लखनऊ से कलकत्ता, वहां से दिल्ली पहुंचे खबरीलाल के पास खबरों का पूरा पुलंदा था। सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की तैयारी, सपा सांसद किरणमय नंदा की कलकत्ते की तैयारियों, सुर्खियों, आर्थिक और राजनैतिक प्रस्तावों के आगे पीछे की आन द रिकार्ड और आफ द रिकार्ड सारी टिप्पणियों, अखिलेश की ममता से भेंट, सपा सुप्रीमो की अव्यवस्थित पत्रकार वार्ता तथा कांग्रेस से मेल को लेकर सपा में ऊपर से नीचे चलने वाला द्वन्द आदि आदि खबरीलाल के दिल से बाहर आने को कुलांचे मार रहा था। जब खबरीलाल अपनी पर आते हैं तब न तो उन्हें सपा सुप्रीमो से खौफ लगता है और न सपा में गैर कांग्रेस वाद के शेष रह गये एक मात्र सिपाही लाल मनमोहन सिंह की बेचारगी, प्रो0 रामगोपाल और आजम खां साहब की गैर मुनासिब तीखी टिप्पणियों का भी कोई खौफ भी नहीं सताता। रही बात युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की, उनकी बुराई, आलोचना या शिकायत करने वालों पर खबरीलाल राशन पानी लेकर सवारी करने लगते हैं।
खबरीलाल में एक बात सबसे अच्छी है, कि उन्हें जब तक कोई जिज्ञासु श्रोता नहीं मिलता वह खबरों की अपनी पोटली नहीं खोलते, तो नहीं ही खोलते। अपने गुन्ताड़े में घूम रहे थे। पितौरे के टीपू, धीरपुर के अधीर सिंह और गणेशपुर के भारत भारती मिल गए। तीनों ने एक साथ आवाज दी अरे खबरीलाल, जरा हम फर्रुखाबाद वालों को भी देख लिया करो। आप तो हमें घास ही नहीं डालते। खबरीलाल भी चूकने वाले नहीं थे। बोले बादशाहों घास तो गधों को डाली जाती है। आप तीनो ठहरे काठियावाड़ी गबरू घोड़े। ब्रहमा, विष्णु महेश या यूं कहो गांधी जी के तीनो बंदर। पितौरे के टीपू बोले अब आपसे क्या कहें। आप ठहरे हमारे देस के एक। खैर छोड़ो आपके झोले में गिफ्ट सारी खालिस कलकत्ते और बंगाल की हैं। क्या अखिलेश की तरह ममता दीदी से मिलने गए थे। खबरीलाल बोले क्यों भाई टीपू क्या बंगाल की शेरनी और यूपी के टीपू का डर दिन में भी सताता रहता है।
हां हम कलकत्ते से आ रहे हैं। वहां सपा कार्यक्रम था। वहां से जो खबर है वह तुम्हारे लिए अच्छी नहीं है। तुमने जान ही लिया होगा कि सपा रायबरेली और अमेठी छोड़कर यूपी की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। अब तुम्हारे पिछले संग्राम के बसपाई साथी हरदोई नरेश सपा में हैं। सपा के अधीर सिंह भाजपा में हैं। रह गए भारत भारती उन्हें तो पूर्व सांसद से सांसद बनने में चाहें जितने पापड़ बेलने पड़ें। वह न थकने वाले हैं और नहीं रुकने वाले। ऐसे में भैया बुरा मत मानना हमारे अपने हो जिले के हो भले प्रतिष्ठित परिवार के हो। या तो अपनी चाल बदल लो या अपनी सीट बदल लो। वरना रामलला के कल्याण की तरह तुम्हारा भी कल्याण हमें असंभव सा दिख रहा है।
खबरीलाल की सपाट बयानी से हर समय वे परवाह दिखने वाले पितौरे पितौरे के टीपू के तेवर कानों तक सुर्ख हो गए। अपने को काबू में रखते हुए बोले हां खबरीलाल आगे बताओ तुम तो हमारे सच्चे हमदर्द और मित्र हो। तुम्हारी बात का हमने कभी बुरा नहीं माना। खबरीलाल चूके नहीं। बोले तुमने अन्ना हजारे और उनकी टीम के लोगों के लिए जो कुछ कहा है और किया है। उसे लोग भूले नहीं हैं। हम यह दावा नहीं करते कि अन्ना हजारे केजरीवाल, बाबा रामदेव, हिन्दुस्तान की राजनीति के लिए आसमान से तारे तोड़ लायेंगे। परन्तु राजनीति के विषधरों का जो कच्चा चिट्ठा हाल के दिनों में लोगों के सामने आया है और आगे आएगा उससे लोगों के मन में नेता और राजनीति के प्रति वितृष्णा बढ़ती जा रही है। नतीजन इस बार मतदान का प्रतिशत निश्चित रूप से बढ़ेगा। इससे थोड़ी ही सही लेकिन राजनीति की सड़ांध और गंदगी कम जरूर होगी। पिछली बार तो तुम कम मतदान और वोटों के बंटवारे में जैस-तैसे बस जीत ही गये थे। परन्तु इस बार …….।
पितौरे के टीपू के लिये खबरीलाल की बातों से गुस्से को रोक पाना कठिन हो रहा था। नहीं रहा गया तो बोले- अब बस भी करो खबरीलाल कुछ हमारी भी सुनो। अच्छे श्रोता भी बनो। हमने फर्रुखाबाद की जनता के दिलों पर राज किया है। हमारे परिवार के लोगों ने आजादी से पहिले भी और आज तक सत्ताधारियों से अच्छे सम्बंध रखे हैं। उनकी सेवा की है। इस सेवा के बदले हमें मेवा भी खूब मिली। हमने अपनी सेवाओं के बदले प्राप्त सुख का भोग भी जमकर किया है। चुनाव हारना जीतना हमारे लिए रंचमात्र भी माने नहीं रखता। हमारी चाल, तौर-तरीके, आदतें पसंदगी-नापसंदगी, मिजाज रोज रोज नहीं बदलती। हमें बदलने की कोशिश करने वाले आज दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। लेकिन हम नहीं बदले न बदलेंगे।
खबरीलाल अब बात छेड़ी है तो कान खोलकर सुनो! कलकत्ते की जिन खबरों को गले में लटकाये घूम रहे हो, वह कांग्रेस के दीवाने आम और दीवाने खास से ही प्लांट की गई हैं। पहिले भड़कते तेवर ना-नुकुर, फिर हां-जी हां-जी। हाथ के सहयोग से सायकिल तेज चलेगी। सायकिल के बिना हाथ कुछ नहीं कर पाएगा। हम एक दूसरे के लिए गुड़भरा हंसिया हैं। न हमें निगला जा सकता है और न ही उन्हें उगला जा सकता है। हम एक दूसरे के अविश्वसनीय परन्तु अपरिहार्य सहयोगी हैं। थोड़ी बहुत कसर रह जाएगी उसे सीबीआई के हंटर से मैनेज कर लेंगे। इसलिए हमारी चिंता छोड़कर उन चंपुओं की चिंता करो जिन्हें बल्ली में सांसदी की रोटी टांगकर तुम नचाते घूम रहे। अच्छा फिर मिलेंगे। बाय-बाय टाटा। इतना कहकर पितौरे के टीपू कार से फुर्र हो गये और खबरीलाल देखते ही रह गये।
सतीश दीक्षित
एडवोकेट