एक दिन ईश्वर एक इंसान को बना रहे थे। इस दौरान शरीर के अंगों के बीच बॉस बनने की जंग छिड़ गई। हर कोई बॉस बनने के लिए अपनी अपनी दलीलें पेश करने लगा।
दीमाग: मेरे नियंत्रण में तो पूरा शरीर रहता है, ऐसे में बॉस मुझे होना चाहिए।
पैर: नहीं..नहीं.. तुम तो बस सोच सकते हो वो मेरी मरजी है कि मैं तुम्हारी दिखाई दिशा पर चलूं या न चलूं बॉस मुझे होना चाहिए।
हाथ: अरे भई ! सिर्फ सोचने और चलने से तो कुछ नहीं होता मेरे छुए बिना तो कोई काम हो ही नहीं सकता। बॉस मुझे होना चाहिए।
आंखे: लेकिन जब तक मैं चीज को देखूं नहीं हाथ, पैर, दीमाग तुम लोग कोई भी काम का पता कैसे लगा सकोगे। ऐसे में बॉस की असली दावेदार मैं हूं।
इस तरह शरीर का हर अंग बॉस बनने के लिए अपनी अपनी दलीलें पेश कर रहा था। तभी एक आवाज आई.. बॉस मुझे होना चाहिए। यह सुनकर सब हंसने लगे एक ने कहा तुम्हें तो सिर्फ धड़कना आता है..और तुम कर ही क्या सकते हो।
दिल: दीमाग तुम बस सोच सकते हो, हाथ तुम बस छू सकते हो , आंखे सिर्फ देख सकती हैं और पैर सिर्फ चल सकता है। लेकिन यह सब मेरे दम पर ही तो हो रहा है। अगर मैने काम करना बंद कर दिया तो शरीर मर जाएगा और तुम सब बेकार हो जाओगे। ऐसे बॉस तो मुझे होना चाहिए।
पाठ:-
जी हां, सोचने से कोई बॉस नहीं होता। बॉस वो होता है जिसके न होने से सब कुछ बिखर जाए। जैसे धड़कने बंद होने पर शरीर मर जाता है।