फर्रुखाबाद: महिलायें जो कभी घर की आँगन की दहलीज को पार नहीं करती थीं अब वह राजनीति में घुसकर ग्राम प्रधान के ओहदे पर विराजमान हो गईं, भले ही वह घूंघट न हटायें कहती हैं कि हम घूंघट में रहकर भी प्रधानी चला सकती हैं, वो अलग बात है कि कागजों पर या अन्य किसी कामों में हमार पति ही देखभाल करेंगे| यानी कि प्रधान पति अपनी बीबियों के कंधे पर चतुराई की बन्दूक रखकर जनता का शोषण करेंगें| बस सिर्फ नाम होगा प्रधान पत्नियों का|
प्रधान सरकार ने भले ही महिलाओं की ग्राम पंचायत में भागीदारी आरक्षण की वैशाखी के सहारे तय करके उनके चुनाव भी करा दिये। परंतु वास्तविकता के धरातल पर रुतबा प्रधान पति का ही कायम है।
पंचायत चुनावों में आरक्षण के चलते ग्राम प्रधानी का चुनाव लड़ने की हसरत पूरी न हो पायी तो क्या हुआ। पत्नी ने तो चुनाव जीत लिया। अब तो सारे निर्णय प्रधान पति ही लेने लगे हैं। वास्तविक प्रधान तो घूंघट की ओट में दहलीज भी नहीं लांघ पा रही हैं।
अब इन महिला ग्राम प्रधानों का कार्य बैंक खातों से हस्ताक्षर करके धन निकलवाने तक सीमित हो गया है। समाज में भी बिना निर्वाचित हुए इन प्रधान पतियों को प्रधान जी का दर्जा मिल चुका है। प्रशासन यदि इस तरफ ध्यान नहीं देता है तो संवैधानिक मंशा अधूरी ही रह जाएगी तथा यह प्रधान पति आए दिन अपना दखल देना जारी रखेंगे।