तीन दशक बाद मिला बहराइच की डीएम को न्‍याय, सीओ पिता के हत्‍यारे दरोगा को सजा

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Kinjal DM Bahraichलखनऊ: न्याय की देवी के आँखों पर काली पट्टी होती है। अक्‍सर कानून और न्यायिक प्रक्रिया के ढुलमुल रवैये के साथ ही जांच एजेंसियों की जांच प्रक्रिया की धीमी रफ़्तार भी उन पीड़ितों के जख्मों पर मरहम नहीं लगा पाती जो न्‍याय की आस में कानून की देवी के दरवाजे पर दस्तक देते है। परंतु शनिवार को तीस साल बाद जब प्रांतीय पुलिस सेवा के एक बहादुर और होनहार अधिकारी केपी सिंह सीओ कातिल उनके ही अधीनस्‍थों को सजा सुनाई गयी तो उनकी बेटी और वर्तमान में बहराइच की डीएम किंजल सिंह ने राहत की सांस ली। उनको अफसोस था तो बस इतना कि अपने पति के कातिलों को अंजाम तक पहुंचता देखने के लिये उनकी मां आज जिंदा नहीं थीं।

Kinjal DM Bahraich co KP Singhउत्तर प्रदेश के गोंडा जिले का कटरा बाज़ार में वर्ष 1982 की 12/13 मार्च की रात के पी सिंह के साथियों ने अपने इंसानियत की मर्यादा को ऐसा तार तार किया जिसकी बानगी कम ही देखने में मिलती है। गोंडा पुलिस को सूचना मिली कि कुछ बदमाश कटरा बाज़ार में किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने के लिए जमा हुए है। मुखबीर की सूचना पर सक्रिय हुई गोंडा पुलिस का नेतृत्व जांबाज डिप्टी एसपी के पी सिंह कर रहे थे, कई थानों की पुलिस भी इस मुठभेड़ को अंजाम देने के लिए कटरा बाज़ार की तरफ कूच कर गई थी। एस पी सिंह को तब तक भनक भी नहीं थी कि उनके ही विभाग के कुछ अधिकारी रंजिश वश उन्हें मौत के मुंह में ढकेल रहे थे। स्थानीय पुलिस में जंगल कौडिया थाणे के उपनिरीक्षक आरबी सरोज केपी सिंह से विभागीय रंजिश रखता था, विभागीय जांच में केपी सिंह ने आरबी सरोज के खिलाफ कई गंभीर आरोप पाए थे, इसी जांच और रिपोर्ट के आधार पर आरबी सरोज का तबादला हुआ था तभी से केपी सिंह से उपनिरीक्षक आर बी सरोज रंजिश रखता था।

प्रत्यक्षदर्शियों और इस मुठभेड़ को करीब से जानने वालों की माने तो आरबी सरोज ने माधवपुर गाँव में दो पट्टीदारों की दुश्मनी का फायदा अपनी रंजिश को मिटाने में कर लिया केपीसिंह की ह्त्या मौके पर पहुँचते ही हो गई थी, उसके आठ घंटे बाद पहुंची पुलिस ने गाँव के बारह लोगो उनके घरों से निकाल निकाल कर मौत के घाट उतार दिया था। गाँव वालों ने ये नज़ारा अपनी आँखों से देखा लेकिन डर के मारे चुप रह गए । इस पुरे मामले में डिप्टी एसपी केपी सिंह की ह्त्या और फर्जी मुठभेड़ ने प्रदेश की सियासत को भी हिला दिया तात्कालिक मुख्यमंत्री वीपी सिंह और उनकी सरकार ने ज्यादा कुछ नहीं किया वही विपक्ष ने इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लोकदल के तात्कालिक प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने माधवपुर गाँव का दौरा किया था, और गाँव वालों से बातचीत के बाद जो रिपोर्ट तैयार की थी वो उस समय भी फर्जी मुठभेड़ की ओर ही इशारा करती थी, आज सीबीआई की विशेष अदालत ने उस बात और मुकदमें के साथ तथ्यों को भी सही साबित कर दिया।

मुठभेड़ के बाद पुलिस वालों ने जो अपनी रिपोर्ट अपने उच्चधिकारियों को दी थी उसमें बदमाशों से मुठभेड़ की रिपोर्ट थी लेकिन जांच में जब सारा मामला खुलकर सामने आया तो मारे गए लोगो में सिर्फ एक व्यक्ति का आपराधिक इतिहास था बाकी गांव में रहने वाले युवक थे। पुलिस की रिपोर्ट और तथ्यों को पढ़ने के बात डिप्टी एसपी कृष्ण प्रताप सिंह की पत्नी विभा सिंह जो उस समय गोरखपुर में ट्रेजरी विभाग में तैनात थी, उन्होंने इस मुठभेड़ और पुलिस की रिपोर्ट पर विश्वास नहीं किया और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और केस में पुलिस वालों की दगाबाजी का जिक्र किया सुप्रीम कोर्ट ने विभा सिंह की अपील को मंजूर करते हुए सीबीआई को मुकदमा दर्ज करके जाँच करने के आदेश दिए, सीबीआई ने 17 अगस्त 1984 को मामला दर्ज कर इस केस की जाँच शुरू की। 28 फ़रवरी 1989 को सीबीआई ने 19 लोगो के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। करीब बारह साल चली सुनवाई के बाद और जांच की मंथर गति के बीच सीबीआई की विशेष अदालत ने 7 सितम्बर 2001 को आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किये । जांच की धीमी गति और कानूनी प्रक्रिया के बीच ही 19 आरोपियों में से 10 आरोपियों की मौत सुनवाई के बीच में ही हो गई। इस जघन्य हत्याकांड की जांच और सुनवाई लगातार चल रही। 2004 में विभा सिंह को कैंसर जैसी बींमारी ने अपने आगोश में ले लिया और उनकी मौत हो गई।

भारतीय प्रशासनिक सेवा और उत्तर प्रदेश कैडर अधिकारी बहराइच की जिलाधिकारी किंजल सिंह को 29 मार्च 2013 को आये फैसले ने बड़ी राहत दी। बताते चलें कि किंजल सिंह उसी डिप्टी एसपी कृष्ण प्रताप सिंह और ट्रेजरी अफसर विभा सिंह की संतान हैु। किंजल की उम्र उस वक्त एक वर्ष की थी। किंजल सिंह को अपने पिता का चेहरा तो याद नहीं है पर माँ से सुनी पिता की कहानियाँ उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रही। बहरहाल आज इस परिवार को जिस न्याय की उम्मीद थी वो न्याय आज उन्हें मिल गया। किंजल सिंह आज इस फैसले के आने के बाद खुश तो है, लेकिन अफ़सोस जारी करते हुए कहती है, अगर माँ ज़िंदा होती तो उनके संघर्ष का नतीजा उन्हें कितनी खुशी देता इसकी अंदाजा शायद कोई नहीं लगा सकता।