आखिर कांग्रेस को पालिका चुनाव में क्यों तलाश है एक पठान की

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फर्रुखाबाद: सौ साल पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस को निकाय चुनाव में प्रत्याशी ढूंडे नहीं मिल रहा है, या मुस्लिम वह भी पठान प्रत्याशी नहीं मिल रहा है। क्या यह विधानसभा चुनाव में हुई दुर्गति का इंतकाम है, या आगामी लोक सभा चुनाव के मद्देनजर कोई हिकमत। विगत विधान सभा चुनाव में कांग्रेस का समर्थन करने वाले संजीव मिश्रा बाबी अपनी पत्नी शशि प्रभा मिश्रा को चुनाव लड़ाने की घोषणा काफी पहले कर चुके हैं पर अभी तक कांग्रेस उनसे दूरी बनाये है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस किसी पठान मुस्लिम चेहरे पर दांव लगाना चाहती है।

कांग्रेस के नाम पर जनपद फर्रुखाबाद डा० जाकिर हुसैन, खुर्शीद आलम खां, सलमन खुर्शीद जैसे कद्दावर नामों से जाना जाता है। परंतु स्थिति यह है कि नगर पालिका चुनाव के नामांकन में मात्र तीन दिन शेष बचे हैं, और कांग्रेस ने आज तक अध्यक्ष पद के लिये किसी प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं की है। विगत विधान सभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी लुइस खुर्शीद का समर्थन करने वाले संजीव मिश्रा बाबी अपनी पत्नी शशि प्रभा मिश्रा चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं, परंतु कांग्रेस उनसे दूरी बनाये है। पार्टी पदाधिकारी देरी के लिये “मैडम” और “साहब” का निर्देश न मिलने का बहाना बना रहे हैं। मानों राष्ट्रीय पार्टी न हुई किसी का जेबी संगठन हो गया। जग जाहिर है कि पार्टी जीतने की स्थिति में हरगिज नहीं है, फिर इतना सोच विचार क्यों? पार्टी सूत्रों की मानें तो कांग्रेस को किसी दमदार पठान मुस्लिम प्रत्याशी की तलाश है। हमने जरा और कुरेदा तो जो कारण सामने आये वह काफी ओछे नजर आये।

विदित है कि विधानसभा चुनाव में अंधाधुध खर्च के बावजूद मैडम की स्थिति काफी खराब रही थी। बताते हैं विधानसभा चुनाव के दौरान बसपा प्रत्याशी उमर खां का समर्थन करने को लेकर मैडम अहमद अंसारी से खासी नाराज भी है। कांग्रेस की हिकमत का दूसरा पहलू यह भी बताया जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में चूंकि सलमान खुर्शीद को स्वयं चुनाव लड़ना है, सो वह यदि नगर पालिका अध्यक्ष पद पर भी कोई मुसलमान बैठ गया तो उनको विरोध का भी खतरा हो सकता है। ऐसे में जीतने की स्थिति में दिख रहे एक मात्र मुस्लिम प्रत्याशी अहममद अंसारी की पत्नी सलमा की राह खोंटी करने के लिये एक अदद मुस्लिम प्रत्याशी की कांग्रेस को सख्त जरूरत है, वह भी यदि पठान हो तो और अच्छा, बंटवारा कराना आसान रहेगा, दूसरे इसी बहाने बिरादरी पर प्रत्याशी लड़ाने का एहसान भी हो जायेगा, इससे एक अन्य दुश्मन विजय सिंह का भी बराबर से नुकसान होगा, फिर भले ही इसका लाभ बसपा को मिले या भाजपा को। कुल मिला कर बात इतनी है कि हम तो डूबेंगे समन, तुमको भी ले डूबेंगे। अब इसे आप इंतकाम कहें या हिकम-ए-अमली।

कांग्रेस में सबसे पहले नाम चला शेर-अफगन का, फिर दबाव बना महासचिव इखलाक खान पर। दोनों ने पल्ला झाड़ लिया तो अब मूल रूप से कायमगंज के ही एक ठेकेदार पर डोरे डालने की सुनगुन है।