जीवन से खिलवाड़- दूषित वातावरण में बन रही सूतफेनी, रेफायंड का भी भरोसा नहीं

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फर्रुखाबाद: सावन शुरू होते ही नगर के गली मोहल्लों में कुकुरमुत्तों की तर्ज पर सूतफेनी व घेवर बनाने की छोटी-छोटी फैक्ट्रियां शुरू हो गयी हैं। ये फैक्ट्रियां मानक तो दूर खुलेआम कूड़े कचरे भरी गंदगी में घेवर व सूतफेनी का निर्माण धड़ल्ले से कर रहे हैं। कई सूतफेनी विक्रेताओं ने तो रक्षाबंधन व रोजे (ईद) को देखते हुए अभी से ही कुन्तलों सेवइयों का स्टाक अपनी दुकानों पर कर लिया है। जिसे जिला प्रशासन का कोई भी अधिकारी देखने वाला नहीं है। वहीं खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता पर निगरानी रखने वाले नगर मजिस्ट्रेट व फूड इंस्पेक्टर की निगाह शायद अभी इधर नहीं पड़ी है| उनकी चुप्पी से आम आदमी के जीवन से खुलेआम खिलवाड़ किया जा रहा है।

नगर में हर वर्ष सावन माह शुरू होते ही सैकड़ों की संख्या में सूतफेनी व घेवर बनाने की फैक्ट्रियां जैसी दुकानें खुल जाती हैं। जिनमें कोई किलो दो किलो नहीं प्रति दिन कुन्तलों से सूतफेनी, सेवईं व घेवर का निर्माण किया जाता है। यह सूतफेनी निर्माता सूतफेनी बनाने में घटिया रिफान्ड तेल का प्रयोग करते हैं। वहीं सफाई के नाम पर यह सूतफेनी बनाने वाली मैदा को किसी फर्श इत्यादि पर ही भिगोकर खुले में धूल मिट्टी में ही बनाते बखूबी देखे जा सकते हैं।

एक सूतफेनी विक्रेता ने बताया कि सूतफेनी का काम सीजन का है। अब दो महीने में हम लोग साल भर की कमाई कर लेते हैं। एक किलोग्राम सूतफेनी 60 से 65 रुपये में बिक जाता है। वहीं घेवर 160 रुपये से लेकर 200 रुपये प्रति किलो तक में क्वालिटी के हिसाब से बिक जाता है।

अब जनता की स्वास्थ्य व गुणवत्तापूर्ण खाद्य वस्तुओं की विक्री करवाने का जिम्मा लिये नगर मजिस्ट्रेट व फूड इंस्पेक्टर को अभी तक यह तक नहीं मालूम हो पाया है कि नगर में कुकुरमुत्तों की तरह सैकड़ों सूतफेनी की दुकाननुमा फैक्ट्रियां खुल चुकी हैं। क्या उनसे इसके निर्माण के लिए अनुमति ली गयी है। यदि इतनी बड़ी मात्रा में सूतफेनी इत्यादि के निर्माण के लिए अनुमति ली गयी है तो क्या यह फैक्ट्रियां उन मानकों को पूरा कर रही हैं। कई सूतफेनी बनाने वाले तो बहुत ही गंदगी में ही सूतफेनी व घेवर का निर्माण कर रहे हैं। जिनके खाने से लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना 100 प्रतिशत तय है। देखना यह है कि आगे आने वाले दिनों में क्या सिटी मजिस्ट्रेट व फूड इंस्पेक्टर को इन कुकुरमुत्तों की तरह उपजे सूतफेनी निर्माता व विक्रेताओं पर कोई मानक रूपी शिकंजा कसने का मौका मिलता है। या फिर ऐसे ही आंखों पर पट्टी बांधे नागरिकों के जीवन से खिलवाड़ होता हुआ ये भी देखते ही रहेंगे।