मुजफ्फरनगर। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में भड़के दंगों में अब तक इस दंगों में 26 लोग मारे गए हैं। रविवार को ही 13 लोग मारे गए। प्रशासन के मुताबिक अब तक 52 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने कुछ नेताओं पर भी मामला दर्ज किया है। शहर के कई इलाकों में कर्फ्य लागू है। दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं। सेना ने फ्लैग मार्च किया है। लेकिन फिर भी स्थिति तनावपूर्ण है। सवाल ये है कि आखिर ये स्थिति आई कैसे। आखिर कैसे 27 अगस्त की तीन लोगों की हत्या सांप्रदायिक तनाव में बदल गई।
छोटी सी चिंगारी बन गई शोला
एक छोटी सी चिंगारी ने मुजफ्फरनगर शहर की शांति खत्म कर दी। और जब आग भड़की तो सबने अपने अपने हिसाब से उसमें घी डाला। शुरुआत 27 अगस्त से हुई। जिले के कवाल गांव में एक छेड़छाड़ की घटना हुई। ऐसा कहा जा रहा है कि छेड़छाड़ की शिकायत स्थानीय थाने में हुई लेकिन पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया। इसके बाद छेड़छाड़ करने के आरोपी दो भाइयों की हत्या कर दी गई। पुलिस ने दोनों भाइयों की हत्या के मामले में 16 लोगों को गिरफ्तार किया। लेकिन इसी के बाद शुरू हुआ पंचायतों का दौर। मामले ने सांप्रदायिक रंग ले लिया। इस वारदात के ठीक तीन दिन बाद यानि 30 अगस्त को उस युवक से जुड़े समुदाय ने मुजफ्फरनगर शहर के बीचो-बीच चौक पर एक महापंचायत की। आग उगलने वाले भाषण दिए गए।
उधर यू ट्यूब पर दूसरे समुदाय के दो युवकों की हत्या का एक झूठा वीडियो अपलोड किया गया। दो साल पुराने इस वीडियो में अफगानिस्तान में दो नौजवानों की हत्या की तस्वीर थी। जिसपर बिना सोचे समझे लोग यकीन कर रहे थे। ये तस्वीरें एक मोबाइल से दूसरे मोबाइल पर फैल रही थी। 30 अगस्त तक तनाव को बढ़ाने की हर जमीन तैयार हो चुकी थी। उसी शाम तक कवाल और उसके आसपास के कुछ गांवों में छिटपुट सांप्रदायिक हिंसा होने लगी। दोनों समुदाय एक-दूसरे के वाहनों को जलाने लगे। ईंट पत्थर फेंके जाने लगे।
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प्रशासन नाजुक हो रही स्थिति का अंदाजा लगाने में बिल्कुल नाकाम रहा। स्थिति उस वक्त और बुरी हो गई जब कवाल गांव में राजनेताओं का आना जाना शुरू हो गया। समाजवादी पार्टी के नेता भी दौरे कर रहे थे, बाकी पार्टियों के कदम भी तनाव की इस जमीन पर पड़ चुके थे। इस बीच सरकार ने नए जिला अधिकारी और एसएसपी की नियुक्ति कर दी। और 31 अगस्त को सर्वजातीय पंचायत का ऐलान हुआ। जिले के एक गांव में बीजेपी, बीएसपी, कांग्रेस, भारतीय किसान यूनियन, राष्ट्रीय लोकदल और स्थानीय खाप के हजारों लोग इकट्ठा हुए। स्थानीय पुलिस प्रशासन और सीआरपीएफ की मौजूदगी में लोगों ने जमकर हथियारों का प्रदर्शन किया। पंचायत में आई भीड़ ने आगजनी की। मीडिया कर्मियों को भी मारने के लिए दौड़ाया। कार्रवाई के नाम पर बीएसपी सांसद कादिर राणा, बीजेपी नेता हुकुम सिंह, बीजेपी विधायक संजीत सोम समेत आधा दर्जन नेताओं पर मुकदमे दर्ज कर खानापूरी कर ली गई। उधर यू ट्यूब पर दो युवकों की हत्या का झूठा वीडियो तो ब्लॉक कर दिया गया। लेकिन अब उसकी सीडी बंट रही थी शहर में।
हिंसा रुक नहीं रही थी। प्रशासन नाकाम था, राजनेता और राजनीति अपने काम में लगे हुए थे. और इन्ही सब के बीच शनिवार यानि सात तारीख को एक बार फिर महापंचायत का ऐलान हुआ। ये महापंचायत को भी भारतीय किसान युनियन, बीजेपी, राष्ट्रीय लोकदल, कांग्रेस के विधायक ने समर्थन दिया था। मुजफ्फरनगर शहर में हजारों लोग पहुंचे। भड़काऊ भाषणों के बीच प्रशासन की ईंट से ईंट बजाने का ऐलान किया गया। लेकिन प्रशासन गूंगा-बहरा बना रहा।
इस महापंचायत से लौट रही भीड़ में शामिल कुछ असामाजिक तत्वों ने एक फोटोग्राफर को पीट पीट कर हत्या कर डाली। जैसे ही इस हत्या की सूचना शहर में फैली फोटोग्राफर के समुदाय के लोग सड़कों पर आ गए। शहर के मिनाक्षी चौक पर पथराव और फायरिंग शुरू हो गई। यही आईबीएन7 के पत्रकार राजेश वर्मा को दंगाइयों की गोली लगी और उनकी मौत हो गई। अब सवाल उठ रहे हैं अखिलेश सरकार पर हर उस पार्टी पर जिसने इस तनाव को वोट में बदलने की कोशिश की। आखिर शहर में दो युवकों की हत्या की फर्जी सीडी कौन बांट रहा था। आखिर यू-ट्यूब पर इनकी हत्या का फर्जी वीडियो किसने अपलोड किया। आखिर धारा 144 के बावजूद पंचायतें और महापंचायतें कैसे हुई। आखिर उन नेताओं और लोगों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया जो मंच से चीख-चीख कर जहर उगल रहे थे। आखिर अखिलेश सरकार ने अफसरों को पुख्ता कार्रवाई की हरी झंडी क्यों नहीं दी।