मुलायम सिंह यादव: समाजवाद की लड़ाई में परिवारवाद से हार गये

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समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव आज अपना 74वां जन्मदिन मना रहे हैं| मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन पार्टी के कार्यकर्ता 22 नवंबर को पूरे हर्षोल्लास के साथ मना रहे हैं|
उत्तर प्रदेश के जनपद इटावा के सैफई गाँव में मूर्तिदेवी के कोख से जन्मे मुलायम सिंह यादव के जन्म 22 नवम्बर1939 के समय उनके जन्मदाता पिता सुघर सिंह यादव ने भी तनिक कल्पना नहीं की होगी कि उनकी संतान के रूप में जन्मा यह अबोध बालक युगों युगों तक के लिए कुल का नाम रोशन करेगा| क्या उस वक़्त किसी ने भी तनिक सा सोचा होगा कि एक किसान के घर जन्मा यह बालक मुलायम अपनी वैचारिक-मानसिक दृढ़ता और कुशल संगठन छमता के बलबूते समाजवादी विचारक डॉ. राम मनोहर लोहिया का सबसे बड़ा जनाधार वाला अनुयायी व उनके संकल्पों,उनके विचारो को प्रचारित-प्रसारित करने वाला बनेगा? परंतु मुलायम सिंह यादव लोहिया और जेपी के समाजवाद की लड़ाई लड़ते-लड़ते कहीं न कहीं परिवारवाद से हार ही गये|
डॉ राम मनोहर लोहिया के देहावसान के बाद 1967 से लेकर 1992 तक समाजवादी आन्दोलन-संगठन का विघटन अफसोसजनक व दुर्भाग्य पूर्ण रहा | 4-5 नवम्बर 1992 को बेगम हज़रत महल पार्क-लखनऊ में जब मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी के स्थापना सम्मेलन में देश भर के तपे-तपाये समाजवादियो के बीच संकल्प लिया कि अब मैं डॉ लोहिया द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर समाजवादी पार्टी का पुनर्गठन करूँगा, तब से ले कर आज तक धरतीपुत्र की उपाधि से नवाजे गये मुलायम सिंह यादव ने तमाम राजनीतिक दुश्वारिया झेली हैं | डॉ लोहिया के कार्यक्रमों अन्याय के विरुद्ध सिविल नाफ़रमानी, सत्याग्रह, मारेंगे नहीं पर मानेगे नहीं, अहिंसा, लघु उद्योग, कुटीर उद्योग आदि मुद्दों को कर्म के क्षेत्र में व्यापक जनाधार करके स्थापित करने वाले सिर्फ मुलायम सिंह यादव ही हैं | आज के राजनीतिक दौर में जहाँ सिर्फ भीड़ ही राजनीतिक ताकत मानी जाती है, उस दौर में डॉ लोहिया के विचारो-कार्यक्रमों को मजबूती से व्यावहारिक रूप में लागु करते हुये मुलायम सिंह यादव ने भीड़ के पैमाने पर भी खुद को और समाजवादी पार्टी को हमेशा अव्वल साबित करके दिखाया है |
4-5 नवम्बर,1992 को समाजवादी पार्टी के स्थापना सम्मेलन में तपे-तपाये धुर समाजवादियो का जमावड़ा डॉ लोहिया के विचारो-संकल्पों के प्रचार-प्रसार व समाजवादी मूल्यों की सरकार बनाने को लेकर हुआ था| समाजवादी पार्टी की स्थापना को 20 वर्ष पुरे हो चुके हैं| इन 20 वर्षो में मुलायम सिंह यादव व समाजवादी पार्टी दोनों ने तमाम उतार-चढाव देखे है| तमाम लोग समाजवादी पार्टी से अलग हुये और तमाम जुड़े भी, लेकिन जिन डॉ लोहिया के विचारो को ,समाजवादी सोच व संघर्ष की मशाल को मुलायम सिंह यादव ने अपने मजबूत हाथो में पकड़ लिया था, उस पकड़ को मुलायम सिंह यादव ने कभी भी तनिक भी ढीला नहीं किया| अपनी-अपनी राजनीतिक विवशता-महत्वाकांछाओं की पूर्ति ना होते देख कई समाजवादी नेताओ ने समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव का साथ छोड़ा| चन्द वैचारिक नेताओ ने बिना जमीनी हकीकत समझे समाजवादी पार्टी को त्याग करके डॉ लोहिया के विचारो के प्रचार -प्रसार व अनुपालन के एक बड़े अवसर को त्यागा| मौका पाकर तमाम अवसरवादी ,मौका परस्त ,शौकिया राजनीति करने वालो ने भी एक काकस बनाकर समाजवादी पार्टी को आघात लगाया| मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी ,समाजवादी आन्दोलन को कमज़ोर करने की कुचेष्टा सफल नहीं हो पाई और ऐसे तत्वों को समाजवादी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया|
