वेलेंटाइन डे पर पूर्व महारानी स्व.गायत्री देवी की बायोग्राफी-
‘अ प्रिंसेज रिमेम्बर्स’ के कुछ अंश, जिसमें उन्होंने सवाई मान सिंह द्वितीय (जय) से पहली मुलाकात और अपनी रिलेशनशिप के बारे में लिखा है।
रॉयल लव स्टोरी: जय का सेलिब्रेशन, डिनर और मैं
(यूं शुरू हुआ गायत्री देवी और सवाईमानसिंह की प्रेम से शादी तक का सफर)
1931 की बात है। जय कोलकाता में पोलो सीजन शुरू होने पर हमारे साथ रहने आए थे। हरी रॉल्स रॉयस पर सवार। तब शायद 21 साल के रहे होंगे वो और मैं 12 साल की। बचपन में उन्हें मैं महाराजा ऑफ जयपुर और यॉर हाईनेस कहकर मुखातिब करती थी।
वो तब इंग्लैंड की वुलिच मिलिटरी एकेडमी से ट्रेनिंग लेकर लौटे थे। वहां से लौटकर उन्होंने जयपुर पोलो टीम बनाई। उस वक्त मैं एक ही सपना देखती थी। परी-कथाओं से ठीक उलट। मैं चाहती थी कि कोई जादू हो, मैं राजकुमारी से उनके घोड़े की सईस बन जाऊं। उन्हें उनकी छड़ी पकड़ाऊं और इसी बहाने उनके हाथ को छू भर लूं।
रेस्त्रां में जाने की अनुमति मांगी
अगले साल सर्दियों में जय फिर कोलकाता आए और एक बार फिर इंडिया पोलो एसोसिएशन चैम्पियनशिप जीत ली। मां उनकी जीत पर बहुत उत्साहित थीं। उनसे कहा, आज तुम जो चाहोगे तुम्हें मिल जाएगा। उन्होंने मां से मुझे कोलकाता के सबसे फैशनेबल रेस्त्रां में डिनर पर ले जाने की अनुमति मांगी। मां ने भी तुरंत हामी भर दी। फिर मेरे लिए उस खास सेलिब्रेशन डिनर पर जाने के लिए साड़ी की तलाश शुरू हुई, क्योंकि तब तक तो मैं सिर्फ ट्यूनिक और पायजामा पहनती थी।
कुछ समय बाद मैंने जय को मां से यह कहते हुए सुना कि वो मुझसे शादी करना चाहते हैं। मैं जय की हर बात ध्यान से सुनती और वो जो भी कहते उसकी नकल करती। वो पोलो खेलते हुए कलाई पर हमेशा बैंडेज बांधते थे। मुझे उनका पुराना बैंडेज मिला। ऐसा लगा जैसे कोई खजाना मिल गया। मैंने उसके कुछ धागे अपने लॉकेट के अंदर संभाल लिए। फिर जहां भी जाती लॉकेट पहनकर जाती थी। मेरा लकी चार्म था वो।
जब जय ने किया प्रपोज
कुछ समय बाद मेरा एडमिशन लंदन के एक फिनिशिंग स्कूल में हुआ। जब स्कूल का टर्म खत्म हुआ तो जय ने मुझे हाइड पार्क में बुलाया। उस दिन मुझे अहसास हुआ कि जय की सोच कितनी उन्नत है। उन्होंने कहा, मैं आपसे शादी करना चाहता हूं और मां से इस बारे में बात भी कर चुका हूं पर आपकी इच्छा जाने बिना इस बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहूंगा। आपके लिए यह जानना जरूरी है कि मैं पोलो खेलता हूं, घुड़सवारी करता हूं और हवाईजहाज भी उड़ाता हूं इसलिए मेरे साथ कभी भी कोई भी हादसा हो सकता है। ऐसे में क्या आप मुझसे शादी करना चाहेंगी? मैंने उनकी बात सुनते ही कहा – हां, बिल्कुल।
कान्स में जय और मेरे बीच पहली बार बहस हुई। तब जय समुंद्र में तैरने जा रहे थे और उन्होंने मेरी दी हुई अंगूठी मेरी जगह मेरी बहन मेनका को संभालने को दी। मुझसे सहा नहीं गया और मैंने उस अंगुठी को समुंद्र में फैंक दिया। जय ने मुझे बहुत प्यार से समझाया कि वो मेरी भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाना चाहते थे। मैं अभी संभली ही थी कि अचानक उन्होंने मुझे धक्का दिया और मैं समुंद्र के पानी में गिर गई। गुस्से में मैंने भी उनके जुते पानी में फैंक दिए।
उसी दिन लंच पर जब उनसे मिली तो मेरी उम्मीद के विपरित उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा कि वो जुते उन्हें पहले बड़े थे।पर अब पानी में नहाकर सिकुड़ने के बाद बिल्कुल फिट आ रहे है। हालांकि हमारी तकरार बहुत सीमित होती थी, पर जय से दूरी का ख्याल मुझे मायूस कर जाता था। वो फिर बियारिट्ज चले गए और वहां से रोज शाम को मुझे फोन करते। चूंकि हम किसी की नजरों में आना नहीं चाहते थे इसलिए मैं घंटों होटल लॉबी के टेलिफोन बूथ के फर्श पर बैठकर उनके फोन का इंतजार करती थी।