बेसिक शिक्षा के बेशर्म अधिकारी और मास्टरों ने बच्चो से मांगी घूस, डीएम को शिकायत

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जब थे बेरोजगार नारे खूब लगाते थे,
भ्रष्टाचार दूर करने की दिन भर कसमे खाते थे|
जब से मिली है नौकरी रिश्वत बिना न रोटी खाते है,
भिखमंगे बन गए मास्टर बच्चो से ही घूस मांगते है|
फर्रुखाबाद: जनपद में बेसिक शिक्षा के हालात कुछ ऐसे ही हैं| लगभग 8 हजार मास्टरों, शिक्षा मित्रो, सहायको, अफसरों, बाबुओ और चपरासी वाले इस विभाग के 95 प्रतिशत वेतनभोगी गरीब जरूरतमंद नौनिहालों के हिस्से को लूटने में ही लगा है| कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदारी तो इनके जैसे खून से गायब हो गयी है तो आने वाली पौध को ये किस शिक्षा से सिंचित कर रहे होंगे| मास्टर तय मानको के अनुसार घंटो की बच्चो को शिक्षा नहीं दे रहा| उन पर निगरानी करने वाले मास्टरों की इस चोरी में अपना हिस्सा वसूल रहा| और जिले में जिस बेसिक शिक्षा अधिकारी के कंधो पर सब जिम्मेदारी है वो चार आँखों से बेशर्म बगुला बना इस बात में मशगूल है कि कहीं भ्रष्टाचार में कोई चूक तो नहीं हो रही| हर रोज कोई न कोई खबर किसी न किसी मीडिया पर छप रही है| मगर इस विभाग के किसी भी कर्मी को कोई शर्म नहीं|

हद तो तब हो गयी जब केंद्र सरकार की इंस्पायर अवार्ड योजना के तहत जिले में चयनित बच्चो को मिलने वाले 5000/- वजीफे की चेक के लिए राजेपुर के शिक्षक विनोद पाठक ने बच्चो से चेक के बदले अग्रिम 2000 रुपये की घूस वसूल ली| जब बच्चो के मान बाप ने इसका विरोध किया तो नासमझ ग्रामीणों को चेक की मियाद ख़त्म होने का भय दिखाया और ये भी बताया कि खंड शिक्षा अधिकारी प्रवीण शुक्ल के निर्देशों पर ये सब हो रहा है| आखिरकार ग्रामीणों को अपने बच्चो की बजीफे की चेक के लिए 2000/- देने पड़े तब कहीं जाकर 5000/- की चेक मिली| ग्रामीणों ने सोचा कि चलो 3000/- ही बचे|

राजेपुर ब्लाक के तुर्कहटा गाँव के विजय बहादुर और गाँव अहिलामई के सोहन सिंह ने अपने बच्चो की वजीफे की चेक के बदले घूस लिए जाने की शिकायत जिलाधिकारी मुथु कुमार स्वामी के कार्यालय में हलफनामे के साथ दर्ज करायी है| एक तो विनोद कुमार पाठक स्कूल में पढ़ाने नहीं जाते और दूसरे खंड शिक्षा अधिकारी प्रवीण शुक्ल के घूस वसूली अमीन की तरह काम कर रहे है|

कडुआ सच ये है जनपद में लगभग 150 शिक्षक सहायक ब्लाक समन्वयक, न्याय पंचायत समन्वयक और भवन प्रभारी है स्कूल में बच्चो को पढ़ाने नहीं जाते| लगभग 215 शिक्षक/शिक्षिकाए निरंतर छुट्टी पर रहते है| लगभग 125 शिक्षक परमानेंट गायब रहकर वेतन पा रहे है इनमे से कई सत्ताधारी दल के नेताओ के और अधिकारिओ के रिश्तेदार है और ज्यादातर विभाग के अधिकारिओ को अपने वेतन का आंशिक भुगतान घूस के रूप में करके ये काम कर रहे है| जिले में लगभग 5 प्रतिशत स्कूल बंद रहते है| कई शिक्षिकाए फर्जी प्रसूति अवकाश पर हैं| लगभग 2 दर्जन मास्टर नेतागिरी में मशगूल रहते है| और लगभग 50 मास्टर निलंबित है जो अपने घर के नजदीक स्कूल में अटैच होकर मौज मार रहे है| इस सम्बन्ध में जब विनोद पाण्डेय से जे एन आई ने उन पर लगे आरोपों के बारे में पुछा तो उन्होंने कहा की वे तो बच्चो को जानते तक नहीं इसकी जाँच करा ली जाये| वहीँ खंड शिक्षा अधिकारी प्रवीण शुक्ल का कहना है आरोप तो लगते ही रहते है जाँच करा ली जाये| अब दोनों लोग जाँच पर इतना बल क्यूँ दे रहे है इसमें भी क्या कोई राज है?

दरअसल में बेसिक शिक्षा में संगठित भ्रष्टाचार (अपराध) हो रहा है| संगठित अपराध के कई फायदे होते है जाँच भी वही करेगा जो अपने कुनबे का है| राज राज ही रहेगा| शिकायत करने वाला ही मरेगा| नजर डाले एक ऐसे ही संगठित भ्रष्टाचार के फायदे के–

आज के अखवार में,
निकला है एक विज्ञापन,
संगठित भ्रष्टाचार में शामिल हों,
जम कर रिश्वत खाएं,
विदेश यात्रा पर जाएँ,
पसंदीदा जगह पर पोस्टिंग,
समय से पहले प्रमोशन,
अच्छे अफसरों में गिनती,
पड़ोसी आदर से नाम लें,
रिश्तेदार नजरें झुका कर बात करें,
कोई डर नहीं, कोई खतरा नहीं,
सीवीसी, पुलिस, अदालत, सरकार,
सब मदद करने को तैयार,
सावधान,
अकेला भ्रष्टाचारी मार खाता है,
संगठित भ्रष्टाचारी पूजा जाता है.