एमबीए की पढ़ाई कर चुकी सपना ने सपना देखा था कि शादी के बाद भी वह नौकरी करती रहेगी और पति को सहयोग देगी। शादी हुई। जिंदगी बदली। लेकिन कुछ महीनों बाद ही सपना के पति ने उसकी नौकरी छुड़वा दी। लेकिन सपना ने नौकरी करने की जिद नहीं छोड़ी। आखिर में रिश्ता इतना बिगड़ा कि बात तलाक तक पहुंच गई और दोनों अलग हो गए।
यह सिर्फ एक सपना की कहानी नहीं है। देश में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कई बार तो अजीबोगरीब वजह बताते हुए तलाक मांगा जाता है। वैसे, शारीरिक हिंसा तलाक का सबसे बड़ा कारण है। जबकि शादी के बाद भी पर पुरुष या स्त्री से शारीरिक संबंध, नशे की लत, जीवन साथी को लेकर बहुत अधिक पजेसिव (उस पर अधिकार जमाना) होने जैसे कारण भी रिश्तों में दरार के लिए जिम्मेदार हैं।
मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, जैसे महानगरों में तलाक की जो दर है, वह छोटे शहरों से कहीं ज़्यादा है। मुंबई और दिल्ली जैसे महानगर तलाक की ‘राजधानी’ बनकर उभर रहे हैं। एक आकलन के मुताबिक इन दोनों शहरों में हर साल 10 हजार से अधिक तलाक होते हैं। जबकि देश में होने वाली हर 100वीं शादी का अंत तलाक पर जाकर होता है।
छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों के बड़े तबके में आज भी तलाक और शादीशुदा पुरुष या महिला के अकेले रहने को सामाजिक मान्यता नहीं मिल पाई है। इसके अलावा छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में तलाकशुदा लोगों को लेकर समाज का नजरिया भी बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। यही कारण कि इन जगहों के ज़्यादातर लोग ‘विवाह’ जैसे रिश्ते को निभा जाते हैं। लेकिन महानगरों में अब तलाक और तलाकशुदा ज़िंदगी लोगों को अचरज में नहीं डालती है।
कुछ बरस पहले तक ‘तलाक’ शब्द को भारत जैसे परंपरावादी देश के बड़े तबके में सामाजिक मान्यता नहीं मिली हुई थी। भारतीय संस्कृति में यह मान्यता है कि पति-पत्नी का रिश्ता एक जन्म का ही नहीं बल्कि जन्म जन्मांतर का होता है। लेकिन पिछले दो दशकों में देश में बढ़ते उदारीकरण, जागरुकता, साक्षरता, आर्थिक आत्मनिर्भरता, एकल परिवारों का चलन और टूटते संयुक्त परिवारों ने न सिर्फ तलाक के लिए मजबूत आधार तैयार किया बल्कि इसे मान्यता भी दिला दी। केरल में सबसे अधिक मामले
केरलाज मेंटल ब्लॉक रिपोर्ट के अनुसार, ‘देश की कुल आबादी में तलाक का प्रतिशत 1.1 है तो केरल में यह दर 3.3 फीसदी है। केरल सबसे अधिक साक्षरता वाला राज्य है। यहां पिछले एक दशक में तलाक की दर 350 फीसदी बढ़ी है। जबकि कृषि आधारित राज्य, पंजाब और हरियाणा में एक दशक में 150 फीसदी की बढ़त देखने को मिली है।’ राष्ट्रीय स्तर पर बीते पांच-छह सालों में तलाक की दर सौ फीसदी बढ़ गई है।
ये है वजह
समाज में धारणा है कि सामाजिक मूल्यों के बदलने से देश में तलाक बढ़ रहे हैं। जबकि एक सर्वे के अनुसार, ‘तलाक की सबसे बड़ी वजह आज भी महिलाओं के साथ घर में होने वाली हिंसा है।’ वकील कृति सिंह के एक सर्वे के अनुसार, ’80 फीसदी महिलाएं घरेलू हिंसा के कारण तलाक के रास्ते पर जाने के लिए विवश होती हैं। इसमें मानसिक हिंसा के साथ शारीरिक हिंसा भी शामिल हैं।’ लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि जिस रफ्तार से समाज में बदलाव आ रहे हैं, उससे कहीं न कहीं पुरानी पंरपराएं टूटी हैं। लोग आत्मनिर्भर हुए हैं। इसके अलावा जागरूकता भी तलाक में एक बड़ी भूमिका निभा रही है।