डॉ राम मनोहर लोहिया एक महान चिन्तक थे, अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने का संकल्प उनके लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण था| 12 अक्टूबर 1967 को डॉ लोहिया के देहावसान के बाद डॉ लोहिया को एक महापुरुष मानने वाले मुलायम सिंह यादव ने आगे बढ़ कर मृत समाजवादी आन्दोलन में आगे बढ़ कर नयी जान फूंक दी| प्रसिद्ध समाजवादी लेखक लक्ष्मी कान्त वर्मा ने अपनी पुस्तक समाजवादी आन्दोलन-लोहिया के बाद में लिखा है कि दस-बारह वर्ष आशा-निराशा भरे अनुभवों से गुजरने के बाद जब मुलायम सिंह ने 1992 में डॉ लोहिया का नाम लेकर और उनके समस्त रचनात्मक कार्यक्रमों को स्वीकार करते हुये समाजवादी आन्दोलन को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया तो वह ना तो गाँधी थे और ना ही लोहिया थे| वह मात्र अपने युग के एक जागरूक व्यक्ति के रूप में पहचान बनाने की कोशिश कर रहे थे| मुलायम सिंह वास्तव में एक ऐसे व्यक्ति हैं जिसने स्वतंत्रता के तीन-चार दशको तक आम आदमी के दुःख-दर्द,अन्याय और उपेक्षा को देखा और भोगा है| वे उस अंतराल की पीढ़ी के के प्रतिनिधि है जो समस्त संवेदनशील बिन्दुओ को अपने में समेट कर समाजवाद सत्ता और सगुण सिद्धांतो को कार्यान्वित करने का सपना देख रही है| जिस तरह गाँधी ने कभी यह दावा नहीं किया कि वह स्वयं कोई शंकराचार्य या मसीहा हैं,ठीक उसी प्रकार मुलायम ने भी कभी यह दावा नहीं किया कि वह दुसरे लोहिया हैं| उन्होंने डॉ लोहिया के साथ-साथ जयप्रकाश और आचार्य नरेन्द्र देव को भी अपना पूर्वज स्वीकार किया है और जब इन्होने इनको अपना पूर्वज मान लिया है तो यह शंका अपने आप समाप्त हो जाती है कि वह डॉ लोहिया बनना चाहते है या अकेले उन्ही के सिद्धांतो के उत्तराधिकारी हैं| वे स्वतंत्रता के बाद आर्थिक ,सामजिक,सांस्कृतिक और राजनीतिक न्याय के क्षेत्र में संघर्ष करने वाले चौधरी चरण सिंह के भी उत्तराधिकारी हैं| डॉ भीम राव अम्बेडकर के भी उत्तराधिकारी हैं और खुले दिमाग के एक संघर्ष शील समाजवादी कार्यकर्ता के रूप में लोहिया ,जयप्रकाश, आचार्य नरेन्द्र देव, मधु लिमये, राज नारायण इन सब के विचारो और राजनीतिक प्रयोगों और प्रयासों के उत्तराधिकारी है|
विगत नवम्बर 2011 में भी डॉ लोहिया के विचारो पर समाजवादी पार्टी का गठन करने वाले मुलायम सिंह यादव एक बार फिर से राजनीतिक चुनौतिओ का सामना करने के लिए कमर कस चुके थे | राजनीतिक विश्लेषकों के इस पूर्वानुमान कि इस बार के उत्तर प्रदेश के विधान सभा के आम चुनावो में सपा की केंद्रीय भूमिका में मुलायम सिंह यादव नहीं रहेंगे, असत्य साबित हो चुका है| अपने पिछले जन्म दिन के मात्र 5 दिन पूर्व 16 नवम्बर को राम लीला मैदान-एटा में आयोजित जन सभा में उमड़े अथाह जन सैलाब को संबोधित करके नयी चेतना व विश्वास उत्पन्न करने में कामयाबी हासिल करने वाले धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव ने पुनः साबित कर दिखाया था कि 73 साल की उम्र में भी सपा कार्यकर्ताओ ,जनता व डॉ लोहिया के विचारो के प्रति समर्पण में तनिक भी कमी नहीं आयी है| चाहे उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार के द्वारा आम जनता,किसानों व जन संगठनो पे किये गये अत्याचार की बात हो या चाहे कांग्रेस की केंद्र सरकार के द्वारा राम लीला मैदान में बाबा राम देव और सोती हुई जनता पर ढाए गये जुल्म की बात हो ,मुलायम सिंह यादव ने हर एक जुल्म की ,अत्याचार की पुरजोर खिलाफत की है| डॉ राम मनोहर लोहिया के अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने के सिद्धांत का पालन करते हुये समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में जुल्मी सरकार बदलने की पुरजोर अपील के साथ एक बार पुनः क्रांति रथ यात्रा को उत्तर प्रदेश की सभी विधान सभाओ में भ्रमण हेतु रवाना किया था | उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के कुशल नेतृत्व में निकली रथ यात्रा में भारी तादात में जनता की उमड़ती भीड़ ने जहाँ सपा नेताओ के हौसले बढ़ा दिये थे और बसपा के खिलाफ समाजवादी पार्टी का युवा चेहरा अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के लोगों की उम्मीदों के नव केंद्र बिंदु बनकर उभरे| समाजवादी संघर्ष की विरासत को आगे बढ़ाते हुये मुलायम सिंह यादव के एक अन्य सेनानी इलाहाबाद के युवा नेता अभिषेक यादव