लखनऊ| आईएएस बनने का सपना सभी छात्र देखते हैं लेकिन तैयारी के बावजूद इस परीक्षा में चंद लोग ही सफल हो पाते हैं। पहले ऐसा कहा जाता था कि जिसने सिविल सर्विस पास नहीं की उसका जीवन व्यर्थ है| कहाँ कलेक्ट्री,कहाँ ये छोटी-मोटी नौकरियां| लोग कंप्यूटर का कितना ही बखान कर लें या फिर डॉक्टर, इंजीनीयर बन जाएं मगर जो बात सिविल सर्विस में है आईएएस, आईपीएस में है वह इनमें कहां|
कुछ यही बात उत्तर प्रदेश पर बिल्कुल ठीक बैठती है| इस नौकरी के प्रति ऐसा ही जूनून यूपी के छात्रों में भी है, जिसका नातीजा है कि पिछले दस सालों में बने आईएएस अधिकारियों में सबसे ज्यादा लोग यूपी से निकले हुए है| भले ही जनसँख्या की दृष्टि से सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में अपराध और अपराधियों का बोलबाला हो, लेकिन इसी राज्य के युवाओं में देश सेवा का अपना अलग ही जज्बा है |
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शुक्रवार को आए सिविल सर्विस एग्जाम के नतीजों में यूपी के साथ-साथ वेस्ट से आधा दर्जन से ज्यादा का चयन इसकी कहानी खुद बयान करते हैं| यदि आंकड़ों पर गौर की जाए तो एक दशक में उत्तर प्रदेश ने सबसे ज्यादा आईएएस दिए हैं। दूसरे पायदान पर तमिलनाडु है, जबकि बिहार तीसरे नंबर पर है।
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केंद्रीय कार्मिक, लोक सेवा एवं पेंशन मंत्रलय के अधीन कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की रिपोर्ट भी यही कहती है कि गत एक दशक में सबसे ज्यादा आईएएस उत्तर प्रदेश ने ही दिए। यदि पीछे एक दशक की बात करें तो यूपी ने 172 तमिलनाडु ने 134 , बिहार ने 96 , महाराष्ट्र ने 95 , और राजस्थान ने 91 आईएएस देश को दिए हैं| वहीँ, अगर बीते साल की बात करें तो यहाँ भी 26 आईएएस के साथ यूपी का ही दबदबा कायम है|
जहाँ पूरे देश को आईएएस बनाने में यूपी का वर्चस्व कायम है| वहीँ, पिछले दस साल से केंद्र शासित प्रदेशों में से कई का खाता भी नहीं खुल सका| इनमे दादर व नागर हवेली, दमनदीव, लक्ष्यद्वीप शामिल हैं। इनके अलावा दस साल में सबसे कम आईएएस त्रिपुरा, पाडूचेरी और अरुणाचल प्रदेश (2-2), जबकि गोवा, मेघालय, नागालैंड व सिक्किम ने एक-एक आईएएस देश को दिए हैं|
साभार पर्दाफाश