फर्रुखाबाद: कछुआ और खरगोश की दौड़ में जीता कछुआ ही है| सबक कक्षा 1 का है जो जिन्दगी में मायने बदल सकता है| 1939 में लिखी गयी बच्चो के सबक की ये कहानी अन्तरिक्ष युग में भी प्रभावी है| फर्रुखाबाद नगरपालिका में अध्यक्ष पद के लिए अचानक दावेदार के रूप में सुर्ख़ियों में उभरे प्रांशु दत्त द्विवेदी 24 घंटे दौड़े और आखिर में दावेदारी वापस ले ली| चर्चा प्रांशु पर चुनाव न लड़ने के लिए बने दबाब की भी है| ये दबाब किसने बनाया और कहाँ से बन कर चला आने वाले दिनों में ये बात चौक से नालामछरट्टा तक ही नहीं पूरे नगर में चुनावी चर्चा के रूप में उभारना तय है जो की वोटो की गिनती के बाद ही जाकर ख़त्म होगी| प्रांशु ने संजीव परिया को ही चुनाव लड़ाने का मन बनाया है|
कल मंगलवार को अचानक अपनी माँ और पत्नी दिशा सिंह भदोरिया के नाम से नगरपालिका से नो ड्यूज निकलवाने के बाद मीडिया में खबर देना और रात भर चुनाव लड़ने न लड़ने की चर्चा करना इतना महत्वपूर्ण नहीं है| महत्वपूर्ण ये है की चुनाव लड़ना और न लड़ना के विषय तो नो ड्यूज लिए बिना भी चर्चा किया जा सकता था| एक बार मन बनाकर फिर वापस लौट आना संदेहों की नयी कहानिया गढ़ने के विषय बनेगे| कछुआ और खरगोश की दौड़ में खरगोश क्यूँ हारा इस पर किसी ने आज तक सवाल भले ही न खड़ा किया ही मगर राजनितिक रिश्तो के अलावा निजी रिश्तो से बने दबाब के सवाल जरुर खड़े होंगे|