावना जताई जा रही है कि कीमत कुछ और कम भी हो सकती है।