प्रतिष्ठा दाव पर- सुबह से शाम तक वत्सला के लिए मनोज बहा रहे पसीना

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फर्रुखाबाद: निवर्तमान पालिका अध्यक्ष के लिए नगरपालिका की कुर्सी पाना सबसे बड़ी प्रतिष्ठा भी है और चुनौती है| इस चुनाव की हार जीत उनके राजनैतिक भविष्य की दिशा भी तय करेगी| अगर मनोज अपनी पत्नी वत्सला अग्रवाल को पालिका अध्यक्ष की कुर्सी पर नहीं बिठा पाए तो उनकी अगले विधानसभा चुनाव में बसपा की दावेदारी कमजोर हो जाएगी| और अगर दुबारा जीत गए तो उनकी दावेदारी पर मोहर भी लग सकती है| यही कारण है कि अधिकांश बसपाई मनोज अग्रवाल के साथ चुनाव प्रचार में बसपाई दिखाई नहीं पड़ रहे है| ये बसपा के कैडर से दिख रहा अघोषित सन्देश है कि वे कितने साथ है| अब केवल उनके साथ ठेकेदारों की फ़ौज और चंद समर्थक बचे है| बिरादरी के कई बड़े नाम उनके पास से खिसक चुके है| ब्राह्मणों में उनके पास कुछ नाम ही बचे है जिसमे अधिकतर मतदाताओ को प्रभावित करने में लगभग नाकाम है| ब्राह्मणों का खिसक जाना मनोज के लिए खतरे की बड़ी खतरे की घंटी होगी है| सनद रहे कि पिछला चुनाव मनोज भाजपा की गद्दारी और ब्राह्मणों के एकजुट वोटो से जीते थे| अबकी बार ये चमत्कार होता नहीं दिख रहा| भाजपा के अधिकांश नेता भाजपा को सेनापत से बाहर निकलता देख जोश और ईमानदारी से जुटे है| मेजर को भी अपनी इज्जत बचानी है| भाजपा प्रत्याशी के हारने का एक ही मतलब निकाला जायेगा और शक मेजर पर ही जायेगा| खबर है कि सेनापति निवासी एक अस्तित्वहीन भाजपा नेता अहमद अंसारी को भी तौल रहे है| ये जनाब सबके लकड़ी करने में माहिर माने जाते है| फिलहाल तस्वीर अगले सप्ताह में साफ़ होने लगेगी| मगर जो तस्वीरे हैं उनका लुफ्त उठाइए| ये तस्वीरे बुधवार के मनोज के जनसम्पर्क की है जो बड़े जातां से मिली है| अंदाज करिए कि मनोज कहाँ तक पहुचे है चुनाव प्रचार में-