“गेट के सामने लगी चरखी में फंसकर गिरी गर्भवती का गेट पर प्रसव“
फर्रुखाबाद: लाहिया अस्पताल गेट पर एक बार फिर नारीत्व को जिल्लत का सामना करना पड़ा। एक दलित महिला को अस्पताल की बाउंड़ी के भीतर खुले आसमान के नीचे बच्चे को जन्म देना पड़ा। यद्यपित इस बात की कोई गारंटी तो नहीं थी कि सरस्वती के अस्पताल के भीतर पहुंचने पर भी समुचित उपचार मिल जाता, परंतु यहां तो लाहिया गेट पर बैठै पार्किंग ठेकेदारों ने ही यह व्यवस्था कर रखी है कि यदि कोई मरीज आपात्कालीन स्थिति में हो तो उसे समय से चिकित्सीय सहायता न मिल सके। ठीक इमरजेंसी गेट पर ठेकेदारों ने रस्सियों का जाल बांध रखा है। रविवार को मुख्यगेट के बराबर बनी लोहे की चरखी से गुजरते समय गर्भवती सरस्वती के उभरे हुए पेट पर ऐसा दबाव पड़ा कि वह दर्द से तिलमिला कर वहीं पर गिर पड़ी और तड़पने लगी। फिर तो वही हुआ जो लोहिया गेट पर अक्सर होता है। साथ में आयी परिवार की महिलाओं ने दो चादरे तानी और उनके पीछे महिला के दर्द से कराहने की आवाजें सुनकर आस पास भीड़ एकत्र हो गयी। थोड़ी देर में मासूम किलकारी की आवाज सुनाई पड़ी, और इसी के साथ महिला की आवाज थम गयी। इस दौरान सरस्वती का पति किसी प्रकार नर्सों की मिन्न्त-समाजत कर उनसे एक स्ट्रेचर मांग कर लाया, तब कहीं जाकर प्रसूता व नवजात को अस्पताल के अंदर जा पाना नसीब हुआ। परंतु इस दौरान नारीत्व को जिस जिल्लत से गुजरना पड़ा उसका दर्द तभी समझा जा सकता है जब सरस्वती की जगह अपनी बहन, बेटी या पत्नी को रखकर कल्पना की जाये।
रविवार सुबह 10:30 बजे बढपुर निवासी महेंद्र जाटव की 26 वर्षीय गर्भवती पत्नी सरस्वती को उसकी चचिया सास राम मूर्ति लोहिया अस्पताल लेकर पहुंची| लोग लोहिया अस्पताल के आपातत्कालीन सेवा के गेट पर पहुंचे तो पार्किंग ठेकेदारों द्वारा लगाये गये रस्सी के जाल के कारण रिक्शा अन्दर नहीं जा| मजबूरन रिक्शा बाहर ही छोड़कर बगल में लगे चरखी वाले गेट से अन्दर जाने की कोशिश में सरस्वती अस्पताल के गेट पर गिर पड़ी जिससे उसके प्रसव पीड़ा होने लगी जिस पर साथ आई महिलाओं ने सरस्वती को संभाला| दो कदम चलने के बाद अस्पताल गेट पर ही सरस्वती ने एक बच्ची को जन्म दिया| मीडिया कर्मीयों द्वारा पीड़ित महिला के फोटो खीचने पर अस्पताल में तैनात महिला चिकत्सक ने पीड़ित महिला के साथ आई महिलाओं को जमकर धमकाया व मुंह न खोलने की सख्त हिदायत दी|