फर्रुखाबाद: बेसिक घोटाला विभाग यानि बेसिक शिक्षा विभाग फर्रुखाबाद में नौनिहालों को सरकार द्वारा दी जाने वाली निशुल्क पाठ्य पुस्तक में करोडो का घोटाला पिछले चार साल से हो रहा है| हर साल कोई न कोई मामला पकड़ में आ जाता है और फिर जाँच बैठ जाती है| जाँच में घपले का खुलासा भी हर बार हुआ है| ज्यादातर शिकायतें सही पायी गयी मगर आज तक आधा दर्जन से ज्यादा हुई जांचों में कोई दण्डित नहीं हुआ| ये जांचे समय समय पर विभिन्न मजिस्ट्रेट और बड़े अधिकारी कर कारवाही की संस्तुति करते रहे है| एक बार फिर निशुल्क पुस्तक घोटाला जाँच का पांचवा संस्करण एसडीएम और सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारिओ को सौप दी गयी है|
निशुल्क पुस्तक घोटाला- प्रथम संस्करण
निशुल्क पुस्तक घोटाला का पहला संस्करण वर्ष 2007 में तब आया जब जिलें में बेसिक शिक्षा अधिकारी की कुर्सी पर प्रदेश के स्वस्थ्य मंत्री के करीबी और चहेते राघवेन्द्र बाजपेई बैठे थे| राजकीय इंटर कॉलेज फर्रुखाबाद में प्रधानाचार्य के पद से मंत्रीजी के रहमो करम से बाजपेई जी पहली बार बेसिक शिक्षा में जिले स्तर के अधिकारी बने थे| कुर्सी मलाईदार थी सो ईमानदारी का पाठ पढ़ाने वाला एक शिक्षक भ्रष्टाचार के दल दल में उतरता चला गया| राघवेन्द्र बाजपेई के कार्यकाल में जनपद के नवाबगंज ब्लाक में उन दिनों सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी नरेन्द्र कुमार तैनात थे और बीआरसी महेंद्र कुमार यादव थे| नवाबगंज ब्लाक के स्कूलों में बटने वाली किताबे पूरे सत्र बच्चो को नहीं दी गयी और जनवरी-फरबरी में नयी मांग पत्र देने से ठीक पहले ब्लाक सेंटर में रखी लगभग 50 बोरा जिसमे ढाई लाख नई किताब थी कस्बे के एक कबाड़ी को बेच दी गयी| कबाड़ी को बेचते समय एक स्थानीय पत्रकार की नजर पड़ गयी और पत्रकार ने जिम्मेदारी निभाते हुए इसकी खबर कायमगंज के तत्कालीन एसडीएम अतुल सिंह को दी| अतुल सिंह ने तत्परता दिखाते हुए छापा मारा और तहसीलदार से गोदाम सील करवा कर नवाबगंज थाने में बीआरसी महेंद्र सिंह यादव और कबाड़ी के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत करवा दिया| उसके कई हफ्ते बाद मीडिया में छपी खबरों के दबाब के बाद किताबो की गिनती हुई और वो ढाई लाख किताबे जिले के नरेन्द्र सरीन स्कूल फतेहगढ़ स्थित केंद्रीय गोदाम में आ गयी| उसके बाद उन किताबो का क्या हुआ इसका जबाब विभाग के किसी कर्मचारी/अधिकारी के पास नहीं| इस मामले में डाली गयी सूचना के अधिकार के तहत प्राथना पत्र धूल फाकते रहे| उस समय संजय पालीवाल निशुल्क किताबो का पटल जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय में देख रहे थे| पूरे खेल में इनकी महती भूमिका रहती थी| इतना ही नहीं उसी वर्ष एक और मामला पकड़ में तब आया जब उर्दू की एक भी किताबे बच्चो तक नहीं पहुची और लगभग डेढ़ लाख मूल्य की उर्दू की किताबो की खरीद और वितरण दिखाया गया| उर्दू की किताबी की खरीद और वितरण की जिमीदारी बाबू मनोज श्रीवास्तव के पास थी| धीरे धीरे राघवेन्द्र