नई दिल्ली| लोकसभा के महासचिव टी.के. विश्वनाथन महसूस करते हैं कि देश का 85 वर्षीय संसद भवन पुराना हो चला है और भावी पीढ़ी के लिए इसे एक विरासत के रूप में संरक्षित किए जाने की जरूरत है और भविष्य में इसके इस्तेमाल पर एक सार्वजनिक बहस आयोजित की जानी चाहिए। विश्वनाथन ने कहा है कि यह एक पुराना ढांचा है.. इसे विरासत के रूप में संरक्षित किए जाने की जरूरत है.. ताकि भावी पीढ़ी हमें दोषी न ठहराए।
संसद भवन की डिजाइन दो वास्तुकारों, सर एडविन लुटियंस और सर हरबर्ट बेकर ने तैयार की थी, जिन्हें नई दिल्ली की योजना तैयार करने और उसके निर्माण की जिम्मेदारी तब सौंपी गई थी, जब इस स्थल को 1911 में ब्रिटिश शासन की राजधानी बनाने के लिए चुना गया था। संसद भवन की आधारशिला 12 फरवरी, 1921 को ड्यूक ऑफ कनॉट द्वारा रखी गई थी।
इमारत छह वर्षो में बनकर तैयार हुई थी और इसका उद्घाटन 18 जनवरी, 1927 को भारत में तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड इर्विन ने किया था। उस समय इस इमारत के निर्माण पर मात्र 83 लाख रुपये लागत आई थी।
नए संसद भवन की जरूरत पर जोर देते हुए विश्वनाथन ने कहा कि इस मुद्दे पर सार्वजनिक बहस शुरू की जानी चाहिए, क्योंकि लोगों को भी इस बारे में राय देनी चाहिए कि नई इमारत कहां बने। उन्होंने यह भी कहा है कि नए संसद भवन की जगह तलाशने और उसके निर्माण में कम से कम 10 वर्ष लगेंगे.. इस पर एक सार्वजनिक बहस होनी चाहिए, क्योंकि इस मुद्दे से सार्वजनिक भावनाएं जुड़ी हुई हैं।” उन्होंने कहा कि बहस में विशेषज्ञों को भी शामिल किया जाना चाहिए, जो मौजूदा ढांचे को सुदृढ़ बनाने के बारे में भी उपाय सुझा सकते हैं।
विश्वनाथन ने कहा कि यदि लोग संसद भवन को नई इमारत में ले जाने का समर्थन नहीं करते तो उसे सुदृढ़ बनाने का विकल्प तलाशा जाए। उन्होंने नए संसद भवन की वकालत करते हुए कहा कि भविष्य में संसद में जन प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ेगी और उन सभी को समाहित करने लायक संसद भवन की जरूरत होगी।
लोकसभा महासचिव ने कहा, “दोनों सदनों में सांसदों की संख्या 1971 की जनगणना पर आधारित है। वर्ष 2026 के बाद संसद के दोनों सदनों के सदस्यों की संख्या बढ़ाने की जरूरत होगी। उस समय हमें एक बड़े भवन की आवश्यकता पड़ेगी।” फिलहाल अभी लोकसभा में 545 सदस्य और राज्यसभा में 245 सदस्य हैं।