फर्रुखाबाद :नवाबी दौर से ही फर्रुखाबाद अपनी कारीगरी और नयेपन के जौहर दिखाता रहा है। यहां की दरदोजी और छपाई की महीन डिजाइनें व कारीगरी आपनी मिसाल आप है। फन फर्रुखाबाद के कारीगरों की नसों में खून बनकर दौड़ता है। यही फन फर्रुखाबाद की ताजियेदारी में भी नजर आता है। जरी व हालों के ताजिये केवल फर्रुखाबाद में ही नजर आते हैं। यहां के मोहल्ला में मोहल्ल बजरिया में अनोखा ताजिया बनाया जाता है। इस ताजिये को बनाने का हुनर मोहाम्मद अशफाक ने अपने बुजुर्गों से सीखा। बजरिया में बनने वाला हरी भरी गुम्बद और मीनार वाला हालों का ताजिया सरसों की आकृति वाले हालों के बीजों से तैयार किया जाता है। अंकुर फूटने के साथ ही ताजिया हराभरा दिखाई देने लगता है। इसे मोहर्रम की 3 तारिख से इस बनाना शुरू किया जाता है। पूरा माडल ताजिये जैसा होता है पर उसका आकार हरियाली से हरा भरा होता है। अब ताजिये को बनाने में अशफाक का पूरा परिवार और मोहल्ला भी जुटता है।जब हरियाली कम हो रही पेड़ काटे जा रहे हैं तब सरसों जैसे हालों के अंकुरों से ताजिया एक नया पैगाम देता है। ऐसे में यह पैगाम हरियाली बचने का है। यह ताजिया इमाम हुसैन के प्रति अकीदत के साथ ही पर्यावरण संरक्षण का भी सन्देश देता है। अत्यंत नाजुक किल्ले (अंकुर) ताजिये को हराभरा दिखाते हैं।
कायमगंज: नौवीं मुहर्रम पर राईन बिरादरी ने अलम उठाकर भारी जुलूस के साथ शहीदे आजम हजरत इमाम हुसैन (रजि0) की बरगाह में अकीदत के साथ दरूदो सलाम का हदिया पेश किया।
मगरिव की नमाज के बाद जामा मस्जिद कायमगंज से शहर की मेवाफरोश बिरादरी की जानिव से अलम जुलूस नगर के मुख्य मार्गो से निकाला गया। जुलूसके साथ चल रही भारी भीड़ पूरी रास्ता याहुसैन याहुसैन की सदाओं के साथ मर्सिये पढ़ती और फातिहा दरूद करती बढ़ती रही। अलम जुलूस के साथ चल रहे ढोलों की मातमी धुनों से पूरा क्षेत्र गूंजता रहा। जगह जगह लोगों ने अलम जुलूस को रोक कर मिठाई और चाय काफी के साथ इस हुसैनी जुलूस का इस्तकबाल किया। सड़क के दोनों तरफ खड़ी औरतों, बच्चों और पुरूषों की भारी भीड़ अपने आका के जुलूस को अदब और एहतराम के साथ अपने नजराने पेश करती रही। यह अलम जुलूस जामामस्जिद से चलकर काजमखां, बजरिया, श्यामागेट, लोहाई बाजार, बजाजा, पुरानी गल्ला मंडी होता हुआ जटवारे में इमाम चौक पर जाकर सम्पन्न हुआ।