वाह रे लक्ष्मण सिंह! उस्ताद को धोबी पाट ??

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फर्रुखाबाद: वाह रे सर्वोदयी लक्ष्मण सिंह- मान गए तुम्हारी हिम्मत और दिलेरी को। तुम तो यार उस्तादों के भी उस्ताद निकले। इसे कहते हैं शेर को सवा शेर- आमरण अनशन टूटा नहीं स्थगित हुआ है। अगर मांगों पर आश्वासन के अनुसार क्रियान्वयन नहीं हुआ तब फिर पांच जून से पुनः आमरण अनशन और आंदोलन!

अनशन और सविनय अवज्ञा आंदोलन का रास्ता हमको राष्ट्रपिता महात्मागांधी ने सिखाया। यही रास्ता अन्ना हजारे ने अपनाया। यही रास्ता यहां लक्ष्मण सिंह और उनके सहयोगी अपना रहे हैं। अपनी न्यायोचित मांगों और समस्याओं के समाधान के लिए इस प्रकार के आंदोलन लोकतंत्र में जनता का अधिकार है। परन्तु लोकतंत्र के कर्णधार कहे जाने वाले लोग इन लोकतांत्रिक बातों को पसंद नहीं करते। जरा सी कोई बात उन्हें अपने अहं और स्वार्थ के विरुद्व जाते दिखाई पड़ेगी सीधे हमला बोल देंगे। बहुत बड़े तीसमार खां बनते हो चुनाव लड़कर देख लो आटा दाल का भाव मालूम पड़ जाएगा।

अब इन माननीयों को कौन समझाये कि भैया नीति न्याय सादगी और ईमानदारी की जिन्दगी जीने के लिए अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार, अनियमितताओं के विरुद्व शांतिपूर्ण अहिंसक लड़ाई लड़ने के लिए किसी चुनाव लड़ने की आवश्यकता और अनिवार्यता नहीं है। उसके लिए केवल दृढ़ इच्छा शक्ति और मनोवल ही चाहिए। राष्ट्रपिता महात्मागांधी कभी चुनाव नहीं लड़े। परन्तु उनकी बुलंदियों को सदियों तक कोई नहीं छू पाएगा।

लक्ष्मण सिंह का अनशन टूटा नहीं स्थगन की लक्ष्मण रेखा में बंध गया पांच जून तक के लिए। देखते हैं आगे क्या होता है। आमरण अनशन के दौरान लक्ष्मण सिंह को आत्म निरीक्षण का पर्याप्त समय मिला होगा। उन्होंने अपने आपसे निश्चय ही संवाद किया होगा। अगर ऐसा न होता तब वह माननीय को अपने धरना स्थल पर फटकने भी न देने की चुनौती पूर्ण बात नहीं करते। यह वही माननीय हैं जिन्हें लोगों का शेर चीता एम.एल.ए., एम.एल.सी. बनाने का झांसा देकर लंबा चूना लगाने की पुरानी आदत है। राज्य सभा की मेंबरी सदैव इनकी जेब में रहती है। इनके चंगू मंगू पढ़े लिखे समझदार कहे जाने वाले लोग माननीय की इसी अदा पर फिदा होकर इन्हें उस्ताद कहते हैं। परन्तु लक्ष्मण सिंह ने ऐसा धोबी पाट मारा कि उस्ताद की सारी उस्तादी धरी की धरी रह गई। यही हाल हमारे इन कथित माननीय का है। इन्हें कभी कोई आइना दिखाता नहीं, नतीजतन यह सारे गुनाह करके भी बम-बम रहते हैं। परन्तु लक्ष्मण सिंह ने इस बार इन्हें आईना दिखाने का काबिले तारीफ काम किया है।

परन्तु भैया लक्ष्मण सिंह! यह आईना दिखाने का काम बहुत ही जोखिम भरा है। मन में जरा भी कोई खोट आया या स्वार्थ की हल्की सी भी हिलोर मन में आई, तो लोग आपके हाथ से आईना छीन कर आपको ही दिखाने लगेंगे। उम्मीद है युवा सर्वोदयी के सामने ऐसी स्थिति कभी नहीं आएगी। अगर आई भी तब फिर आपको आईना दिखाने में लोग कंजूसी नहीं करेंगे।

नानक नन्हें हुइ रहो जैसी नन्हीं दूब,
बड़े-बड़े झर जायेंगे, दूब खूब की खूब।

सतीश दीक्षित
एडवोकेट