FARRUKHABAD: मानस सम्मेलन के अन्तिम दिन विद्वानों नें देश में भ्रष्टाचार एवं वेईमानी समाप्त हुये विना रामराज की कल्पना को वेमानी बताया। देश में ईमानदारी व त्याग के विना रामराज को भी असंभव बताया। बाहर से आये सभी मानस विद्वानों तथा मानस शोधकर्ता महिलाओं को सम्मानित किया गया।
मो0 अढ़तियान स्थित बड़े वूढ़े हनुमान जी के निकट डॉ0 रामबाबू पाठक के संयोजन में 25 वें रजत जयंती वर्ष के मानस सम्मेलन में राम राज्याभिषेक प्रंसग पर ग्वालियर म0प्र0 से आये मानस विद्वान डॉ0 मानस मनोहर दुबे नें कहा कि देश में यदि रामराज आयेगा तो ऊपर से आयेगा। देश के वेईमान व भ्रष्टाचारी नेता जब तक ईमानदार नहीं होगे और उनमें राम व भरत जैसा त्याग नहीं होगा तब तक रामराज की कल्पना असंभव है। मानस विद्वान श्री दुबे नें कहा 14 वर्ष के बाद श्रीराम सभी वंधुओं सहित विमान से अयोध्या आते हैं। गुरू वशिष्ठ व माताओं को श्रीराम प्रणाम कर वानरों का परिचय देते हैं और सभी प्रवासियों से मिलते हैं। राम प्रेमी भरत लाल सिर पर पादुकायें लिये खड़े थे श्रीराम भरत को अपने ह्दय से लगाते हैं।
श्रीराम के राज्याभिषेक के समय सभी अयोध्यावासी व देवता फूलो की वर्षा कर हर्षित होते हैं, प्रथम तिलक वशिष्ठ मुनि कीना पुनि सब विप्रन आयुष दीना। जालौन से पधारे मानस विद्वान ईश्वरदास वृह्मचारी नें कहा दुनिया के जितने भी देवता हुये उन सब नें किले में वैठकर राज्य किया। जबकि श्रीराम नें सिंहासन पर वैठने से पहले 14 वर्ष तक वन में रहकर विषमता, द्वेष तथा ईर्ष्या के जहर को समाप्त कर लोगों के ह्दय को परिवर्तित कर दिया श्रीराम के सिंहासन पर वैठते ही अयोध्यावासी हर्षित हो गये। उन्होने भजन प्रस्तुत किया, रामराज वैठे त्रिलोका हर्षित भये गये सव शोका। वयरू न कर काहू सन कोही रामप्रताप विषमता सोई।
हरदोई से पधारे मानस विद्वान वृजविहारी त्रिवेदी नें हनुमान चरित प्रसंग पर कहा हनुमान नें अपने मन इन्द्रिय व वासना को जीत लिया। तभी हनुमान को महावीर कहा गया। भगबान शिव के रूद्रावतार हनुमान जी की पूंछ में लंकापति रावण नें आग लगाई और महावली हनुमान नें अपनी पूंछ से पूरी लंका में आग लगा दी तथा बहुत से राक्षसों को मार मार कर अधमरा कर दिया। यह सब हनुमान जी की इन्द्रियों की ताकत थी। बनारस से पधारे मानस मनोहर रामेश्वर रामायणी नें कहा, शील सत्य वह जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में त्यागा न जाये सत्य वह जो भूत भविष्य व वर्तमान तीनों में एक सा रहे हमारे जीवन में रामकथा सतगुरू व संत का अगर प्रवेश होता है तो मनुष्य को जाग जाना चाहिये कि उस मानव का कल्याण काफी करीब है। बनारस से पधारीं मानस कोकिला श्रीमती नीलम शास्त्री नें कौशल्या चरित्र प्रसंग पर वोलते हुये कहा, भगबती सीता बिदा होकर ससुराल आती हैं तो माता कौशल्या अपनी बहू सीता से कहती हैं मैं तुम्हे मुंह दिखावनी में हीरे जबहरात जैसी कोई भेंट न देकर अपने वेटे राम को ही सौंप रहीं हूं।
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प्रातः वेला में बाहर से आये सभी मानस विद्वानों वृजविहारी त्रिवेदी, डॉ0 मानस मनोहर दुबे, ईश्वरदास वृह्मचारी, सुश्री कृष्णा मिश्रा, श्रीमती उमा तिवारी, रामेश्वर रामायणी, श्रीमती प्रभा मिश्रा, श्रीमती नीलम शास्त्री, डॉ0 रामवावू पाठक, मोतीलाल, तवला बादक मुन्ना सिंह तथा मीडिया प्रभारी मोहनलाल गौड़ को शॉल उढ़ाकर व तुलसी साहित्य देकर सम्मानित किया गया। सांयकाल वेला में कु0 गरिमा पाण्डेय, डॉ0 रेजीना सहर, सविता पाठक, प्रीती अग्रबाल, एवं रेनू सक्सेना को सम्मानित किया गया। इस अबसर पर दिवाकर लाल अग्निहोत्री, राधेश्याम गर्ग, अनुदित बाजपेई, आलोक गौड़, सुजीत पाठक वंटू, रामवरन दीक्षित, अशोक रस्तोगी, शशि रस्तोगी, मधु गौड़, ऊषा पाठक, विटाना देबी, रामेन्द्र शास्त्री, सुषमा दीक्षित व जगन्नाथ टंडन सहित सैकड़ों लोग मौजूद रहे।