मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने मनसे कार्यकर्ताओं को शिवसेना प्रमुख और अपने चाचा बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार में शामिल होने से रोका था। माना जा रहा है कि यह कार्यकर्ता राज के निवास पर एकत्र हुए थे और मातोश्री जाना चाहते थे, परंतु पार्टी प्रमुख के मना करने वह वापस लौटे गए।
शिवसेना और मनसे के विलय की अटकलों के बीच यह एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम माना जा रहा है। जिससे इस बात को बल मिल रहा है कि अभी तक दोनों चचेरे भाइयों राज और उद्धव ठाकरे के बीच दूरियां कम नहीं हो पाई है। उनके बीच की दूरियों का अहसास रविवार को बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार के वक्त भी महसूस किया गया था, जब शिवसेना प्रमुख की पार्थिव देह को ले जा रहे ट्रक पर से राज ठाकरे नदारद थे। उनके इस रवैये को लेकर राजनीतिक हल्कों में काफी चर्चा भी हुई थी। राज ठाकरे का बाल ठाकरे की अंतिम यात्रा बीच में ही छोड़ कर चले जाना सबके लिए एक बड़ा सवाल बन गया था, लेकिन अब इसकी वजह सामने आ गई है। दरअसल, उद्धव ठाकरे ने राज को पहले ही बता दिया था कि उन्हें बाल ठाकरे की अर्थी को कंधा नहीं देने दिया जाएगा। इसके बाद राज अपने चाचा की अंतिम यात्रा बीच में ही छोड़कर चले गए और सीधे अंतिम संस्कार के वक्त शिवाजी पार्क पहुंचे। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के एक अहम सूत्र ने बताया कि पार्टी अध्यक्ष राज ठाकरे को जानबूझ कर सभी पारिवारिक रीति-रिवाजों से दूर रखा गया। उन्होंने बताया कि राज को बाला साहेब की अर्थी को कंधा देने से मना कर दिया गया था, जबकि उनका भतीजा होने के नाते यह राज का अधिकार था। सूत्रों के अनुसर राज ठाकरे के निवास कृष्णा कुंज में रविवार सुबह मनसे कार्यकर्ताओं का हुजूम बाल ठाकरे की अंतिम यात्रा में शामिल होने के जुटा था और वे सभी मातोश्री जाना चाहते थे। परंतु उन सभी को वहां से वापस लौट जाने के लिए कहा गया। जिसके बाद लगभग 1 हजार कार्यकर्ता बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार में शामिल हुए बिना वहां से वापस लौट गए।
दोनों भाइयों के बीच बढ़ी दूरियों का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि रविवार को ठाकरे की अंतिम यात्रा को बीच में छोड़ राज ठाकरे अपने घर आ गए थे। बाद में कुछ समय के लिए उस समय शिवाजी पार्क में नजर आए जब बाल ठाकरे की पार्थिव देह को अग्नि को समर्पित किया जाना था। इसके बाद सोमवार को भी वह उद्धव के साथ नजर नहीं आए, जब उनका चचेरा भाई अपने पिता बाल ठाकरे की अस्थियों को लेने शिवाजी पार्क गया था।
मनसे के एक पदाधिकारी ने कहा कि न ही हम उत्सुक है और न ही हम शिवसेना और मनसे के विलय की उम्मीद कर हैं। हम अपने मराठी मानुस के एजेंडे पर आगे बढ़ेंगे जिसके लिए हमें भारी समर्थन प्राप्त हुआ है।
दूसरी ओर, शिवसेना के प्रतिनिधियों ने कहा कि वे अपने हिंदुत्व के एजेंडे पर कायम हैं। हम शिवसेना और मनसे के विलय को लेकर बहुत उत्सुक नहीं है। एक शिवेसना कार्यकर्ता ने कहा कि वे अपनी पहचान बनाए रखने के इच्छुक हैं। (साभार-मिड डे, मुंमबई)