बाल बाल बचे: जब 70 लाख के टेंट में लगे पंखे को आया चक्कर, लेखपाल की जेब से निकाले ORS पैकेट

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फर्रुखाबाद: चक्कर तो आना ही था| गर्मी इतनी जो थी| सरकारी कर्मचारी चक्कर में पड़े थे| इतना माल मुफ्त लुटा जा रहा है कुछ भी हाथ नहीं आया| आमतौर पर सरकारी योजना की खानापूरी होने में सरकारी महकमे की पौ बारह हो जाती है| गरीब से गरीब होने के प्रमाण पत्र बनबाने से लेकर सूची में नाम शामिल कराने तक कुछ न कुछ घूस मिल ही जाती है| मगर लैपटॉप वितरण में जो कुछ मिलेगा ऊपर वालो को ही मिलेगा| ज्यादा से ज्यादा वितरण व्यवस्था में माल कटेगा| यही सोच सब चक्कर में पड़े है|

लेखपाल की जेब से निकलवाये ओआरएस के पैकेट-
वैसे गर्मी इतनी थी कि कुछ लाभार्थियो को चक्कर आ गया| सरकार की और से आये ओआरएस (चक्कर आने पर पानी में मिला पीने का एक पदार्थ) के पैकेट बच्चो के लिए बिना गिनती के देने को थे| अगर किसी को भी जरुरत पड़े तुरंत दिए जाए ये फरमान था| मगर एक ड्यूटी में लगे मास्टर साहब ने बताया कि जब उनके ब्लाक में एक बच्चे को चक्कर आया तो ओ आर एस के पैकेट gayab मिले| पता चला कि पैकेट लेखपाल की जेब में हैं| ड्यूटी में लगे अन्य कर्मियों को लेखपाल की जेब से ओआरएस के पैकेट निकलवाने के लिए अबे तबे करना पड़ा| उस ब्लाक की देख रेख में लगे एक जिला स्तरीय साहब को उस लेखपाल ने घास तक नहीं डाली| तब उस ब्लाक में लगे एक तेज तर्रार मास्टर ने लेखपाल को हडकाया| घर ले जाओयेगे क्या ये तक कहना पड़ा| बड़ा ही बेशर्म था! चूका यहाँ भी नहीं!
Akhilesh Yadav Laptop Fan
जब पंखे को आया चक्कर-
वैसे पंडाल के बारे में सूचना थी कि ये 70 लाख का ठेका वाला था| मगर 8000 की भीड़ के लिए केवल इंतनी भीषण गर्मी में लगे चंद पंखे और अन्य इंतजाम देख लगा कि यहाँ भी कोई चक्कर है| ये कमीशन का चक्कर हो सकता है| क्योंकि यहीं तो गुंजाईश है| पश्चिम साइड के पंडाल में जहाँ लैपटॉप रख कर बाते जाने थे धूप में थे| कार्यक्रम चल ही रहा था कि अचानक एक पंखे को चक्कर आ गया| ६ फुट की रोड से लटका पंखा अपनी धुरी पर घूमने की लगाह ऊपर लगे कुंडे से ही झूलने लगा| आनन् फानन में नीचे के लाभार्थी कुर्सियां छोड़ भाग खड़े हुए| पंडाल में भगदड़ की स्थिति आ गयी| भला हो नीचे नहीं गिर वर्ना कोई अनहोनी हो जाती| आखिर चक्कर क्यों आया इस पर जाँच होनी चाहिए| जाँच के सहारे ही कुछ परसेंटेज कमीशन का बढ़ सकता है|