फर्रुखाबाद:आधी आबादी कही जाने वाली महिलाऐं और उनके लिये बने देश के वो कानून जिनकी दुहाई प्रदेश सरकार देती रही है। लेकिन इन सब कानूनो के बाबजूद भी महिलाओं की स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही। जी संगम जो खबर आप पढ़ने जा रहे है। वो महिला हेल्पलाइन 1090 महिला आयोग और उन तमाम महिलाओं के अधिकारों का निर्माण करने वाले लोगों के मुंह पर तमाचा है जो ये कहते है कि प्रदेश में महिलाऐं अपना अधिकार समझ रही है। फर्रुखाबाद के अमृतपुर थाना क्षेत्र की रहने वाली गीता वाल्मीकी(परिवर्तित नाम)की ये कहानी है। गीता बाल्मीकी के जले हुये हाथ ये बयां कर रहे हैं कि आज भी समाज में पुरुषों की अपनी ही एक अलग भूमिका है।
अब इस कहानी को बताते हैं कि गीता देवी अमृतपुर थाना क्षेत्र के ग्राम पिथनापुर रहने वाली है। पिता रामेश्वर दो भाई मुकेश और चुन्ने है। मां की मौत हो चुकी थी। गीता देवी जैसे-जैसे बड़ी हुई। एक पिता ने एक भाई ने अपनी बहन का सौदा बदायूं के नागर जूना गांव में रामवीर के साथ किया। 3 साल रामवीर के साथ रहने के बाद रामवीर ने गीता देवी का छोड़ने का फैसला किया एकबार फिर एक महिला के अधिकारों का हनन हुआ पिता रामेश्वर ने गीता देवी को एक कागज पर लिखकर वापस अपने घर बुला लिया इसके एवज में गीता देवी को पति रामवीर ने गीता के पिता रामेश्वर को 25 हजार रुपये दिये। गीता घर वापस आ गयी कहानी यहीं खत्म नहीं हुई पिता ने ही गीता देवी का शोषण करना शुरु कर दिया और अपने साथ सम्बन्ध बनाने के लिये मजबूर किया।
गीता देवी की यातनाऐं शुरु हुई। गीता देवी के पिता और भाई अक्सर गीता देवी को लाठियों से पीटते। दो से तीन दिन तक खाना नहीं देते। इतना ही नहीं इन हैवानियत करने वाले पिता और भाई ने गीता देवी के हाथों में आग लगा दी जिससे उसके दोनो हाथ जल गये मजे की बात यह है कि जब गीता देवी शिकायत के लिये थाने पहुंची तो वहां इसका दर्द नहीं देखा गया। बल्कि पुलिस ने इसको बड़े साहब के पास जाने के लिये कहा। मजे की बात यह है कि फर्रुखाबाद से अमृतपुर तहसील की दूरी 50 किमी0 है।गीता देवी ने सुबह 5 बजे से बिना कुछ खाये पीये पैदल चलना शुरु किया।
घण्टों चलने के बाद वो फतेहगढ़ पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंची यहां पर भी बिडम्बना ने साथ नहीं छोड़ा अपर पुलिस अधीक्षक ने कहानी की तरह सुना और महिला थाना जाने के लिये निर्देश कर दिये जैसे ही पुलिस कार्यालय से बाहर निकली गीता जमीन पर गिर गयी। पत्रकारों की नजर गयी तो उसको उठाकर बैठाया और उसकी कहानी सुनी तो खाली पेट में कुछ रोटिया भी डाली। लेकिन गीता देवी की हालत यहीं पर ठीक नहीं हुई जिस न्याय की आस में वह 50 किमी0 पैदल चल कर आयी वो उसको यहां नहीं मिला। कुछ महिला संगठन भी वहां पहुंचे अपनी बात कैमरे पर रखी और निकलते बने।
मानवाधिकार आयोग की महिला सदस्य सुलक्षना सिंह ने महिला के दर्द को समझा और उसे ईलाज के लिये राममनोहर लोहिया अस्पताल ले गयी जहां गीता का ईलाज चल रहा है गुड्डी की माने तो पिता उससे गलत काम करने के लिये दबाब बनाता जब वह नहीं करती तो पिता और भाई उसको मिलकर पीटते इतना नहीं उसको घण्टों तक घर में बांध कर रखा जाता। रोटी नहीं दी जाती। और रोटी मांगने पर उसके हाथों को जलती हुई लकड़ी से जला दिया जाता।
हमारे देश में महिला सुरक्षा के लिये 1090 महिलाओ के लिये कानून महिलाओ की मिसकाॅल पर ही मामले को दर्ज करने के निर्देश महिलाओं की भागेदारी के बाबजूद भी आज भी गीता देवी जैसी महिलाओं का यातनाओं का सामना करना पड़ता है और अपने जीवन को जीने के लिये अपनो से ही कष्ट झेलना पड़ता है। मजे की बात यह है कि कानून को सही तरीके से चलाने के लिये तैनात किये गये अधिकारी भी मोटा वेतन लेते है लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं देता। गीता देवी 50 किमी0 चलकर बड़े साहब से मिलने इसलिये आयी शायद कि बड़े साहब उसकी मदद कर सके लेकिन बड़े साहब ने कुर्सी पर बैठकर महिला एसओ को निर्देश कर दिया गीता देवी नही जानती कि महिला पुलिस क्या होती है और कहां जाना होगा और कितने बड़े साहब से मिलना पड़ेगा।
आखिरकार परेशान गीता पुलिस अधीक्षक कार्यालय से निकलकर उम्मीदें पूरी न होने के चलते गेट पर ही बेहोश हो गये। मानवता को शर्मसार करने वाले फर्रुखाबाद के पुलिस अधिकारी भी कहीं न कहीं इस सजा के पात्र है। लेकिन शायद न तो राजनीति में मानवता है और न ही ऐसे अधिकारियों में जो जिलो को चलाने का काम कर रहे है।
गीता देवी का कहना है कि वो उसके पिता ही उसका शोषण कर रहे है। जिन्होने जन्म दिया वो ही उसके साथ अवैध सम्बन्ध बना रहे है। वहीं पैसे न लाने पर उसको घण्टों तक डण्डो से पीटा जाता है। चीखने चिल्लाने पर उसके हाथ – पैर बांध दिये जाते है यहीं नहीं उसके हाथों को जलती हुई लकड़ी से जला दिया गया।