बाजपेई के खिलाफ शिकायतों का अम्बार लगने लगा| प्रोन्नतियो में अनुसूचित जाति की अनदेखी करना, विद्यालयों में शिक्षण के लिए खरीदे गए कंप्यूटर में घोटाला करना, निशुल्क पुस्तक वितरण घोटाला सहित कई मामलों में फसते ही राघवेन्द्र बाजपाई का तबादला फिरोजाबाद डायट में प्रवक्ता पद कर दिया गया| जाँच पूरी होने के बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया| इतना सब कुछ हुआ मगर निशुल्क पुस्तक वितरण में सरकार को आर्थिक क्षति पहुचाने और नौनिहालों के भविष्य के साथ खिलवाड़ के बाद भी किसी को कोई दंड नहीं मिला| राघवेन्द्र बाजपेई कुछ दिनों बाद बहाल हो गए| राघवेन्द्र बाजपेयी आजकल गोंडा जिले में बेसिक शिक्षा अधिकारी की उसी मलाईदार कुर्सी पर विराजमान हैं|
निशुल्क पुस्तक घोटाला- दितीय संस्करण
फर्रुखाबाद में निशुल्क पुस्तक घोटाले के दूसरे संस्करण की बुनियाद पहले संस्करण के समय ही पड़ चुकी थी| २.४३ लाख बच्चो के सापेक्ष २.९७ लाख बच्चो के लिए किताबो को खरीदने की तैयारी की जा चुकी थी जो अलगे सत्र में आनी थी| मगर सही मायने में दूसरे संस्करण का आगाज निवर्तमान निलम्बित बेसिक शिक्षा अधिकारी आरएसपी त्रिपाठी के समय में हुआ| बाजपेई के जाने के बाद वर्ष 2008 में राम सागर पति त्रिपाठी ने जिले में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी का कार्यभार संभाला और कुछ महीनो के बाद ही कार्यालय के सर्वाधिक विवादित बाबुओं की गिरफ्त में आ गए| कार्यालय में ही चेन स्मोकिंग के शौक़ीन संजय पालीवाल के पास निशुल्क पुस्तक से सम्बधित पटल बना रहा और पिछले रेकॉर्ड्स में तब्दीली का भरपूर मौका भी| हालाँकि सबसे बड़ा घोटाला वर्ष २००७ में ही हुआ जब नौनिहालों तक मात्र १०% किताबे ही पहुची और बाकी किताबो का कागजो और बिल वाउचर में बंदरबाट हुआ था|
इस पूरे खेल में घोटालेबाजो का एक गिरोह काम करता है जिसमे दफ्तर के बाबुओं से लेकर छोटे बड़े अफसर और बीआरसी एनपीआरसी और भण्डारण इंचार्ज तक शामिल होते है| वैसे तो मामला बेहद ही गोपनीय रखा जाता है और पकडे गए तो जाँच करने वाले और बैठाने वाले भी काफी हद तक उपकृत होते रहते हैं|
वर्ष 2008 में बेसिक शिक्षा अधिकारी ने बाजपेई के समय गयी किताबो की डिमांड को यथावत मंगाया और वितरण कराया मगर पिछला स्टॉक कितना बचा चल रहा था इसका कोई लेखा जोखा नहीं देखा| इसी दौरान उर्दू छात्रों के लिए मगाई जाने वाली किताबों का मामला एक विभागीय सहायक बीआरसी नानकचंद ने उछाल दिया| बेसिक शिक्षा अधिकारी आर एस पी त्रिपाठी ने पाठ्य पुस्तक वितरण की जिम्मेदारी निभाने वाले सभी सम्बन्धित कर्मचारियो और जिम्मेदारों को बुलाया और खरीद और उपभोग में चूल से चूल मिलान कर संजय पालीवाल द्वारा तैयार सूची पर दस्खत करने को कहा| नानकचंद ने फर्जी उपभोग सूची पर हस्ताक्षर करने से मन कर दिया और शिकायत लोकायुक्त तक कर दी| मामले की जाँच अपर निदेशक बेसिक शिक्षा कानपुर को मिली| पत्राचार का आदान प्रदान शुरू हुआ अखबारों में खबरे छपी|जिला सूचना कार्यालय से लेकर जिलाधिकारी