पटना। हुआ वही, जिसकी आशंका थी। पिछले 17 वर्षो से एक साथ रहे भाजपा-जदयू का साथ आखिरकार टूट ही गया। रविवार को जदयू (जनता दल यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) से अपने दल के अलग होने की घोषणा करते हुए कहा कि चूंकि हमारे रास्ते अलग हो चुके हैं, लिहाजा यह नैतिकता का तकाजा है कि मैं राजग के संयोजक का पद छोड़ दूं। हालांकि उसके लिए एक औपचारिकता शेष है, बावजूद इसके मैं आज और अभी से उस दायित्व से अपने को अलग कर रहा हूं।
रविवार को पटना में मीडिया से मुखातिब शरद ने कहा कि पिछले छह-सात महीनों से जिस तरह की राजनीतिक स्थिति बन गई थी, उसमें साथ चलना मुनासिब और मुमकिन नहीं रह गया था। इस गठबंधन से अब न तो भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) को कोई लाभ होने वाला था और ना ही जदयू को कोई फायदा। इस कारण हम अलग हो रहे हैं। हमने फैसला कर लिया है कि अब उनकी और हमारी राहें अलग-अलग होंगी।
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रविवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि हम पार्टी के बुनियादी सिद्धांतों से समझौता नहीं कर सकते। कुछ दिनों से अनिश्चिय की स्थिति बनीं हुई थी। जहां तक नफा-नुकसान का सवाल है तो हम इसकी परवाह नहीं करते। उन्होंने कहा कि गठबंधन तोड़ने के लिए हम कहीं से भी जिम्मेदार नहीं हैं। नीतीश ने कहा कि बिहार के लोगों ने बेशक राजग गठबंधन को वोट दिया था, लेकिन जब बिहार भाजपा के मंत्री व नेता ही सरकार से अलग हो गए तो हमने विधानसभा में एक बार फिर बहुमत हासिल करने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल से भाजपा के के मंत्रियों को हटाने की सिफारिश की है।
दूसरी ओर, जदयू द्वारा गठबंधन तोड़ने की औपचारिक घोषणा के बाद भाजपा नेता व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि बिहार के राजनीतिक इतिहास में आज के दिन को काले दिन के रूप में याद किया जाएगा। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार ने एनडीए के नेता के तौर पर बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उन्हें पहले पद से इस्तीफा देकर जदयू के नेता के तौर पर मुख्यमंत्री पद संभालना चाहिए। मोदी ने कहा कि अभी सरकार का कार्यकाल ढाई साल का बचा हुआ है और भाजपा चाहती है कि बिहार की जनता पर चुनाव का बोझ न पड़े। उन्होंने नीतीश के कदम को जनता के साथ विश्वासघात बताते हुए 18 जून को शांतिपूर्ण बिहार बंद की घोषणा की और इस दिन को विश्वासघात दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया। मोदी ने कहा कि जदयू जैसी पार्टियां सुविधा की राजनीति की करती है। जब इन्हें जरूरत पड़ती हैं हम सेकुलर और जब नहीं पड़ती है तो कम्युनल हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि इनके विश्वासघात का बदला बिहार की जनता 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अवश्य लेगी। मोदी ने कहा कि पार्टी अगले लगभग साल तक पूरी तरह से लोकसभा चुनाव पर अपना ध्यान केंद्रित करेगी।
इससे पहले, नीतीश कुमार ने दोबारा विश्वास मत प्राप्त करने के लिए 19 तारीख यानी बुधवार को विधानसभा की बैठक बुलाने का ज्च्च्च्यपाल डीवाई पाटिल से निवेदन किया था। ज्च्च्च्यपाल ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है।
रविवार दो बजे के बाद राजभवन पहुंचकर मुख्यमंत्री ने ज्च्च्यपाल को मौजूदा राजनीतिक स्थिति की जानकारी दी। बताया जा रहा है कि नीतीश ने पहले राजग के नेता के बतौर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। चूंकि भाजपा से जदयू ने अलग होने का अनौपचारिक तौर पर फैसला कर लिया है, लिहाजा वे अब जदयू नेता के रूप में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। उनके साथ नए मंत्रिमंडल को भी शपथ दिलाए जाने की बात कही जा रही है।
