फर्रुखाबाद: सरकार बच्चों के बेहतर भविष्य के लाख दावे करे लेकिन जमीनी हकीकत कुछ ओर ही बयां करती है। आजाद भारत में आज भी ऐसे बदनसीब बच्चे हैं जिन्होंने ठीक से चलना भी नहीं सीखा है। उनका बचपन मजदूरी करने में ही निकल गया। उनकी आंखें खुलती हैं तो उन्हें रोटी के सिवाय कुछ नजर नहीं आता।
जिन बच्चों के हाथों कॉपी किताब होनी चाहिए, उनमें बारूद थमाए जा रहे हैं। जिन्हें स्कूल में होना चाहिए, उनसे पहाड़ियों पर विस्फोट कराए जा रहे हैं और नन्हें मासूम बच्चों के सहारे व्यापारी अपनी तिजोरी भर रहे हैं। हैरानी की बात तो ये है कि सबकुछ प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा है और सरकार हाथ पर धरे हादसे का इंतजार कर रही है।
कुछ ऐसे ही बदनसीब बच्चे हैं, जिन्होंने अपना बचपन रेस्टोरेंट, रेहड़ियों, ढाबों पर खत्म कर दिया है। यूपी-नेपाल के बार्डर के पास से आया प्रेम कई माह से दिल्ली रोड पर फाटक के पास एक ढाबे पर काम कर रहा है। पिछले दो सप्ताह में श्रम विभाग करीब 35 बच्चों को पकड़ चुका है। पकड़े गए बच्चों में 50 प्रतिशत बच्चे नेपाल और शेष बच्चे बिहार, यूपी, उड़ीसा से हैं। इस अभियान में करीब दो दर्जन दुकानों के चालान भी काटे गए हैं।
प्रशासनिक अधिकारी चाइल्ड लेबर को रोकने के लाख दावे करे, सप्ताह मनाए, पर इनकी हकीकत यह है किखुद सरकारी कार्यालय भी इससे अछूते नहीं हैं।
चाहे दफ्तर, होटल, या फिर बड़े लोगो के बंगले लोगों की चाकरी करते हुए ये नन्हे मासूम बच्चे मिल ही जायेंगे.
केंद्र सरकार ने वर्ष 1986 से कानून पास कर 14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम कराने पर प्रतिबंध लगा रखा है। इसके तहत बच्चों से फैक्टरियों, कारखानों, खदानों और अन्य कार्य कराना कानून अपराध है। इसका उल्लंघन करने पर तीन माह से लेकर एक साल तक की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा 20 हजार रुपए तक जुर्माना भी हो सकता है। किसी विशेष स्थिति में सजा की अवधि 6 माह से दो साल तक भी बढ़ाई जा सकती है।
बावजूद इसके बच्चे ढाबे, रेस्टोरेट, होटल, कैंटीन, दुकानें व अन्य जगह काम करते नजर आएंगे। हालांकि विभाग के अधिकारियों का दावा है कि ऐसी स्थिति सामाजिक परिस्थितियों के चलते पैदा होती है। लोगों में जागरुकता आए और अभिभावक मेहनत कर अपने बच्चों को शिक्षित करें तो बाल श्रम को खत्म किया जा सकता है।