मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने अन्ना हजारे की राइट टू रिकॉल की मांग को जहां कठिन बताया वहीं उन्होंने राइट टू रिजेक्ट के बारे में कहा कि फिलहाल यह विचार-विमर्श के चरण में है। उन्होंने कहा कि एक्जिट पोल और ओपिनियन पोल जैसे कार्यक्रम प्रायोजित होते हैं। कुरैशी ने पेड न्यूज का जिक्र करते हुए इसे न केवल चुनावों के लिए खतरनाक बताया बल्कि इसे घातक करार दिया। उन्होंने बताया इस से निबटने के लिए आयोग ने मीडिया सर्टिफिकेशन एवं मॉनिटरिंग कमेटी का गठन किया गया है।
भ्रष्ट जनप्रतिनिधियों और जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने वाले जनप्रतिनिधियों को संसद एवं विस से वापस बुलाने की प्रक्रिया को ही राइट टू रिकॉल कहा जाता है। कुरैशी ने राइट टू रिकॉल की मांग के बारे में कहा, इस पर अमल करना कठिन है। उन्होंने कहा कि इसके बजाए धन शक्ति के दुरुपयोग और आपराधिक छवि के लोगों को चुनावों से दूर रखने जैसे चुनावी सुधार पर्याप्त हैं।
राइट टू रिजेक्ट की मांग के बारे में उन्होंने कहा कि यह फिलहाल विचार-विमर्श के चरण में है। इस प्रक्रिया के तहत वर्तमान में प्रयोग के तौर पर लोगों को एक खाली बैलेट पेपर दिया जाता है और चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों की तुलना में अगर किसी को भी मत नहीं देने के विकल्प को मतदाता अधिक वोट देते हैं तो इसके तहत चुनाव फिर से कराए जाने की बात इसमें शामिल है, लेकिन फिलहाल इस मसले पर विचार-विमर्श चल रहा है। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन से मतदान के बाद मतदाताओं को पर्ची देने की बात पर भी अभी विचार-विमर्श जारी है। इस पर्ची से यह पुष्टि हो सकेगी कि मतदाता का मत पड़ गया है और उसे इस प्रिंट में मिल सकेगा कि उसने किसके पक्ष में मतदान किया है।
कुरैशी ने पेड न्यूज का जिक्र करते हुए इसे न केवल चुनावों के लिए खतरनाक बताया बल्कि इसे अन्य क्षेत्रों के लिए भी घातक करार दिया। उन्होंने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए आयोग ने मीडिया सर्टिफिकेशन एवं मॉनिटरिंग कमेटी का गठन किया गया है। इसे पहली बार बिहार विधानसभा चुनावों में 2010 में अपनाया गया और आयोग ने सौ से ज्यादा मामलों में 121 नोटिस जारी किए। उन्होंने कहा कि एक्जिट पोल और ओपिनियन पोल जैसे कार्यक्रम प्रायोजित होते हैं। इन पर भी रोक लगाना जरूरी है।