फर्रुखाबाद: बड़े बड़े बेशर्म और मोटी खाल वाले सरकारी कर्मचारी कुर्सियों पर जमकर रिश्वत की बाट तब तक जोहते है जब तक किसी का दम न निकल जाए| हाल कुछ बेसिक शिक्षा फर्रुखाबाद का भी इसे मिलता जुलता है| कई सालो से बकाया बोनस और वेतन की बकाया धनराशि उन शिक्षको को तब तक नहीं दी गयी जब तक शिक्षक संगठन ने लखनऊ मुख्यमंत्री दरबार में लिखित में शिकायत दर्ज नहीं करा दी| मुख्यमंत्री कार्यालय की निगरानी और लगातार अफसरो द्वारा विडियो कॉन्फ्रेंस में क्ला लगने के बाद भी जब हलफनामा देने का नंबर आ गया तब जाकर लगभग 150 शिक्षको के बैंक खातो में पैसा ट्रान्सफर करने के लिए सूची तैयार हुई| जब एक बैंक की सूची जेएनआई के हत्थे लगी तो पता चला कि इसका लाभ लेने वाला तो कब का स्वर्गलोक पहुच चुका है| अनुराग श्रीवास्तव नाम है उस अध्यापक का जिसकी मौत इलाज के अभाव में हो गयी| मरते मरते इलाज के लिए लिया कर्ज बच्चो के नाम छोड़ गया| अनुराग की दो साल पहले मौत हो चुकी है| बेचारे गुरूजी विभाग से बोनस और एरियर के पैसे मांगते मांगते थक चुके थे| उन्हें भी बोनस का बकाया पैसा मंगलवार 25/2/2014 को मिला है|
तो बात बेसिक शिक्षा परिषद् फर्रुखाबाद के बाबुओ की है| पेंशन बनाने से लेकर एरियर बनाने तक में इन्हे कुछ ऐसा महसूस होता है जैसे इनका खानदानी धन लुटा जा रहा है| बेचारा शिक्षक पूरी नौकरी के बाद भी इनके चक्कर लगाता रहता है| बाबुओ से कुछ पूछना भी गुनाह होता है बिना पैसे के| जैसे किसी शादी के मंडप में बैठा पंडित दुल्हे और दुल्हन को तब तक दक्षिणा के चक्कर में तब तक आहुति करवाता है जब तक आस पास बैठे लोग पंडित को कोसने नहीं लगते| हाल शिक्षा विभाग के बाबुओ का इससे जुदा नहीं है| हो सकता है ऐसा ही कोई बाबू आपके आसपास रहता हो| उसके पास कार भी होगी,दो चार प्लाट भी होंगे और अगर ईश्वर ने सही कृपा की होगी तो एक आध आवारा औलात भी होगी| ऐसे हरामखोर रिश्वतखोर हर जगह मिल जाते है| और इनके चक्कर में विभाग के ईमानदार सहकर्मी घुट घुटकर नौकरी करते हुए कोने में अपनी मेज पर नजर आते है|
तो बात बोनस और बकाया की| लेखाविभाग के अफसर के लिए बाबू वसूलते है तभी तो वे बाबू की हर हाँ में हाँ मिलाते है| तो फर्रुखाबाद में शिकायत के बाद भी लखनऊ के अफसरो को बनाने के लिए खेल होता रहा| विडियो कॉन्फ्रेंसिंग में लखनऊ के अफसरो को जबाब देने के लिए वे ही बैठाये गए जो साहब की जय जय कार करते रहे| मगर इस बार मामला दूसरी तरह का था| लोग लिखापढ़ी में लखनऊ चिट्ठियां चुपचाप भेज रहे थे| लिहाजा बड़े वे-मन से ही 5 साल का सही बोनस और बकाया देना पड़ गया और वो भी बिना किसी ऊपरी कमाई के| कई बेचारो के तो तो हिसाब ही गड़बड़ा गए होने| साहब सूची पर दस्खत करने के बाद बाबुओ से बहुत कुछ पूछते है हिसाब किताब के बारे में| मगर कभी उनसे पूछा जो बीमार है, उनसे पूछा जिनकी रिटायर होने के बाद जवान बेटी शादी के लिए बैठी है| ये क्यों पूछेंगे? ये तो शमशान में बैठे उन महापंडितों की तरह है जिन्हे सिर्फ मौत से मतलब होता है| वैसे संज्ञान में आया है कि इतना होने के बाबजूद वर्ष 2007-2008 का बोनस अभी भी नहीं बना है| बताते है कि फर्जीवाड़े के कागज बने होने के कारण उन कागजो और बिलो को चोरी होना दर्शाया जा रहा है|