विश्व विरासत सप्ताह: खण्डहर बनकर खड़े जनपद के पुरातत्व स्थल

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FARRUKHABAD :  दीपक शुक्ला– प्राचीन इतिहास व पुरातत्व के बारे में प्रायः कहा जाता है कि यह गड़े मुर्दे उखाड़ता है। लेकिन इतिहास का अध्ययन ज्ञान और प्रशिक्षण हमारा वर्तमान और भविष्य सुधारने में मदद करता है। उच्च स्तरीय प्रतियोगी परीक्षाओं में इतिहास विषय छात्रों के लिए वरदान साबित हो सकता है। मुद्रा विशेषज्ञ विभिन्न प्रकार के प्राचीन, मध्यकालीन सिक्कों, मुद्राओं, मोहरों आदि का अध्ययन के साथ-साथ उनका काल निर्माण और शासन निर्माण के विषय में भी जानकारी देते हैं। पुरातत्व विभाग पुराने ऐतिहासिक भवनों, सिक्कों, लेखों आदि को खोजकर उन्हें संरक्षित करता है। इसके लिए सरकार विभाग पर अरबों रुपये प्रति वर्ष खर्च करती है लेकिन इसके बावजूद भी फर्रुखाबाद जनपद में पुरातत्व विभाग की रीड़ ही टूटी हुई है। कई ऐतिहासिक इमारतें खण्डहर में तब्दील हो चुकी हैं। लेकिन काफी वादों के बाद भी आज तक उनका कोई रख रखाव व संरक्षण नहीं किया गया है।bangas ka makbara

मजे की बात तो यह है कि तत्कालीन सपा सरकार में फर्रुखाबाद में निर्मित कराया गया संग्रहालय उदघाटन से पूर्व ही खण्डहर बनने की कगार पर है। प्रश्न यह उठता है कि आखिर उसका जिम्मेदार कौन है। आखिर विश्व विरासत सप्ताह में लाखों का खर्च क्यों? स्थिति न पहले सुधरी थी और न अब सुधरती नजर आ रही है। वर्तमान में भी सपा सरकार है। सूबे में युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तमाम योजनायें अपनी झोली से उड़ेल रहे हैं, लेकिन पुरातत्व के लिए कोई भी तत्व जनपद के पुरातत्व के लिए उनके पास भी नजर आता नहीं दिख रहा।

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बात करें उत्तर प्रदेश की तो उत्तर प्रदेश के फैजाबाद संग्रहालय को 1876 में बनाया गया। झांसी संग्रहालय 1978 में, अल्मोड़ा उत्तराखण्ड संग्रहालय 1979, रामकथा संग्रहालय फैजाबाद 1988, बौद्ध संग्राहालय गोरखपुर 1988, लोक कला संग्रहालय 1989, सुल्तानपुर संग्रहालय 1989, बौद्ध संग्रहालय कुशीनगर 1995 में निर्मित किये गये और लगभग संचालित भी हैं। लेकिन वहीं सन 2005 में जब सूबे में सपा सरकार थी और सूबे के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव बैठे थे और उन्होंने कन्नौज के साथ-साथ जनपद के हाथीपुर स्थित अदिउली, पिपरहवा (बहराइच) में पुरातत्व संग्रहालय की बिल्डिंगें तैयार करवा दीं।tawan hal - visrate

जिसमें 2011 में कन्नौज का पुरातत्व संग्रहालय प्रारंभ भी कर दिया गया लेकिन वहां पद श्रजन नहीं हो सका। अन्य विभागों के अधिकारियों की देखरेख में वह चल रहा है। खैर बात करते हैं अपने जनपद फर्रुखाबाद में बने अदिउली हाथीपुर संग्रहालय की जहां न ही उसका उदघाटन हुआ और न ही नियुक्तियां हुईं और अदिउली संग्रहालय पुरातत्व विभाग और शासन की तरफ मुहं ताक रहा है। जिससे पुरातत्व से जुड़े भवन खण्डहर हो गये और उनके रख रखाव पर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया। जिसमें मुख्य रूप से शहर के गंगा तट पर बनी विसरातों के साथ-साथ मुगलकालिक इमारतें, शमसाबाद स्थित लाखा बंजारा का पुल, शमसाबाद के झन्नाखार स्थित मोहसिन अली का शहादत स्थल, ऋषियों की तपोस्थली श्रंगी आश्रम, नबाव मोहम्मद खां बंगश का मकबरा यह तो कुछ दूरी से भवन के रूप में फिलहाल नजर आते हैं लेकिन यदि शासन प्रशासन नहीं चेता तो आने वाली पीढ़ी सिर्फ इन्हें किताबों में ही देख सकेगी।

लेकिन अनदेखी का एक उदाहरण और कमालगंज के भोजपुर स्थित गंगुआ टीला, बीजापुर स्थित राजा भोज का किला निवास, भोजपुर स्थित राजा भोज का युद्ध का किला, ग्राम गदनपुर स्थित दीप स्थल आदि पुरातत्व की अनदेखी से गर्त में समा गये हैं। जो खण्डहर में तब्दील हो रही हैं। जिसमें शहर को चार चांद लगाने वाला टाउन हाल का भवन, राजकीय इंटर कालेज फर्रुखाबाद, केन्द्रीय कारागार के अधीक्षक का निवास आदि मुख्य हैं, जो पुरातत्व के संरक्षण में होने चाहिए।

फिलहाल इस सम्बंध में शासन प्रशासन की कोई मंशा संरक्षण की ओर कदम बढ़ाने के लिए नजर नहीं आ रही है।