देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उत्तरप्रदेश चुनाव में बदलाव का जज्बा जगाया था। लेकिन लोगों की उम्मीदें धरी रह गई हैं। सौ दिन के राज में अपराध बेतहाशा बढ़े हैं। हत्याएं ही 1149 हुई हैं। शुरुआत लडख़ड़ाती दिख रही है। स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजे बता रहे हैं कि अखिलेश का जादू उतरने लगा है।
इसी हफ्ते राष्ट्रपति पद के लिए यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के घर भोजन करने आए। सब यह देखकर चौंके कि बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी (15 केस) व विजय मिश्रा (25 केस) भी मुख्यमंत्री निवास में शान से बैठे थे। जबकि जेल में बंद इन दोनों कुख्यात नेताओं को सिर्फ विधानसभा में आने की इजाजत थी। इस घटना से भारी बवाल मचा, लेकिन यह साफ हो गया कि उत्तरप्रदेश में सपा का पुराना राज ही लौटा है। हत्या, लूट, बलात्कार के मामले ही बीते साल की तुलना में डेढ़ गुना बढ़े हैं। लेकिन अखिलेश सरकार के नागरिक सुरक्षा मंत्री दुर्गा यादव की दलील है कि उत्तरप्रदेश में भगवान भी सरकार बना लें तो अपराधों पर काबू नहीं कर सकते।
पिछले ३ महीनों में पुलिस बल ने प्रदेश भर से करीब 30 शिकायतें लखनऊ भेजी हैं। ज्यादातर मामले सपा नेताओं की दबंगई के हैं। इस पर कार्रवाई तो दूर, उलटे कुछ मामलों में पुलिस अफसरों को ही रातों-रात लाइन हाजिर कर दिया गया। चुनाव के वक्त सपा के नाम पर वोटरों को ये आशंका तो थी कि ‘सपा के राज में अपराधियों के हौसले बुलंद होंगे।’ इसीलिए मुलायमसिंह यादव को सफाई देनी पड़ती थी कि हम किसी को नहीं बख्शेंगे। प्रचार की कमान अखिलेश के हाथ में थी। वोटरों ने उन पर ही सबसे ज्यादा भरोसा किया, जो अब टूट रहा है।
विद्याथियों को मुफ्त टेबलेट व लैपटॉप बांटने की योजना में 2900 करोड़ की थोक खरीदी के पहले अभी कंसल्टेंट की नियुक्ति होनी है। राजनीतिक विश्लेषक उत्कर्ष सिन्हा का आकलन है कि सरकार इस फैसले को लोकसभा चुनाव तक खीचेंगी ताकि इससे एक और चुनावी फायदा ले सके। किसानों का मसला भी गंभीर है, जिनसे 50 हजार के कर्जे की माफी का वादा किया गया। अब शर्त यह लगाई है कि कोऑपरेटिव बैंक के कर्जदार किसानों को ही इसका फायदा होगा। भाजपा प्रवक्ता विजय पाठक का आरोप है कि पिछले तीन महीने में बुंदेलखंड में 18 किसान खुदकुशी कर चुके हैं।
अखिलेश के आत्मविश्वास में कमी चार जुलाई को नजर आई। वे अचानक मीडिया से मुखातिब थे। चेहरे से मुस्कराहट गायब थी। सिर्फ एक दिन पहले लिए गए अपने ही फैसले को वापस लेने की घोषणा कर रहे थे। उन्होंने विधायकों को विकास निधि से 20 लाख रुपए की कार खरीदने का लुभावना निर्णय लिया था, जिसका भारी विरोध हुआ। तीन महीनों में ऐसे कई फैसलों पर वे कायम नहीं रहे।
अखिलेश को नाकाम करने की साजिश!
ज्यादातर मंत्री मुलायम सिंह यादव के पुराने संगी हैं, जिन्हें अखिलेश बचपन में चाचा कहा करते थे। लखनऊ में कहावत चल पड़ी है कि मुख्यमंत्री भतीजे पर चाचा मंत्री भारी पड़ रहे हैं। खासतौर से शिवपाल सिंह यादव, जो उनके असली चाचा हैं और आजम खां। ऐसे पुराने दिग्गजों के आगे अखिलेश असहज दिखाई दे हैं। सपा मुख्यालय पर जुटने वाले पार्टी नेता किसी का नाम लिए बगैर विश्लेषण कर रहे हैं कि अखिलेश को नाकाम करने की साजिश हो रही है। लेकिन मुलायम सिंह कहते हैं कि मायावती शासन के कुछ नजदीकी अफसर इस साजिश में शामिल हैं।