हाईकोर्ट ने पुलिस अभिरक्षा में लोगों के उत्पीड़न पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि पुलिस खुद को कानून से ऊपर न समझे। उत्पीड़न की घटना में सुप्रीमकोर्ट द्वारा मध्यप्रदेश सरकार बनाम श्यामसुंदर त्रिवेदी केस में की गई टिप्पणी का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा है कि अभिरक्षा में उत्पीड़न सभ्य समाज की गरिमा को नष्ट करता है। उत्पीड़न से यह भाव जगता है कि पुलिस खुद को कानून से ऊपर और कई बार तो खुद को ही कानून समझने लगती है। न्यायालय ने कहा है कि पुलिस ऐसा कतई न समझे क्योंकि भले ही साक्ष्य न मिले, लेकिन अदालतें अपनी आंखें बंद नहीं रख सकती।
अधिवक्ता सुजान सिंह के साथ हुई उत्पीड़न की घटना पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अमर सरन और न्यायमूर्ति अनुराग कुमार की खंडपीठ ने डीजीपी को निर्देश दिया है कि वह इस मामले की जांच एसएसपी बीडी पाल्सन के बजाए किसी अन्य से कराएं।
याचिका के अनुसार सुजान सिंह 14 जुलाई 2012 को अपने एक साथी अभिजीत पांडेय के साथ बाइक पर वाराणसी जा रहे थे। सुबह करीब साढ़े ग्यारह बजे मिर्जामुराद थाने से एक किलोमीटर पहले उनकी बाइक पंक्चर हो गई। पंक्चर बनवाने के लिए वह सड़क पार कर बायीं पटरी पर चले गए। यह पटरी कांवरियों के आरक्षित थी। प्रतिबंधित रास्ते पर देख वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने सुजान को रोक लिया। अपनी मजबूरी बताने के बावजूद उनसे दुर्व्यवहार किया गया। पुलिसकर्मियों ने हिरासत में ले लिया और उनका मोबाइल तथा बाइक जब्त कर ली। बाइक का चालान कर दिया गया और सुजान की पिटाई की गई। वरिष्ठ अधिकारियों के हस्तक्षेप से छूटने के बाद सुजान ने बीएचयू में अपना मेडिकल परीक्षण कराया। बाइक 15 जुलाई को सौ रुपए चालान जमा करने के बाद छोड़ी गई। कोर्ट ने कहा कि चालान रसीद, मेडिकल रिपोर्ट और पीड़ित के फोटोग्राफ देखने से प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट है कि उसके साथ उत्पीड़न की घटना हुई है। याची के पास पुलिस के खिलाफ झूठा आरोप लगाने का कोई कारण मौजूद नहीं है।