फर्रुखाबाद: न कोई भविष्य की कार्ययोजना और न ही कोई लिखित अजेंडा| क्या ये नेता एक बार फिर जनता को ठगने की फिराक में है| नाम काफी भारी भरकम मगर काम में कोई दम नहीं| सरकारी खजाने से दो चार मदद को ऐसे बखार रहे हैं जैसे पुस्तैनी और खानदानी दौलत जनता पर लुटा रहे हो| मगर जिले के किसी नेता के पास कोई विकास, रोजगार, का माडल नहीं है| किसी नेता के पास भ्रष्टाचार दूर करने का वादा नहीं है| इतना ही इनमे से शायद ही किसी नेता ने भारत का सविधान पूरी तौर से पढ़ा और उस पर अमल करने का सोचा हो|
मैडम लुईस खुर्शीद, मेजर सुनील दत्त दिवेदी, भीमकाय पूर्व विधायक विजय सिंह, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मुकेश राजपूत, पुस्तैनी नेता नरेद्र सिंह यादव, पूर्व विधायक सुशील शाक्य, फर्रुखाबाद से हार का मुह देख चुके नरेश अग्रवाल के चेले मोहन अग्रवाल, पूर्व विधायक उर्मिला राजपूत, बीड़ी (कैंसर) के निर्माता जमालुदीन सिद्दकी, नागेन्द्र शाक्य, महेश राठौर, बसपा के विधायक कुलदीप गंगवार ये वो नाम हैं जो इन दिनों सुर्खियाँ बन रहे हैं| जनता से वोट लेकर विधान सभा का वेतन और पेंशन खाते में अपना नाम लिखाने को बेहद ही उतावले|
इनमे से किसी भी नेता से पूछ बैठिये कि उनकी जीत का गणित क्या है तो बताएगा-
उसकी विधानसभा में इतने वोटर फलां जाति जो उसकी खुद की जाति है| बाकी पार्टी का वोट इतना है| और जो फलां फलां जातियां हैं इनके कोई प्रत्याशी नहीं लड़ रहे है उनका वोट भी उन्हें ही मिलेगा| कोई नेता ये नहीं बताएगा कि वो क्षेत्र के फलां समस्या हल करेगा| ये वो लिखित वादा करता है और अगर न कर सका तो खुद इस्तीफ़ा दे देगा| ऐसा करने की न तो इन नेताओ में हिम्मत है और न ही हौसला| ये सब तो जनता को केवल वोटर जो समझते हैं|
नेता जी लैया चबेना के पैकेट जनता को हाथो में दे रहे थे और चेले चपाटे पीछे नेता के लिए वोट मांग रहे थे
नेताओ को केवल विधायक बन कर अपनी विधायक निधि बेचनी है| सरकारी खर्चे पर ऐश करनी है| पढ़े लिखे अफसरों से सलूट लेना है और जनता के सामने मंच पर बैठना है| अन्ना गलत नहीं कहते नेताओ का न कोई ईमान धर्म और न कोई देश प्रेम| केवल वोट प्रेम| अभी हाल की ही बात है- राजेपुर के नहरैया गाँव में एक विधायक और उसे चेले चपाटे बाढ़ में डूब रहे लोगो को देखने गए कुछ लैया चबेना के पैकेट ले गए| नेता जी लैया चबेना के पैकेट जनता को हाथो में दे रहे थे और चेले चपाटे पीछे नेता के लिए वोट मांग रहे थे, हद हो गयी बेशर्मी की|
एक विधायक ने विधायक निधि से बाढ़ प्रभावित कुछ गाँव में नाव दी| ऐसे दी मनो कितना बड़ा खजाना लुटा रहे हो| तहसीलदार सहित सरकारी चमचे इस सहायता को ऐसे गुणगान कर सुना रहे थे जैसे नाव देकर एक एहसान उन्होंने लाड दिया है और उस गाँव को अगले चुनाव में वोट देकर इसका बदला देना न भूले|