कार्यालय तक ने अपनी अपनी भूमिका निभानी शुरू कर दी| सूचना कार्यालय ने अख़बार से कटिंग काटी फ़ाइल बनायीं और जिलाधिकारी ने बेसिक शिक्षा से जबाब मांगते हुए टिपण्णी की और पत्र जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय में आकर खो गया| न बेसिक शिक्षा अधिकारी ने जबाब देना उचित समझा और न जिलाधिकारी कार्यालय ने उस पर कोई जबाब माँगा| फिलहाल वर्ष 2008 में किताबो को कस्बो और नगर में बटता देखा गया| वास्तविक भौतिक प्रगति में लगभग 15 प्रतिशत का इजाफा हुआ| मगर ग्रामीण इलाकों में पूरी किताबे वर्ष 2008 में भी वर्षांत तक बच्चो के बस्तों में नहीं पहुची|
निशुल्क पुस्तक घोटाला- तृतीय संस्करण
घोटाला कांड का तीसरा संस्करण वर्ष 2009 में नहीं आया| सामान्य तरीके से सब कुछ गोलमाल हुआ मीडिया का दबाब किताबो से हटकर मिड डे मील पर चला गया और घोटाला गिरोह सक्रिय रूप से अपना काम करता रहा| अब तक इस गिरोह के सूत्रधार बाबू ये मान बैठे थे कि पिछली किताबो का अब कोई हाल चल नहीं मांगेगा| मगर इसी बीच एक आरटीआई पड़ गयी| खरीद और वितरण के सापेक्ष वर्ष 2009 तक फर्रुखाबाद बेसिक शिक्षा फर्रुखाबाद के स्टाक में लगभग 2 लाख बच्चो की किताबे स्टाक में होनी चाहिए थी मगर वर्ष 2009 में एक बार फिर नए सिरे से 2 लाख से कम बच्चो की किताबो की डिमांड भेज दी गयी| और हिसाब किताब वितीय वर्ष में मिलान कर लिया गया मगर पिछला रिकॉर्ड अभी भी बरक़रार रहा|
घोटाले के खुलासे का तीसरा संस्करण वर्ष 2010 में आया जब एक दिन अचानक तत्कालीन एडीएम हीरालाल ने मुख्यालय के केंद्रीय गोदाम नरेन्द्र सरीन स्कूल फतेहगढ़ में छापा मार रजिस्टर खंगाल डाले| दरअसल में ये बेसिक शिक्षा अधिकारी राम सागर पति त्रिपाठी और सहायक समन्वयक नानक चंद के बीच फर्जी कामो में भागीदारी निभाने से इंकार करने से उपजा था| फर्जी मिड डे मील की रिपोर्ट और किताबो के आहरण वितरण में चूल से चूल मिलाने से इंकार करने के बाद बने दबाब को कम करने के लिए नानकचंद ने मामले को अपर जिलाधिकारी तक पंहुचा दिया|
छापा मारी में किताबो का पटल देख रहे संजय पालीवाल और भण्डारण इंचार्ज विमल मिश्र के साथ नानकचंद का आमना सामना हो गया| मौके पर एसडीएम सदर और उप बेसिक शिक्षा अधिकारी जगरूप शंखवार और मीडिया कर्मी भी थे|
परीक्षा सत्र से ठीक एक माह पहले आई कुछ किताबो को नानकचंद ने बैक डेट में लेने से इंकार कर दिया था लिहाजा किताबे स्टोर में पड़ी रही| हालाँकि जनवरी माह में आई किताबो को बढ़पुर ब्लाक ने छोड़कर सभी ब्लाक के समन्वयको ने बैक डेट में प्राप्त कर लिया था| मगर नानकचंद के द्वारा किताबो का उठान न किये जाने के कारण किताबो का कागजी उपभोग पूरा न हो सका और मामला जाँच में पकड़ा गया|
जो किताबे जुलाई में आनी चाहिए थी उन किताबो की कुछ संख्या केवल दिखावे के तौर पर जनवरी में आई थी| बच्चे पढ़ाई से बंचित रहे और किताब घोटाले का तीसरा संस्करण खुलने लगा| मामले की जाँच अपर जिलाधिकारी ने डीडीओ सौप दी|
जारी….
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