ने अपने साथियो के साथ मिल कर 14 नवम्बर को समाजवादी मूल्यों और छात्र संघ बहाली की हक़ की लड़ाई लड़ने के मार्ग को और अधिक दृढ़ता प्रदान की थी| समाजवादी संघर्ष की विरासत को बढ़ाते हुये धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के पहले और बाद में भी समाजवादी संघर्ष के तमाम तोहफे देकर आम जनता के हितो की आवाज बुलंद करते हुये उत्तर प्रदेश में समाजवादी कार्यकर्ताओ ने विधान सभा के आम चुनावों में जनता का विश्वास अर्जित कर समाजवादी मूल्यों की सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त किया| डॉ लोहिया के अनुयायी मुलायम सिंह यादव ने अपने को हर बार साबित कर दिखाया था और समाजवादी पार्टी के नेताओ और कार्यकर्ताओ ने भी बहुजन समाज पार्टी की तत्कालीन तानाशाह सरकार के खिलाफ परीक्षा की घडी में अपने अपने संघर्ष रूपी योगदान की आहुति डालकर धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव को आने वाले इस जन्मदिन का उपहार अग्रिम रूप से ही दे दिया था ।
समाजवादी आन्दोलन की विरासत को संजोंये हुए धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री उप्र शासन के पद पर रहते हुए 1995 में कहा था,- लोहिया जरूर चले गये हैं दुनिया से लेकिन उनके विचारों को कोई मिटा नहीं सकता। उनके विचारों पर चलना पडे़गा।आज उसी पर चलने की हम लोग कोशिश कर रहें हैं। चाहे विशेष अवसर की नीति हो,चाहे भूमि सेना का गठन हो, चाहे अंग्रेजी हटाओ का आन्दोलन हो, उसका समर्थन हम आज कर रहे हैं, सरकार में रहकर भी कर रहे हैं।
भारत में समाजवाद की सोच,विचारधारा का जन्म भारत की ब्रितानिया हुकूमत से जंग-ए-आजादी के दौरान जेल के सींखचों,काल कोठरी में हुआ था।राजनैतिक आजादी व मूल्यों के साथ-साथ भारत में समाजवाद मूलतःनैतिक मूल्यों से भी जुड़ा हुआ है। समाजवादी आन्दोलन के पुरोधा आचार्य नरेन्द्र देव ने महात्मा गाँधी के जीवन दर्शन,व्यक्तित्व व जंग-ए-आजादी के आन्दोलन की जानकारी हासिल करके ही समाजवादी आन्दोलन को समझने पर जोर दिया था।लोकनायक जयप्रकाश नारायण अपने जीवन की अंतिम सांस तक समाजवाद,गाँधीवाद,सर्वोदय ओर सम्पूर्ण क्रांति की अवधारणाओं के लिए जूझते रहे।जेपी का भी सारा आन्दोलन गाँधी जी के सिद्धान्तों और समाजवाद के समीकरणों पर ही आधारित है। समाजवादी संगठन और समाजवादी नेता पूर्णरूपेण महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित थे। दरअसल वास्तविकता ही है कि डा. लोहिया के देहावसान के पश्चात् समाजवादी आन्दोलन में बिखराव आ गया।जेपी का व्यवस्था परिवर्तन के लिए खड़ा किया गया जनान्दोलन मात्र सत्ता परिवर्तन बन के रह गय। आज उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार है , सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव साफ तौर पर कह चुके है कि सरकार के कार्यो पर नज़र रखने और समाजवादी कार्यकर्ताओ से संवाद बरक़रार रखने की मंशा के कारण ही वो खुद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं बने है जबकि निर्वाचित विधायकों की इच्छा थी। समाजवादी संघर्ष की विरासत के चलते उम्मीदों के केंद्र बिंदु युवा मुख्यमंत्री को सत्ता प्राप्ति के संघर्ष में भारी विजय हासिल हुई और समाजवादी संकल्पों – जनता से किये गये वायदों को पूरा करने व भ्रष्ट -नाकारा-गैरजिम्मेदार नौकरशाहों को सही ढर्रे पर लाने का प्रयास पुनः एक चुनौती माफिक अखिलेश यादव के सम्मुख है ।
मुलायम सिंह यादव पर लिखी गई पुस्तकें
मुलायम सिंह पर कई पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं| इनमे पहला नाम ‘मुलायम सिंह यादव- चिंतन और विचार’ है, जिसे अशोक कुमार शर्मा ने सम्पादित किया| दूसरी राम सिंह तथा अंशुमान यादव द्वारा लिखी गयी ‘मुलायम सिंह: ए पोलिटिकल बायोग्राफी’ है| इसे अब तक की उनकी सर्वाधिक प्रमाणित जीवन कथा मानी जाती है| सिर्फ यही नहीं लखनऊ की पत्रकार डॉ नूतन ठाकुर ने मुलायम सिंह के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक महत्व को स्पष्ट करते हुए एक पुस्तक लिखने का कार्य प्रारम्भ किया है, जो कि जल्द ही पूरा हो जाएगा|