नई दिल्ली। संसद और विधानसभाओं की गरिमा बढ़ाने के लिहाज से सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने सांसदों और विधायकों को जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत मिली एक खास छूट को खत्म कर दिया। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अगर किसी सांसद या विधायक को किसी भी अदालत से दो साल या उससे ज्यादा की सजा मिलती है, तो उसकी सदस्यता तुरंत खत्म हो जाएगी।
अभी तक जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत इन्हें ऊपरी अदालत में अपील करने के लिए तीन महीने की छूट थी। इस छूट का फायदा उठाकर नेता तीन महीने के अंदर अपील कर देते थे और पद पर बने रहते थे लेकिन अब ऐसा नहीं हो पाएगा। सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से दलील दी गई कि संसद ने सोच-समझकर जन प्रतिनिधियों को ये छूट दी है।
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सरकार की दलील थी कि अगर ये छूट नहीं हो, तो सरकारें हर समय खतरे में रहेंगी। कभी भी किसी सांसद या विधायक को सजा होती है, तो उसकी सदस्यता जाने के कारण सरकार को भी खतरा हो सकता है। इसके अलावा दूसरा बड़ी दिक्कत उस सीट पर दोबारा चुनाव कराना होगा। लेकिन कोर्ट ने सरकार की तमाम दलीलों को सिरे से नकार दिया।
कोर्ट ने कहा कि सांसदों और विधायकों को छूट देकर संसद ने संविधान में मिले अपने अधिकारों को पार किया है और उसे ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं था। अगर कोई व्यक्ति दो साल या दो साल से ज्यादा की सजा होने के बाद चुनाव नहीं लड़ सकता, तो सांसद और विधायकों को पद पर बने रहने की छूट क्यों हो।
सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ से ये भी दलील दी गई थी कि भारतीय न्यायिक सिस्टम की ये सच्चाई है कि निचली अदालतों में बहुत ज्यादा मामलों में सजा होती है, लेकिन ऊपरी यानी हाईकोर्ट में फैसला पलट जाता है लेकिन कोर्ट ने इस दलील को भी सिरे से नकार दिया। यही नहीं कोर्ट ने ये बात भी नहीं मानी कि अगर निचली अदालत के गलत फैसले के कारण किसी सांसद या विधायक की कुर्सी चली जाती है, तो उसका पूरा भविष्य ही खराब हो जाएगा।
कोर्ट ने साफ कहा कि कानून में प्रावधान है कि हाईकोर्ट किसी भी व्यक्ति को दोषी करार दिए जाने को भी सस्पेंड कर सकता है। वैसी सूरत में सब कुछ हाईकोर्ट के विवेक पर रहता है और कोर्ट को अगर सही लगे, तो ऐसी छूट दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला तुरंत प्रभाव से लागू हो गया है।
आगे से अगर किसी भी सांसद या विधायक को दो या दो साल से ज्यादा की सजा होती है, तो वो चुनाव नहीं लड़ पाएगा। हालांकि जिन दोषी सांसदों या विधायकों की अपील ऊपरी अदालत में चल रही हैं, उन पर ये फैसला लागू नहीं होगा। संविधान विशेषज्ञ इस फैसले को लोकतंत्र के लिए एक अच्छा फैसला बता रहे हैं।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले से आम आदमी और सांसदों, विधायकों के बीच के फर्क को खत्म कर दिया है। अब से पहले यदि किसी आम आदमी को दो या दो साल से ज्यादा की सजा होती थी, तो वो चुनाव नहीं लड़ सकता था। लेकिन सांसद या विधायक सिर्फ अपील दाखिल कर अपने पद पर बने रह सकते थे।