रमजान के महीने में रोजे रखे जाते हैं. यह मुसलमानों में सहनशीलता, धार्मिक भावना, मानवीयता व अल्लाह के प्रति आज्ञाकारिता की भावना पैदा करता है. अल्लाह के प्रति अपनी निष्ठा जताने के लिए मुसलमान उपवास रखते हैं. वे आम दिनों से अधिक अल्लाह की इबादत में लीन रहते हैं. मुसलमान मानते हैं कि इस महीने अल्लाह की इबादत अधिक पुण्य देनेवाली होती है.
रमजान के पहले अशरे में रहमतों की बारिश
रमजान के पहले अशरा (पहले दस दिन) को रहमत अशरा कहा जाता है. इस अशरा में अल्लाह रोजेदारों पर अपनी रहमतों की बारिश करता है. दूसरे अशरा को मगफरत कहा जाता है. इसमें रोजेदारों को मगफरत मिलती है.
रोजा किस पर फर्ज
रोजा हर मुसलमान वयस्क मर्द और औरत पर फर्ज है. वैसे लोग जो सफर पर हैं, जो बीमार हैं, बाद में ठीक होने की उम्मीद हो, वैसी महिला जो गर्भवती हो या फिर बच्चे को दूध पिलाती हो, वैसे लोगों को रोजे से छूट दी गयी है, लेकिन उन लोगों पर कजा जरूरी है. वैसे लोग जिन्हें रोजे रखने से छुटकारा मिला है, मगर उन पर कजा जरूरी नहीं, बल्कि फिदया जरूरी है. ये वह लोग हैं, जिन्हें रोजा रखने की क्षमता न हो, जैसे जईफ (बूढ़ा) और बीमारी से ठीक नहीं होने की उम्मीद हो. उन पर फिदया के तौर पर एक मीसकीन (फकीर) को खाना खिलाना जरूरी है.
किन बातों का रखें ध्यान
रोजा केवल भूख-प्यास मारने का नाम नहीं है. रोजेदार को झूठ, गाली, लड़ाई-झगड़ा से परहेज करना चाहिए. रोजेदारों को ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जो गैर इस्लामिक कदम हो.
सहरी खाना सुन्नत
सेहरी खाना सुन्नत और सबाब है. अगर सेहरी खाते हुए अजान हो जाये, तो खाना-पीना छोड़ दें और रोजे की नीयत कर लें. रोजे को तोड़नेवाली चीजें जान-बूझ कर संभोग करना, जान-बूझ कर खाना-पीना या उलटी हो जाना. इससे रोजा टूट जाता है. सूर्यास्त होने के बाद इफ्तार जल्द कर लें. इफ्तार के समय सारे जीव-जन्तु रोजेदारों के लिए दुआ करते हैं. रोजेदारों द्वारा मांगी गयी दुआ कबूल होती है.
तरावीह का एहतमाम करें
पूरे रमजान में तरावीह की नमाज (विशेष नमाज)का एहतमाम करें. एशा की नमाज के बाद लोग तरावीह की नमाज पढ़ते हैं. तरावीह नमाज पढ़ना सबाब का काम है. तरावीह लगभग हर मसजिद और अन्य स्थानों पर जमाअत में पढ़ी जाती है. घरों में महिलाएं सूरे तरावीह भी पढ़ती हैं.
खोल दिये जाते हैं जन्नत के दरवाजे
ब कोई इस महीने में किसी भी रात नमाज पढ़ता है, तो अल्लाह उस पर हर सजदे के बदले 17 सौ नेकियां लिखता है. कयामत के दिन एक गुनाहगार आदमी को दोजख में डाला जायेगा. आग उससे भागेगी, तो जहन्नम का फरिश्ता आग से पूछेगा- ऐ आग तू उसे क्यों नहीं पकड़ती है? आग कहेगी-मैं इसे क्यों पकड़ूं. इसके मुंह से रोजे की बू आ रही है.
तब फिर जहन्नम का दारोगा उसे पूछेगा कि क्या तू रोजे की हालत में मरा था. वह कहेगा- हां मैं रोजे की हालत में ही मरा था. इस महीने में जन्नत के तमाम दरवाजे खोल दिये जाते हैं, और जहन्नम के बंद कर दिये जाते हैं. सैतान को जंजीर में जगड़ दिया जाता है. इस महीने में जो कोई भी किसी रोजेदार को इफ्तार करवायेगा, तो वह शख्स गुनाहां से ऐसा पाक हो जायेगा कि जैसे वह अभी मां के पेट से पैदा हुआ हो. मुसाफिर को रोजा रखने या न रखने का अख्तियार है.
सांप ने डंस लिया और जान खतरे में है, तो ऐसी हालत में रोजा तोड़ दें. रोजे की हालत में चुगली करने, गीबत करने, झूठ बोलने, बेहूदी बात करने या किसी का दिल दुखाने से रोजा मकरू हो जाता है. लिहाजा रोजे की हालत में इससे परहेज करना चाहिए. रोजेदार कितना खुशनसीब है कि हर वक्त अल्लाह की रजा हासिल करता रहता है.
यहां तक कि इफ्तार का वक्त आता है, तो रोजेदारों की दुआ अल्लाह अपने फजलो करम से कबूल फरमाता है. नबी फरमाते हैं, तीन शख्स की दुआ रद्द नहीं जाती. पहला- रोजे रखनेवालों की दुआ इफ्तार के वक्त, दूसरा – आदिल बादशाह की दुआ इंसाफ के वक्त और तीसरा- मजलूम की दुआ. इन तीनों की दुआ अल्लाह बादलों से भी ऊपर उठा लेता है और आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते हैं. अल्लाह फरमाते हैं कि मेरी इज्जत की कसम मैं जरूर तेरी मदद करूंगा.