बीटीसी व विशिष्ट बीटीसी वाले बिना टीईटी बनेंगे शिक्षक

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उत्तर प्रदेश सरकार बीटीसी 2004 और 2004 से लेकर 2008 तक विशिष्ट बीटीसी करने वालों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास करने की अनिवार्यता समाप्त करने जा रही है। इस संबंध में बेसिक शिक्षा मंत्री रामगोविंद चौधरी की अध्यक्षता में हुई बैठक में सहमति बन चुकी है और राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) ने इसके आधार पर शासन को प्रस्ताव भी भेज दिया है। कैबिनेट से मंजूरी के लिए शीघ्र ही प्रस्ताव रखने की तैयारी है। मुख्यमंत्री इस संबंध में सीधे अनुमति भी दे सकते हैं। इसके बाद करीब 5,500 अभ्यर्थियों के शिक्षक बनने का इंतजार तत्काल खत्म हो जाएगा।

प्रदेश के बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में शिक्षक रखने की योग्यता बीटीसी है। विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) से अनुमति लेकर बीएड डिग्रीधारकों को छह माह का विशिष्ट बीटीसी का प्रशिक्षण देकर सहायक अध्यापक रखा जाता रहा है। यूपी में वर्ष 2004 में सामान्य बीटीसी और वर्ष 2004, 2007 और 2008 में विशिष्ट बीटीसी के तहत भर्ती प्रक्रिया की गई। इस अवधि में चयनित कुछ अभ्यर्थियों को कुछ कमियों के चलते प्रशिक्षण देने से मना कर दिया गया।

कोर्ट के निर्देश पर बाद में ऐसे अभ्यर्थियों को वर्ष 2011 में प्रशिक्षण दिया गया। यूपी में शिक्षा का अधिकार अधिनियम की नियमावली जुलाई 2011 में जारी की गई। इसके जारी होने के साथ यह अनिवार्य कर दिया गया कि टीईटी पास करने वाला ही शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में शामिल होने के लिए पात्र होगा। इसके चलते कोर्ट के आदेश पर ट्रेनिंग पाने वालों की नियुक्ति लटक गई।

वर्ष 2011 में तत्कालीन बसपा सरकार के निर्णय के आधार पर बीटीसी और विशिष्ट बीटीसी करने वालों को पहली बार आयोजित टीईटी में शामिल होने का मौका दिया गया, लेकिन कुछ पास हुए और कुछ नहीं। ऐसे अभ्यर्थियों ने बेसिक शिक्षा मंत्री से मुलाकात की और तर्क दिया कि उनके पद स्वीकृत हैं और उनकी ट्रेनिंग का निर्णय शिक्षा का अधिकार अधिनियम नियमावली लागू होने से पहले हुई है, इसलिए उन्हें भी अन्य लाभार्थियों की तरह नियुक्ति दी जाए।

सूत्रों का कहना है कि इसके आधार पर ही यह सहमति बनी है। एससीईआरटी ने इसके आधार पर ही प्रस्ताव भेजा है। इसमें तर्क दिया गया है कि बीटीसी 2004 और वर्ष 2004 से लेकर वर्ष 2008 तक विशिष्ट बीटीसी के अभ्यर्थियों के प्रशिक्षण का विज्ञापन शिक्षा का अधिकार अधिनियम नियमावली लागू होने के पहले दिया गया है और इनका चयन एनसीटीई मानकों के अनुसार हुआ है, इसलिए इन्हें टीईटी से छूट देने पर विचार किया जा सकता है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश के परिषदीय प्राइमरी स्कूलों में अध्यापकों की भारी कमी पर चिंता जाहिर की है और राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह योग्य अध्यापकों की नियुक्ति करने का विज्ञापन बिना किसी विलंब के जारी करे। प्रदेश के अपर महाधिवक्ता सीवी यादव ने कोर्ट को आश्र्वस्त किया कि सरकार 15 दिन के भीतर विज्ञापन प्रकाशित करेगी तथा बिना देरी किए नियमानुसार नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करेगी। न्यायालय ने इस आश्र्वासन के बाद याचिका की अगली सुनवाई की तिथि 27 सितंबर नियत की है। न्यायालय के इस आदेश से टीईटी, बीटीसी आदि की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है। यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण टण्डन ने शिव प्रकाश कुशवाहा की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। याची का कहना है कि शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत बच्चों की निश्शुल्क शिक्षा की व्यवस्था है। राज्य सरकार का दायित्व है कि स्कूलों में पढ़ाने के लिए पर्याप्त शिक्षक रखे जाएं। राज्य सरकार को लंबे समय तक अध्यापकों के पदों को खाली रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जबकि अपर महाधिवक्ता का कहना है कि सरकार लगातार खाली पदों को भरने का प्रयास कर रही है। वर्ष 2004, 2007 व 2008 में अध्यापकों की भर्ती की गई है। न्यायालय ने कहा है कि यह विवाद नहीं है कि भर्ती हो रही है या नहीं, परिषदीय विद्यालयों में अध्यापकों की भारी कमी है, जिससे शिक्षा बुरी तरह से प्रभावित हो रही है।