फर्रुखाबाद: तहसील के सैकड़ों चक्कर और रुपये खर्च करने के बाद अभ्यर्थियों को आय व जाति प्रमाण पत्र उपलब्ध तो हो जाते हैं लेकिन इनकी हैसियत कागज़ के टुकडे के सामान ही होती हैं| अंजान अभ्यर्थियों को इस बात का कतई ज्ञान नहीं होता| जब वह नौकरी या अन्य किसी काम के लिए कागज़ लगाते हैं और इन प्रमाण पत्रों के सत्यापन की नौवत आती है तो अभ्यर्थियों के पैरों तले जमीन खिसक जाती है क्योंकि उनके प्रमाण पत्र पर जो रजिस्ट्रेशन नंबर पड़ा होता है वह वेबसाइट पर उपलब्ध सूचना से मेल नहीं खाता है|
रजनीश कुमार एक हफ्ते से तहसील सदर का चक्कर काट रहा था| तहसील सदर के हस्ताक्षर से जारी आय प्रमाणपत्र संख्या 29311123057 पर उसके पिता का नाम सतीश चन्द्र नागर दर्ज है व आय 96000 अंकित है| जबकि इंटरनेट पर सरकारी बेबसाईट पर उपलब्ध सूचना के अनुसार इस नंबर पर आय प्रमाण पत्र गोबिंद पुत्र देवेन्द्र शर्मा के नाम पर अंकित किया गया| जिसमे उसकी आय 48000 लिखी है| रजनीश कुमार अकेले भुक्तभोगी नहीं है इन जैसे दर्जनों अभ्यर्थी आये दिन तहसील परिसर में टहलते नजर आते हैं|
अभ्यर्थियों के साथ इस तरह का खेल तहसील में जान बूझकर किया जाता है| ताकि फसे हुए अभ्यर्थियों से बेबसाईट पर सुधार के नाम पर मोटी रकम बसूल की जा सके| तहसील में जब कोई व्यक्ति आय व जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए आता है पहले तो उसे लेखपाल साहब ही नहीं मिलते हैं| अगर मिल भी जाते हैं तो लेखपाल उससे मनमाने पैसे लेता है| वहीं हाल कानूनगो साहब का है| जब वह इन दोनों से निपटता है तब उसे पता चलता है कि तहसीलदार साहब तो किसी अधिकारी के साथ दौरे पर गए हैं| चिराग लेकर तहसीलदार को ढूँढता है फिर कहीं जाकर उसके कागज़ पर तहसीलदार की मोहर लगती है व हस्ताक्षर होते हैं| अभ्यर्थी को 20 दिन बाद बुलाया जाता है। जब वह तहसील पहुंचता है तो उसे पता चलता है कि उसका कागज़ गुम हो गया है| जब वह व्यक्ति कुछ कहता है तो उससे कहा जाता है कि दोबारा बनवा लो| अब मरता क्या न करता वो बार फिर प्रक्रिया शुरू कर दोबारा इन तकलीफों का सामना करता है|
जब तमाम मस्स्कत के बाद उसका कागज़ तैयार हो जाता है तो बारी इंटरनेट पर नंबर चढाने की आती है| यहाँ एक बार फिर उसका पीछा रिश्वत से नहीं छूटता| इंटरनेट फीडिंग वाले वाले भी उससे पैसे की मांग करते हैं| पैसा देने के बाद भी यह लोग गलत नंबरों की फीडिंग कर देते हैं| जिससे अभ्यर्थियों को काफी तकलीफों का सामना करना पड़ता है| जब वह नौकरी अन्य किसी कार्य हेतु कागज़ लगाते हैं और वहां पर फीडिंग नंबरों को गलत पाते हैं तो उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाती है| जाहिर है कि उस समय वह कागज का टुकड़ा उसके भविष्य की कुंजी नजर आ रहा होता है। वह नंबर सही करवाने के मुंह मांगे पैसे देते हैं|
उदाहरण के लिए रजनीश कुमार एक हफ्ते से तहसील सदर का चक्कर काट रहा था| तहसील सदर के हस्ताक्षर से जारी आय प्रमाणपत्र संख्या 29311123057 पर उसके पिता का नाम सतीश चन्द्र नागर दर्ज है व आय 96000 अंकित है| जबकि इंटरनेट पर सरकारी बेबसाईट पर उपलब्ध सूचना के अनुसार इस नंबर पर आय प्रमाण पत्र गोबिंद पुत्र देवेन्द्र शर्मा के नाम पर अंकित किया गया| जिसमे उसकी आय 48000 लिखी है| रजनीश कुमार अकेले भुक्तभोगी नहीं है इन जैसे दर्जनों अभ्यर्थी आये दिन तहसील परिसर में टहलते नजर आते हैं|
तहसीलदार मोहन सिंह कहते हैं कि गलती के कारण ऐसा हुआ है इसे ठीक करवा दिया जाएगा| मगर जनाब इतनी लम्बी चौड़ी घूस देने के बाद जब उसे गलत प्रमाण पत्र तहसील कर्मियों की गलती से मिला तो उसकी सजा गलती करने वाले की जगह एक बार फिर रिश्वत के रूप में प्रार्थी से वसूल ली जाती है|