फर्रुखाबाद: विधान सभा चुनाव में ब्राहमणों ने वोट के बंटवारे का अंजाम देखा है। इस लिये इस बार ब्राह्मण मतदाता फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव में ब्राह्मण मतदाता अपनी ताकत दिखाना चाहता है। एसे में खामोशी के साथ खेल का अंदाजा लगा रहे इस प्रबुद्ध समाज को अपने पक्ष में करने के लिये सभी प्रमुख प्रत्याशी जोर लगा रहे हैं।
शहर में ब्राह्मण मतदाताओं की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। वर्ष 1977 से 1996 के बीच सदर विधानसभा सीट पर हुए कुल 7 चुनावों में लगातार ब्राह्मण विधायकों ने यहां का नेतृत्व किया। इनमें से पांच बार ब्रह्मदत्त द्विवेदी व दो बार विमल प्रसाद तिवारी यहां से विधायक चुने गये। परंतु श्री द्विवेदी की हत्या के बाद हमदर्दी की लहर पर जीतीं उनकी विधवा व प्रदेश श्रम मंत्री प्रभा द्विवेदी और सत्ता की हनक के बूते जीते प्रदेश स्वास्थ्य मंत्री अंटू मिश्रा की जीत को न गिनें तो जैसे तो मानों शहर में ब्राह्मण राजनीति का सूपड़ा ही साफ हो गया। नगरपालिका अध्यक्ष पद पर भी अभी तक बैठे अध्यक्षों आशिक अली खान, शफीक अली खान, शंभू नाथ सक्सेना, अमज़द अली खान, नवाब सैयद हैदर, डा. बीएन सरीन, डा. रघुबीर दत्त शर्मा, मौलवी हकीम अयूब, सेवती प्रसाद सक्सेना, मुरारी लाल तिवारी, सत्य मोहन पाण्डेय, हाफिज़ शमशुद्दीन उर्फ फुर-फुर मियां, दमयंती सिंह और मनोज अग्रवाल में सत्यमोहन पाण्डेय के बाद कोई ब्राह्मण नहीं पहुंच सका। श्री पाण्डेय को भी किन परिस्थितियों में पद छोड़ना पड़ा था, यह भी किसी से छिपा नहीं है।
Year |
Winner Candidate Name |
Runner-up Candidate Name |
2002 |
BIJAI SINGH |
PRABHA DIWEDI |
1996 |
BRAHM DUTT DWEVEDI |
LAL BAHADUR SINGH SHAKYA |
1993 |
BRAHM DUTT DWEVEDI |
LAL BAHADUR SINGH SHAKYA |
1991 |
BRAHM DUTT DWIVEDI |
VIMAL PRASAD TIWARI |
1989 |
VIMAL PRASAD TIWARI |
BRAHAMDUTT DWIVEDI |
1985 |
BRAHAM DUTT DEVEDI |
VIMAL TIWARI |
1980 |
VIMAL PRASAD TIWARI |
BRAHAM DATT DWIVEDI |
1977 |
BRAHAM DATT DWIVEDI |
BIMAL PRASAD TIWARI |
एसे में शहर का ब्राह्मण समाज इस बार विधानसभा चुनाव की गलती दोहराने के मूड में नहीं है। दूसरे वह इसी के साथ शहर में एक नये राजनैतिक समीकरण की भी तलाश में है। बृह्मदत्त द्विवेदी की हत्या के बाद से विजय सिंह व उनके परिवार से नाराज ब्राह्मण समाज ने पिछली बार जिस उम्मीद पर मनोज अग्रवाल पर दांव लगाया था, वह भी खाली चला गया। एसे में खामोशी के साथ खेल का अंदाजा लगा रहे इस प्रबुद्ध समाज को अपने पक्ष में करने के लिये सभी प्रमुख प्रत्याशी जोर लगा रहे हैं। कभी अंटू मिश्रा के रणनीतिकार रहे माधवेंद्र द्विवेदी ने मनोज अग्रवाल की पत्नी वत्सला के पक्ष में ब्राह्मणों को लामबंद करने के लिये जो कोशिशें शुरू की थीं, वह कम से कम अभी तक तो कारगर होती नजर नहीं आ रहीं हैं। तमाम नाराजगियों के बावजूद विजय सिंह अपनी पत्नी दमयंती सिंह के लिये ब्राह्मण बहुल मोहल्लों में जोर लगा रहे हैं। भाजपा की माला पारिया तो पार्टी लाइन के अनुसार ब्राह्मणों के अपने पक्ष में मतदान करने के लिये लगभग अश्वस्त ही हैं। प्रदेश व केंद्र में सत्तारूढ़ दलों समाजवादी पार्टी व कांग्रेस के संयुक्त समर्थन से चुनाव लड़ रहीं सलमा अंसारी ने भी ब्राह्मण वोटों में प्रभावी सेंध लगानी शुरू कर दी है। छात्र रजनीति से जुड़े रहे कई प्रमुख नाम सलमा के संपर्क में हैं व उनके पक्ष में हवा बनाने में जुट भी गये हैं।