• एटा के डीएम व एसएसपी पर भी गिर सकती है गाज
पशुधन एवं दुग्ध विकास राज्यमंत्री अवधपाल सिंह यादव के विरुद्ध जांच कर रहे लोक आयुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने उनको डेढ़ दर्जन मामलों में दोषी करार दिया है। लोकायुक्त ने मुख्यमंत्री मायावती से को उनको मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने को कहा है। एटा के डीएम व एसएसपी समेत कई अफसरों को भी हटाने और उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए कहा है। उन पर मंत्री के दबाव में ग्राम समाज की जमीनों को अवैध कब्जे से मुक्त न कराने का आरोप है।
आयुक्त ने मंत्री के खिलाफ की गई अधिकांश शिकायतें जांच में सही पाई हैं। रिपोर्ट में लोकायुक्त ने साफतौर पर कहा है कि अवधपाल ने ग्राम सभा की जमीनों पर अवैध कब्जा करके तथा पुत्र व संबंधियों को अपने ही विभाग से संबंधित ठेकों का काम आवंटित किया । उन्होंने मंत्री पद की शपथ के अनुकूल कार्य नहीं किया। यही नहीं प्रदेश में बसपा सरकार बनने के बाद अपने सियासी प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ ताबड़तोड़ फौजदारी मुकदमे दर्ज कराने को लेकर भी लोकायुक्त ने राज्यमंत्री के खिलाफ टिप्पणी करते हुए सीबी-सीआईडी जांच की सिफारिश की है।
मंत्री पर विभागीय पशु चिकित्सालयों के निर्माण का ठेका अपने बेटे को दिलाने, अवैध शराब का कारोबार चलवाने, ग्राम समाज की जमीनों पर अवैध कब्जे करने, दुग्ध संघ मैनपुरी के कार्यालय के लिए साले का मकान किराए पर लेने का आरोप लगा था। इसके साथ ही राज्यमंत्री के खिलाफ ब्लॉक प्रमुख चुनाव में धांधली कराने का आरोप लगाए गए थे। लोकायुक्त ने पांच महीने में जांच पूरी कर अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को भेज दी है। लोकायुक्त ने सिफारिशों पर कार्रवाई करके एक माह के भीतर सूचित करने को कहा गया है। जांच में एक चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई कि अवधपाल के निजी प्रतिनिधि के तौर पर संजू यादव और अजीत यादव पशुधन विभाग के अधिकारियों से मंत्री के नाम पर अनुचित काम करवाकर अवैध धन उगाही करते हैं। रिपोर्ट में अवधपाल द्वारा 13 मई 2007 को मंत्री पद की शपथ लेने के बाद पशुधन विभाग द्वारा मानकों को दरकिनार करके प्रदेश में 189 पशु चिकित्सालयों के निर्माण पर भी सवाल उठाया गया है। इनमें से 14 पशु चिकित्सालयों का काम अवध पाल के बेटे की फर्म को बिना किसी टेंडर आदि के दिए गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि 189 पशु चिकित्सालयों के निर्माण पर भारी धनराशि खर्च होने के बाद भी जनता को इसका लाभ नहीं मिला क्योंकि इनमें पशु चिकित्साधिकारी ही नियुक्त नहीं हुए हैं। अवैध कच्ची शराब के कारोबार में सीधे तौर पर मंत्री की भूमिका साबित तो नहीं हुई है लेकिन यह जरूर पता चला है कि कच्ची शराब बनाने वालों को किसी न किसी का राजनीतिक संरक्षण जरूर है।