एक-दूसरे पर विश्वास की कमी भी तलाक की सबसे बड़ी वजहों में से एक हैं। ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो फेसबुक जैसी सोशल साइटों पर फर्जी आईडी के माध्यम से अपने हमसफर पर नजर रखते हैं। फर्जी प्रोफाइल से खुद की ही पत्नी या पति से चैट किया जाता है और नतीजा तू-तू, मैं-मैं से शुरू होकर तलाक तक पहुंच जाता है।
एकल परिवार की बढ़ती संस्कृति के कारण भी शादी जैसा पवित्र संबंध तलाक तक पहुंच जाता है। छोटे शहरों की तुलना में महानगरों में एकल परिवारों की संख्या काफी अधिक है। मैरिज काउंसलर डॉक्टर गीतांजली शर्मा कहती हैं कि उन्हें लगता है कि लोग व्यक्तिगत जिंदगी से अधिक करियर के बारे में सोचते हैं जिससे समस्या पैदा हो रही है। वहीं, बड़े शहरों में एकल परिवार में तलाक की समस्या सबसे अधिक है। मुंबई, दिल्ली, नोएडा, गुडगांव, बेंगलुरू जैसे शहरों में विकास के साथ ही बड़ी तादाद में लोग अपने संयुक्त परिवारों को छोड़कर बस गए। इसमें से अधिकांश अपने परिवार से दूर रहने के लिए अपनी मान्यताओं और संस्कृति से भी दूर होते गए। जिसका सीधा असर शादी जैसे रिश्तों पर पड़ा।
आज भी छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में सामाजिक दबाव के चलते कई लोग रिश्ता निभाने में ही भलाई समझते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता साधना पाठक कहती हैं कि पिछले कुछ बरसों में तलाक की तादाद सौ फीसदी बढ़ गई है। इसकी वजह बताते हुए साधना कहती हैं कि पहले घर के दबाव के कारण लोग तलाक से बचते थे। इसके अलावा समाज का भी दबाव होता था। लेकिन मध्यवर्ग और बड़े महानगरों में इन चीजों की बड़ी तेजी से कमी हो रही है।
इन सबके बीच भारत में मैरिज एक्ट में नए संशोधनों से भी अब तलाक और आसान हो गया है। अब तक तलाक की अर्जी के बाद कोर्ट पति पत्नी को थोड़ा वक्त देता था कि ताकि शादी जैसी संस्था को बचाया जा सके। लेकिन नए सुधार के बाद तलाक की अर्जी देने के बाद महीनों का इंतजार खत्म हो जाएगा।
‘उद्योग’ बना तलाक और दोबारा शादी
देश में तलाक हजारों करोड़ रुपये का ‘धंधा’ बन गया है। तलाक से अब सिर्फ वकीलों की ही चांदी नहीं होती है बल्कि कई वेबसाइट कुछ रकम लेकर तलाकशुदा लोगों के लिए फिर से नए हमसफर खोज रही हैं। तलाकशुदा लोगों के लिए ऐसी ही एक साइट सेकेंडशादी डॉट कॉम चलाने वाले मुंबई के विवेक पाहवा कहते हैं कि हर महीने उनके पास चार हजार कस्टमर आते हैं। यह तादाद कम नहीं है।
तलाक और कुछ दिलचस्प अदालती टिप्पणियां
‘प्रेम विवाह में तलाक की दर बहुत अधिक होती है।’ -बांबे हाईकोर्ट
‘जब बार बार आत्महत्या की धमकी दी जाती है तो, कोई भी दंपती शांतिपूर्वक नहीं रह सकता है। ऐसे में दोनों का अलग होना ही सही
है।’ -सुप्रीम कोर्ट
‘कंडोम की जिद पर तलाक की इजाजत नहीं दी जा सकती है।’ -बांबे हाईकोर्ट
तलाक के लिए अजब गजब दलीलें-
मुंबई के व्यक्ति ने इस आधार पर अपनी पत्नी से तलाक मांगा, क्योंकि पत्नी ने इस व्यक्ति को बिना कंडोम के इस्तेमाल के सेक्स नहीं करने दिया। पति ने मानसिक प्रताड़ना के आधार पर पत्नी से तलाक मांगा।
-दिल्ली की एक महिला ने अदालत में पति को मानसिक नपुंसक बताते हुए तलाक मांगा। इस महिला का कहना है कि शादी के नौ माह के बाद भी दोनों में कभी शारीरिक संबंध नहीं बना।
-झारखंड के कई गांवों में सैकड़ों महिलाएं सिर्फ इसलिए तलाकशुदा जिंदगी जी रही हैं क्योंकि उन्हें बीड़ी बनाना नहीं आता है। जिन महिलाओं को बीड़ी बनाना नहीं आता है, उनके पति उन्हें अक्सर तलाक दे देते हैं।
-गुजरात के सूरत में पत्नी को चश्मा क्या लगा, पति ने तलाक मांग लिया। पति के इस अजीब-ओ-गरीब तर्क पर वहां के महिला संगठनों ने विरोध भी जताया।