फर्रुखाबाद: दांव पर दांव लगे जा रहे थे, हजारो से शुरू हुए दांव लाखो तक जा पहुंचे| और आखिर में उसे भागना ही पड़ा| जुएं में हारे पचास लाख की रकम वसूलने के बाद ही वो महफ़िल छोड़ सका| और जब छूटा तो ऐसा भागा जैसे कोई लड़की भूखे भेडियो को अस्मत लुटाकर भागती है| जुएं की वो महफ़िल जो दोपहर दो बजे सजी रात 8 बजे ही लूटने के बाद ही सजदा हुई| दिवाली के बाद परवा को फ़र्रुखाबादी जुए की तीन साल पहले की यादे ताजा हो गयी जब हरदोई का व्यापारी 1 करोड़ लुटाकर जुएं की महफ़िल से रुक्सत हुआ था|
इस बार बड़े जुए का वो फड़ नगर के बीचो बीच नहीं गंगाजी के किनारे एक आश्रम में सजा था| फर्रुखाबाद के चार व्यापारी, पांच नेता, कई प्रधान और दो जिला पंचायत सदस्य महफ़िल में अपनी अपनी किस्मत आजमा रहे थे| रमी, कटिया, मैरिज सब खेल गया| लैंड क्रूजर, सफारी, स्कार्पिओ जैसी महगी कारो के काफिले से ही लग रहा था कि दिग्गज लोगो का जमावड़ा है| दिन के दो बजे महफ़िल सजी तो दांव शुरू हुए| शराब, चिकेन और मटन के साथ रोटी का इंतजाम| न दांव ख़त्म हो रहे थे और न ही इंतजाम| मगर लक्ष्मी इधर से उधर चली जा रही थी| लगभग तीन घंटे में ही 5 हलके जुआरी (इन्हे जुआरी ही कहना ठीक होगा इस महफ़िल के लिए) अपनी गर्मी शांत कर निकल लिए| मगर सबसे देर तक जो अड़ा वो नंगा होकर ही निकला| इस बार हरदोई की जगह एटा का जुआरी नंगा हुआ| 25 लाख हारने के बाद माल ख़त्म हो जाने के बाद वो महफ़िल लगभग 5 बजे ही छोड़ गया मगर लगभग 1 घंटे बाद फिर अपना माल वापस लेने की चाहत में 25 लाख के साथ लौटा|
आखिरी दौर में एक विधायक, एक पूर्व विधायक, दो जिला पंचायत सदस्य और एटा का जुआरी ही बचा| दूसरे दौर में एटा के व्यपारी की किस्मत ने साथ दिया| चार चालो में ही उसने 32 लाख अपने पाले में किये| खेल रोमांचक दौर में पहुंच चुका था| फर्रुखाबाद के जुआरी खाली होते जा रहे थे| फिर अगले ही पंद्रह मिनट में एटा का जुआरी अपने हारे हुए पूरे 25 लाख के साथ 10 लाख की रकम और अपने पाले में कर चुका था| फिर हुआ खेल का आखिरी दांव| पत्ते बाटे गए| एक पर एक खेल शुरू हुआ| दाव शुरू हुआ 10 लाख से मगर शो कराने तक एटा के व्यापारी ने पूरे पचास लाख फड़ पर पटक दिए| अब शो कराने की बारी फ़र्रुखाबादी जुआरी की थी| आसपास बैठे सभी जुआरी सांस रोके गेम पर निगाहें लगाये थे| आखिर फर्रुखाबाद की और से लगे दांव में उनके भी चंदे के पैसे थे| एटा के व्यापारी ने शो कराने के लिए दाव लगाया था लिहाजा पत्ते फर्रूखाबादियो को पहले दिखाने थे| पहला पत्ता हुकुम का दहला निकला, दूसरा पान का दहला निकला और तीसरा चिड़ी दहला| इसके बाद एटा के जुआरी को पत्ते दिखाने थे मगर वो खड़ा हो गया| मतलब साफ़ था एटा के जुआरी का ये आखिरी दांव था वो अपने पचास लाख लूटा चुका था| इसके बाद तो उसने किसी से हाथ तक न मिलाया| अपने तीन साथियो के साथ आया एटा का जुआरी ऐसे भागा जैसे फ़र्रुखाबादी जुआरियो को वो जनता तक नहीं था|