बलिदान दिवस मनाने के नाम पर जेल प्रशासन ने की खानापूरी

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फर्रुखाबाद: अमर शहीद मणीन्द्रनाथ बनर्जी की शहादत की 79वीं पुण्य तिथि के अवसर पर बुधवार को केन्द्रीय कारागार फतेहगढ़ में मणीन्द्रनाथ बनर्जी के स्मारक पर हुए कार्यक्रम में उन्हें वयोवृद्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व सिटी मजिस्ट्रेट भगवानदीन वर्मा ने श्रद्धासुमन अर्पित किये। लेकिन जेल प्रशासन इस कार्यक्रम में खानापूरी करते नजर आये।

मणीन्द्रनाथ बनर्जी की शहादत पर पुष्प अर्पित करने के लिए दूर-दूर से वयोवृद्व, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व उनके परिजन पहुंचे। जिन्होंने मणीन्द्रनाथ बनर्जी की शहादत को याद करते हुए हकीकत में अपनी आंखें नम कर लीं। लेकिन वहीं दूसरी तरफ जेल प्रशासन अमर शहीद मणीन्द्रनाथ बनर्जी की शहादत को आज बलिदान दिवस के रूप में सिर्फ खानापूरी ही करता नजर आया।

केन्द्रीय कारागार फतेहगढ़ में बने मणीन्द्रनाथ के स्मारक पर एक तम्बू में शुरू हुआ श्री बनर्जी के कार्यक्रम में जेल में मुलाकात करने आये कुछ लोगों व बच्चों ने बैठकर ही दो चार कुर्सियां घेरीं। बाकी पूरा पान्डाल खाली दिखायी पड़ा। मंच पर बैठे कई बुद्धिजीवी अपने-अपने तरीके से उच्चकोटि के विचार प्रकट कर रहे थे। परन्तु उन विचारों को सुनने के लिए श्रोताओं की कमी उनके अंदर कहीं न कहीं टीस बनकर चुभ रही थी।

विदित हो कि जेल प्रशासन पूरे वर्ष इस स्मारक पर झाड़ू तक लगवाना मुनासिब नहीं समझता। बुद्धिजीवियों और प्रशासन के दबाव में शायद 20 जून को मजबूरी वस चूना व मिट्टी से पुताई कराकर अपनी पीठ थपथपाता नजर आता है। आज के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे सिटी मजिस्ट्रेट भगवानदीन वर्मा ने मणीन्द्रनाथ बनर्जी के आदर्शों व सिद्धान्तों को याद दिलाते हुए कहा कि मणीन्द्रनाथ वास्तव में एक महान विभूति थे और हम लोगों को इस बात का गौरव होना चाहिए कि वह महापुरुष आजादी की राह में शहीद हुआ।

इस दौरान उर्मिला राजपूत, रामकिशन राजपूत, वरिष्ठ जेल अधीक्षक यादवेन्द्र शुक्ला, दिलदार चचा, मणीन्द्रनाथ के भतीजे, उनकी पत्नी शिवानी बनर्जी, पुत्र गौतम, पुत्री गरिमा, विमल किशोर सक्सेना, शीतलादेवी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अनंतराम की पत्नी आदि मौजूद रहे।

मरघट की भस्म चिताओं पर दो फूल चढ़ाने आया हूं,
उन सोते बीर शहीदों को मैं पुनः जगाने आया हूं।  

विदित हो कि नबाव तफज्जुल हुसैन खां को मक्का निर्वासित करने सहित फर्रुखाबाद के अनेक नबावों को अंग्रेजों द्वारा फांसी पर लटका दिया गया और उनके शरीर की चर्बी भी मली गयी। नासिर खां और विलकिंस बेगम के महलों को तोप से उड़ा दिया गया। अमीना खातून को याकूतगंज में व विलकिंस बेगम को उनके महल के पेड़ों पर फांसी दे दी गयी। रामदुलारी रस्तोगी को तीन वर्ष की सजा दी गयी। इस दौरान 161 लोगों को फांसी दी गयी और 249 लोगों को काला पानी (अंडमान निकोबार) की सजा देकर उत्पीड़ित किया गया।

फतेहगढ़ की इतिहास प्रसिद्ध सेन्ट्रल जेल का निर्माण 1857 से 1867 तक हुआ इससे पूर्व जेल बागलकूला में थी। जेल में अमानवीय अत्याचारों के खिलाफ तथा जेल बंदी चन्द्रमा सिंह की बेरहमी से पिटायी होने के कारण पहले तो चन्द्रमा सिंह और बाद में अन्य क्रांतिकारियों ने अनशन प्रारंभ कर दिया। जेल प्रशासन की सुरक्षा व अपनी रणनीति के तहत शिव वर्मा, मनमथनाथ गुप्ता, यशपाल, रमेशचन्द्र गुप्त आदि ने अनशन तोड़ दिया। परन्तु महानक्रांतिकारी मणीन्द्रनाथ बनर्जी ने प्रतीकात्मक रूप से अपनी शहादत का रास्ता चुना। यशपाल की की सेवा निरर्थक हुई और मणीन्द्र ने 20 जून 1934 को अपने साथी मनमथनाथ की गोद में केन्द्रीय कारागार फतेहगढ़ में अपने प्राणों की आहुति दे दी। इसी के बाद से फर्रुखाबाद के क्रांतिकारियों की गतिविधियां और भी प्रतिरोधात्मक हो गयीं। कानपुर की 16 वर्षीय नादरा भी सेन्ट्रल जेल में शहीद हुई थी।

 

शहीद मणीन्द्रनाथ बनर्जी के बारे में

शहीद मणीन्द्रनाथ बनर्जी का जन्म 13 जनवरी 1907 को मां सुनयना देवी के धन्य कोख से वाराणसी में हुआ था। इनके पिता ताराचन्द्र बनर्जी होम्योपैथिक चिकित्सक थे। इनके पितामह श्री हरि प्रकाश बनर्जी डिप्टी कलेक्टर रहे व 1866 में ब्रिटश शासन की नीतियों से क्षुब्ध होकर बदायूं से अपना त्यागपत्र देकर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गये।श्री बनर्जी 8 भाई_ जीवनधन, प्रभाष बाबू, मणीन्द्र, फणीन्द्र, अमिय, भूपेन्द्र, बसंतबाबू भी स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। काकोरी कान्ड में राजेन्द्र लाहिड़ी को फांसी दिलाने में अपनी भूमिका निभाने वाले सीआईडी के डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट जितेन्द्र नाथ बनर्जी की गोदौलिया वाराणसी में 13 जनवरी 1928 को हत्या करके श्री बनर्जी ने मौत का बदला ले लिया। फलत: उन्हें 10 वर्ष की सजा व 3 माह की तन्हाई कैद की सजा देकर फतेहगढ़ की केन्द्रीय कारागार में डाल दिया गया। फैसले के खिलाफ इनकी मां की अपील खारिज कर दी गई। ज्ञातव्य है कि ये 16 वर्ष की आयु में ही अनुशीलन नामक क्रांतिकारी दल में शामिल हो गये थे। जीवन पर्यन्त क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े रहे। हम एसे राष्ट्रवीरों की जयंती पर नमन करते हैं।