राजभवन से मुख्यमंत्री ने सीधे अपने आवास का रुख कर लिया, जहां जदयू अध्यक्ष शरद यादव के साथ पार्टी के तमाम दिग्गज जुटे हुए हैं। तीसरे पहर जदयू की ओर से शरद यादव गठबंधन के बाबत औपचारिक घोषणा करेंगे। उसके बाद शाम पांच बजे मीडिया से मुखातिब होकर भाजपा नेतृत्व अपना रुख स्पष्ट कर देगी। उन्होंने 19 जून को विशेष सत्र बुलाने की मांग की है।
गौरतलब है कि 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में सत्ता का नेतृत्व कर रहे जदयू के 118, भाजपा के 91, मुख्य विपक्षी दल राजद के 22 और कांग्रेस के चार सदस्य हैं। सदन में निर्दलीय विधायकों की संख्या छह है।
भाजपा से तल्खी बढ़ने के बाद बिहार में उलटफेर की संभावना व्यक्त की जा रही थी।
गौरतलब है कि भाजपा और जदयू के बीच बढ़ रही तल्खी के मद्देनजर भाजपा की ओर से यह आवाज उठी थी कि चूंकि जनता ने समर्थन गठबंधन सरकार को दिया था, लिहाजा नीतीश को इस्तीफा दे दोबारा सरकार बनाने का दावा पेश करना चाहिए। इसलिए नीतीश राज्यपाल की मुलाकात को इससे जोड़कर देखा जा रहा है।
इसके बाद पूरी संभावना है कि रविवार को जनता दल यूनाइटेड राजग से तलाकनामे पर साइन कर देगा। इससे पूर्व आज राज्य भाजपा कोटे के सभी मंत्रियों ने अपना इस्तीफा सुशील कुमार मोदी को सौंप दिया है। अभी यह साफ नहीं है कि मोदी यह इस्तीफा राजभवन में जाकर सौंपेंगे या फिर विधानसभा जाएंगे। वहीं भाजपा ने साफ कर दिया है कि नरेंद्र मोदी के नाम पर उन्हें समझौता मंजूर नहीं है। लिहाजा आज बुलाई गई मुख्यमंत्री की बैठक से भी भाजपा के मंत्री शामिल नहीं हुए।
बिहार की राजनीति में आए बदलाव से यह बात साफ हो गया है कि अब केवल गठबंधन के टूटने की औपचारिक घोषणा ही बाकी रह गई है। नीतीश कुमार ने आज ही कैबिनेट की बैठक भी बुलाई थी। पार्टी नेताओं के साथ होने वाली बैठक के बाद करीब तीन बजे तक जदयू अध्यक्ष शरद यादव राजग पर लिए गए फैसले की औपचारिक घोषणा कर देंगे। राजनीतिक दृष्टि से आज होने वाली सबसे बड़ी घोषणा पर सभी राजनीतिक पार्टियों की नजरें लगी हैं। वहीं माना यह भी जा रहा है कि राजग से अलग होने के बाद कांग्रेस जदयू पर निशाना लगाए बैठी है।
गठबंधन को लेकर भाजपा- जदयू के बीच चल रहे घमासान में एक कदम आगे बढ़ते हुए भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा. सीपी ठाकुर ने कहा कि रविवार को सरकार में शामिल पार्टी के सभी मंत्री उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। वे जरूरत के अनुरूप इसका इस्तेमाल करेंगे।
इससे पूर्व राजग में टूट संभावनाओं के बीच माकपा महासचिव प्रकाश करात और तेदेपा प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने शनिवार को जदयू अध्यक्ष शरद यादव से बात की। हालांकि, नेताओं की बातचीत का कोई ब्योरा नहीं दिया गया है। माना जा रहा है कि तीनों नेताओं ने मौजूदा राजनीतिक हालात पर चर्चा की है।
कांग्रेस और गैर भाजपा गठजोड़ की संभावनाएं तलाशने को लेकर शुक्रवार को माकपा नेता सीताराम येचुरी की शरद यादव के आवास पर हुई मुलाकात के बाद दोनों नेताओं ने जदयू अध्यक्ष से बात की है। फेडरल फ्रंट के नाम पर तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी की ताजा पहल और बीजू जनता दल (बीजद) और तेदेपा के इस नये गठजोड़ का समर्थन किए जाने के बाद अचानक माकपा भी सक्रिय हो गई है। बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच माकपा की इस पहल को काफी अहम माना जा रहा है।
ममता के हाथों पश्चिम बंगाल जैसा अपना मजबूत गढ़ खो चुकी माकपा चाहती है कि अगले चुनाव में धर्मनिरपेक्ष दलों का एक ऐसा गठजोड़ बनाना चाहती है जो कांग्रेस और भाजपा नीत गठबंधन का विकल्प साबित हो। माकपा की कोशिश नये गठजोड़ के जरिए अपनी ताकत बढ़ाने की है। पिछले चुनाव में माकपा 44 से घटकर 16 सांसदों तक ही सिमट गई थी। शरद यादव से मुलाकात के बाद येचुरी ने कहा था कि वामदल वैकल्पिक नीतियों के आधार पर राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाना चाहते हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या वामदल तीसरे मोर्चे में शामिल होंगे? येचुरी का कहना था कि यह नीतियों और कार्यक्रमों पर निर्भर करता है।