फर्रुखाबाद: वित्तीय वर्ष 2012-13 में सबसे ज्यादा दारू की विक्री पालिका चुनाव के दौरान यानी जून माह में हुई। पियक्कड़ों ने देशी, अंग्रेजी व वियर मिलाकर कुल 5,13,787 लीटर दारू उड़ा दी। जोकि पिछले कई माह से ज्यादा है।
आम चुनाव आयें और दारू की दावतें न हों ऐसा कैसे हो सकता है। उत्तर प्रदेश में चुनाव आता है तो दारू के बल पर कम से कम 10 प्रतिशत वोट तो मिल ही जाते हैं। 10 प्रतिशत वोटों के चक्कर में प्रत्याशी भी जमकर दारू बांटते हैं। ये दारू चाहे अंग्रेजी हो, देशी हो या गांवों में पीपों व तस्तरी लगाकर बनायी जाने वाली जहरीली शराब। बस पियक्कड़ों को दारू मिलनी चाहिए। न जाने कितनी मौतें चुनाव के दौरान जहरीली शराब पीने से हो जाती है लेकिन प्रशासन कभी भी इन पर पूर्णतः रोक नहीं लगा पाया है। जब भी चुनाव आने वाला होता है तो पहले से ही शराब की दुकानें पहले से ही सज जातीं हैं। गली मोहल्लों में प्रत्याशियों द्वारा शराब के पौए बंटवा दिये जाते हैं।
बीते कई माह से जितनी शराब एक महीने में नहीं बिकी होगी उतनी पालिका चुनाव के दौरान जून माह में बिक गयी। जून माह में देशी शराब 229020.1 लीटर, अंग्रेजी आधा लीटर वाले पौए 82447.23 लीटर, अंग्रेजी बोतल 76707 लीटर, वियर 125613 लीटर पियक्कड़ों ने उड़ा दी। जोकि अन्य महीनों से कई प्रतिशत ज्यादा है।
चुनाव आयोग व प्रशासन प्रलोभन इत्यादि न देने की प्रत्याशियों को हिदायत तो देता है लेकिन उसका पालन कितना होता है यह तो शायद चुनाव के दौरान बांटी गयी शराब व परोसे गये लजीज व्यंजन से ही लगाया जा सकता है। जो भी हो आने वाले दिनों में ऐसे प्रलोभनों पर सख्ती से रोक नहीं लगायी गयी तो लोकतंत्र का मतलब ही खत्म हो जायेगा।