ग्वालियर जिला और सिंधिया परिवार एक दूसरे के पर्याय हैं। इसी परिवार के पूर्व महाराज माधवराव सिंधिया का जन्म 10 मार्च, 1945 ई. को हुआ था। माधवराव सिंधिया ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया और जीवाजी राव सिंधिया के पुत्र थे। माधवराव सिंधिया ने अपनी शिक्षा सिंधिया स्कूल से की थी।
सिंधिया स्कूल का निर्माण इनके परिवार द्वारा ग्वालियर में कराया गया था। उसके बाद माधवराव सिंधिया ने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से अपनी शिक्षा प्राप्त की। माधवराव सिंधिया का नाम मध्यप्रदेश के चुनिंदा राष्ट्रीय राजनीतिज्ञों में काफ़ी ऊपर है। माधवराव सिंधिया राजनीति के लिए ही नहीं बल्कि कई अन्य रुचियों के लिए भी विख्यात रहे हैं। क्रिकेट, गोल्फ, घुड़सवारी और हर चीज़ के शौक़ीन होते हुए भी माधवराव सिंधिया ने सामान्य व्यक्ति जैसा जीवन व्यतीत किया था।
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रियासतों का वज़ूद खत्म होने के बाद कुछ ही रियासतें हैं जिन्हें जनता ने सिर आंखों पर बिठाया है। उनमें ग्वालियर का नाम सबसे ऊपर है। मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत एक ऐसी रियासत है जिसके लोग आज भी सिंधिया राज परिवार के साथ खड़े हैं। चुनाव चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा का हो।
यदि प्रत्याशी सिंधिया परिवार का है तो उसकी जीत लगभग तय रहती है। हालांकि चुनावी मुक़ाबले कड़े होते हैं, पर पार्टी लाइन से हटकर लोग सिंधिया परिवार को ही समर्थन देते हैं। सिंधिया राज परिवार का समर्थन जिस प्रत्याशी को रहा है वह चाहे जिस भी दल में हो उसे लोगों ने जिताया है।
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1952 से यही परंपरा चली आ रही है। अगर बात माधवराव सिंधिंया की करें तो वह अपनी ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी करके वापस आने के बाद ज़्यादातर समय मुंबई में ही व्यतीत करते थे। राजमाता विजया राजे सिंधिया ही थीं जिसके कारण माधवराव जनसंघ में गए।
1971 में विजयाराजे सिंधिया के पुत्र माधवराव सिंधिया ने अपनी मां की छत्रछाया में राजनीति का ककहरा पढ़ना शुरू किया और उन्होंने तब पहला चुनाव जनसंघ से लड़ा। 1971 के इस चुनाव में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस के ‘डी. के. जाधव’ को एक लाख 41 हज़ार 90 मतों से पराजित किया।
1977 में सिंधिया स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे और उन्होंने बारह कोणीय संघर्ष में लोकदल के ‘जी. एस. ढिल्लन’ को 76 हज़ार 451 मतों से पराजित किया।
1980 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस का दामन थामा और उन्होंने तब जनता पार्टी के प्रत्याशी ‘नरेश जौहरी’ को एक लाख से अधिक मतों से शिकस्त दी। इसके बाद वह लगातार कांग्रेस के टिकट पर संसद में पहुंचते रहे।
1996 में एक बार फिर माधवराव कांग्रेस का दामन छोड़कर चुनाव मैदान में ताल ठोकी और भारी बहुमत से विजयी रहे। 1999 में गुना से माधवराव फिर सांसद बने।
पत्रकार वीर संघवी और नमिता भंडारे द्वारा लिखी किताब “माधवराव सिंधिया ए लाइफ” के विमोचन के समय सोनिया गांधी ने माना था कि उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत में सबसे ज्यादा मदद माधवराव सिंधिया से मिली। इसी किताब में कहा गया है कि पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव ने माधवराव सिंधिया से एक बार कहा था कि मैं आपको अपना उत्तराधिकारी मानता हूं।
लेकिन दबे शब्दों में वह लोगों से यह भी कहते थे कि सिंधिया प्रधानमंत्री बनने के लिए बहुत जल्दबाजी दिखा रहे हैं। 1996 के हवाला कांड में सीबीआई की चार्जशीट में सिंधिया का नाम डालकर राव ने गलती की थी। इसमें कहा गया है कि संभवत: ग्वालियर के शाही परिवार को प्रधानमंत्री पद को दौड़ से बाहर रखने के लिए राव ने सिंधिया का नाम सीबीआई की चार्जशीट में डाला था।
किताब के मुताबिक, राव ने दो गलतियां कीं। पहली गलती तो यह कि उन्होंने चार्जशीट में लाल कृष्ण आडवाणी का नाम डाला। इस चार्जशीट में माधवराव सिंधिया का नाम डालना दूसरी गलती थी। इसी किताब में कहा गया है कि एक दिन अचानक सिंधिया को राव का फोन आया। उन्होंने कहा कि मैं आपको अपना उत्तराधिकारी मानता हूं। मेरी उम्र बढ़ रही है। प्रधानमंत्री के रूप में दूसरी पारी शुरू करने का मैं इच्छुक नहीं हूं।
लेकिन, हवाला चार्जशीट में नाम आने के बाद सिंधिया के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि उनकी छवि एक ईमानदारी राजनेता के रूप में थी। राव ने उनसे कहा था कि आपके खिलाफ जो केस है वह बालू की बुनियाद पर बना है।
इस संबंध में जब सिंधिया ने राव से मुलाकात करने की इच्छा जताई तो उन्होंने कहा कि मैं इसमें आपकी कोई मदद नहीं कर सकता क्योंकि सबकुछ सीबीआई के हाथों में है।
30 सितम्बर 2001 को मैनपुरी के पास एक विमान दुर्घटना में ग्वालियर के सिंधिया परिवार के महाराज माधवराव सिंधिया का निधन हो गया।