लखनऊ| पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के नाम एक और बंगला राजधानी में भी मौजूद है | जिसकी रजिस्ट्री 15 मार्च 2011 को पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के नाम पर दर्ज की गई, मजे की बात है की इस रजिस्ट्री में गवाह के तौर पर पूर्व महाधिवक्ता और मायावती के करीबी सतीश चन्द्र मिश्र के साथ अब मायावती से अलग हो चुके पूर्व मंत्री बाबु सिंह कुशवाहा का नाम दर्ज है | मायावती के लखनऊ में एक और बंगला होने की खबर नगर निगम में दाखिल ख़ारिज करा कर पूर्व मुख्यमंत्री का नाम दर्ज करने पर सामने आई | इस बंगले की रजिस्ट्री पावर आफ एटार्नी के माध्यम से हुई है जिसको खुद मायावती के भाई आनंद ने की, पर सवाल ये उठता है कि आखिर दस्तावेजो में दर्ज ये बंगला पहले बहुजन समाज पार्टी के पास था , तो आखिर सम्पति विभाग ने बहुजन समाज पार्टी को कितने पैसे में ये जमीन बेचीं थी इसके साक्ष्य नहीं दिए गए है | कहा तो ये भी जा रहा है कि पॉवर ऑफ़ एटार्नी खुद मायावती के भाई आनंद के पास थी, तो आखिर ऐसी क्या वजह थी की मायावती ने ये बंगला खुद अपने भाई से अपने नाम रजिस्टर्ड करा लिया और उसके लिए उन्होंने इस बंगले को खरीदने के लिए चौदह करोड़ पैसठ लाख रुपये खर्च किये साथ ही रजिस्ट्री कराने के लिए एक करोड़ दो लाख रुपये की स्टाम्प ड्यूटी भी चुकाई गई | मायावती के इस बंगले को खरीदने से पहले ये बंगला को – आपरेटिव बैंक के नाम दर्ज था जिसका पता 12 हैवलक रोड स्कीम था , जो अब बदल कर 9 माल एवेन्यू हो चुका है | 7500 वर्ग फुट में फैले इस बंगले की मिलकियत को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया है | मायावती के भाई आनंद ने जिस पावर ऑफ एटार्नी के जरिये इस बंगले की रजिस्ट्री कराई है, उसमे ये बंगला पहले बहुजन समाज पार्टी के नाम पर दर्ज था , पार्टी ने इसे 9/ 8 ए राणा प्रताप मार्ग निवासी प्रवास मिश्र से खरीदा था | विवाद की जड़ यही से शुरू होती है क्योकि बंगले की जो मिलकियत या लीज के पेपर जो है उन पर 1936 से मिश्रा परिवार का नाम दर्ज है| पर बाद के जो दस्तावेज मिले उनमे 1970 और 1976 में कोआपरेटिव बैंक के नाम पर दर्ज पाई गई, जिन कागजात पर मायावती के भाई आनंद ने रजिस्ट्री कराई वो बहुजन समाज पार्टी के नाम दर्ज पाए गए, जबकि बहुजन समाज पार्टी ने प्रवास मिश्रा से ये जमीन खरीदी थी , तो ये जमीन कोआपरेटिव बैंक की कैसे हो गई | आश्चर्य की बात ये है कि कानून के जानकार सतीश चन्द्र मिश्रा जो खुद ही सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील है उन्होंने या तो अनजाने में या फिर सत्ता के दंभ में ऐसी रजिस्ट्री पर गवाही दे दी जिस पर विवाद होना लाजिमी है |
मामला तब खुला जब मायावती के निजी सचिव ने, पूर्व मुख्यमंत्री का नाम दर्ज कराने के लिए लखनऊ नगर निगम में 9 मार्च को 2012 को अर्जी दी जिसकी फीस 25 हज़ार रूपये भी खुद मायावती ने जमा कराये जिसके बाद इस बंगले का दाखिल ख़ारिज होना था जो , अर्जी दी गई उके फार्म पर मायावती की फोटो भी लगी हुई थी | 2 महीनो तक इस अर्जी पर नगर निगम ने कोई भी कारवाई नहीं की तब तक सूबे में सपा ने बसपा को बेदखल कर , सत्ता पर कब्ज़ा जमा लिया उसके बाद ये मामला खटाई में चला गया |
विवाद की शुरुआत –
इस बंगले में खरीद फ़रोख्त में कहाँ- कहाँ धांधली हुई, ये बंगले के लीज पेपर को देखकर पता चलता है| जब इस बंगले की रजिस्ट्री हुई तो बंगला खरीदने वाली मुख्यमंत्री मायावती को अपनी सत्ता होने का दंभ था , या फिर दुबारा वापस सत्ता पाने का गुरुर क्योकि जबतक वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठी रही प्रदेश के किसी विभाग की इतनी हिम्मत और हैसियत नहीं थी, की मुख्यमंत्री के किसी काम को रोक सके| पर सत्ता बदलते ही नगर निगम ने शंका के आधार पर इस बंगले की दाखिल ख़ारिज पर रोक लगा दी की ये बंगला सहकारी बैंक के नाम रजिस्टर्ड है इस वजह से इसकी रजिस्ट्री नहीं हो सकती| वैसे भी बंगला खुद पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने खरीदा था, इस वजह से नगर निगम के अधिकारियो ने इस मामले में फूंक फूंक कर कदम रखा |
सतीश चन्द्र मिश्र की भूमिका-
मायावती द्वारा खरीदे गए इस बंगले की रजिस्ट्री के समय गवाही देने वालो में प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता और कानून के जानकार सतीश चन्द्र मिश्र की भूमिका भी संदेह पैदा करती है | कानून की इतनी अच्छी जानकारी रखने के बावजूद सतीश चन्द्र मिश्र ने बिना पेपरों के जाँच किये बिना इस बंगले की खरीद फ़रोख्त में गवाही तो नहीं दी होगी, और अगर उन्होंने जाँच के बाद गवाही के पेपरों पर साइन किये तो इस जमीन की खरीद फरोख्त पर की गई धांधली में वो भी शामिल है| आखिर सतीश मिश्र की ऐसी क्या मज़बूरी थी, की उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को इस बंगले को खरीदने की सलाह दी |
वही मायावती के भाई ने जिस पावर आफ एटार्नी के जरिये इस बंगले को मायावती को रजिस्टर्ड किया उस पावर आफ एटार्नी की भी जाँच होना लाजिमी है ताकि ये पता चले सके कि मायावती के इस जमीन के खरीदने से पहले इस जमीन का सौदा कितने में हुआ था, क्योकि नगर निगम ने इसी आधार पर जमीन का दाखिल खारिज नहीं किया की जमीन सहकारी बैंक की है , इस वजह से इस जमीन के पेपरों की जाँच होनी चाहिए |
बहरहाल पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की मुश्किलें और बढती हुई नज़र आ रही है, साथ ही सरकारी दस्तावजो की जाँच ही इस खरीद फरोख्त में हुई धांधली का पता लगा सकती है| वैसे भी सूबे में सत्ता बदल चुकी है , सपा सरकार लगातार विभागों में हुए घोटालो की जाँच के आदेश दे रही है | सरकार का इस मामले में क्या रुख होगा ये दस्तावेजो की जाँच के बाद पता चलेगा |