करोड़ों के भूमि घोटाले मुख्यमंत्री ने दिए जांच के आदेश

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फर्रुखाबाद: एसडीएम द्वारा चहेते लेखपालों के संस्तुति पत्र पर करोडों रुपए की 155 बीघा सरकारी तथा 25 बीघा निजी जमीन तक रातोंरात हड़प ली गईं। सपा के वरिष्ठ नेता एवं बंधुआ मजदूर उन्मूलन सलाहकार समिति के सदस्य जियाउद्दीन की शिकायत पर मुख्यमंत्री ने इस घोटाले की जांच के आदेश भी दे दिए हैं। अब चूंकि डीएम व एसडीएम दोनों का ही स्थानांतरण हो गया है। नये डायरेक्ट आईएएस डीएम के आने पर इन घोटालों की पर्तें खुलने की उम्मीद बढ़ गयी है।

शिकायत में तहसील सदर क्षेत्र में हुए जमीन घोटाले की शिकायत प्रमाणों समेत मुख्यमंत्री को सौंपी और जांच कराने तथा दोषियों को दंडित करने की मांग की गयी थी।
मुख्यमंत्री को सौंपे गये शिकायती पत्र में बताया गया कि ग्राम सातनपुर में साढ़े सात बीघा भूमि जो गाटा संख्या ४७९ श्रेणी तीन के तहत दर्ज है। इस भूमि को हड़पने के लिये शेर सिंह तथा लाल सिंह ने राजस्वकर्मियों से साठगांठ करके अपने नाम दर्ज करा लिया। जबकि श्रेणी तीन में दर्ज भूमि ग्राम सभा या नगर पालिका की संपत्ति होती है। इसका खुलासा होने पर २८.फरवरी २००६ को तत्कालीन उपजिलाधिकारी ने उक्त भूमि से काश्तकारों के नाम खारिज करके ग्राम समाज के नाम श्रेणी ६-१ तालाब दर्ज करने का आदेश दिया था। लेकिन २३ नवंबर २०११ को उप जिलाधिकारी सदर एके लाल ने अभिलेखों में हेरफेर करके उक्त तालाब की भूमि को संक्रमण भूमिधर घोषित कर दिया। जिससे उक्त करोड़ों रुपये की भूमि काश्तकारों की मलकियत बन गई।
परगना पहाड़ा क्षेत्र के ग्राम अल्लाहदादपुर के गाटा संख्या २४१ जिसका क्षेत्रफल लगभग डेढ़ बीघा है जो पहले नवीन पर्ती के रूप में दर्ज थी, इस भूमि को वर्ष २००३ से २००९ की खतौनी में तत्कालीन लेखपाल गंगाशरण ने बिना किसी सक्षम अधिकारी के आदेश के पहलवान सिंह पुत्र ज्ञान सिंह के नाम फर्जी ढंग से दर्ज करके अनुचित लाभ पहुंचाया। इस मामले का खुलासा होने पर तहसीलदार ने २६ नवंबर ११ तथा १२ दिसंबर १२ को उप जिलाधिकारी को आख्या भेजकर उक्त भूमि को पुन: ग्राम समाज के नाम दर्ज करने तथा लेखपाल गंगाशरण के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की संस्तुति की। इस तथ्य को तहसीलदार ने जन सूचना अधिकार के तहत दी गई सूचना में स्वीकार किया। लेकिन तहसीलदार द्वारा दो बार संस्तुति भेजे जाने के बाद भी उप जिलाधिकारी ए के लाल ने कोई कार्रवाई नहीं की।
मुख्यमंत्री को सौंपे गये शिकायती पत्र में बताया गया कि ग्राम सकवाई परगना मोहम्मदाबाद में हरमुख सिंह वर्ष २००३ से २००८ तक लेखपाल के रूप में कार्यरत रहे। इस दौरान उन्होंने ग्राम समाज की भूमि गाटा संख्या २१८५ रकवा लगभग २५ बीघा को बिना किसी आदेश के सुशीला देवी पुत्री वृंदावन के नाम श्रेणी १ क संक्रमणिय भूमिधर में दर्ज कर दिया। बाद में लेखपाल हरमुख सिंह ने १९ मई २००५ को सुशीला को मृतक दर्शाकर विरासत अपनी दूसरी पत्नी संजूपाल पुत्री सियाराम निवासी बेबर रोड भोलेपुर फतेहगढ़ के नाम दर्ज कर दिया। इसी प्रकार हरमुख सिंह ने साल २००८ में ग्राम समाज की भूमि गाटा संख्या ९८९ रकवा लगभग १९ बीघा व गाटा संख्या १७४३ रकवा १९ बीघा को बिना किसी आदेश के अपने नजदीकी रिस्तेदार सीमा देवी पुत्री इंद्रपाल सिंह निवासी विधूना के नाम दर्ज कर दिया। हरमुख सिंह ने सकवाई में तैनात रहते जैन समुदाय के कुंवर लाल पुत्र बच्चन लाल को मृतक दिखाकर विरासत सुधारानी पुत्री सियाराम निवासी भोलेपुर फतेहगढ़ के नाम दर्ज करके लगभग २४ बीघा कृषि भूमि को अपनी पत्नी के नाम दर्ज कर दिया। बता दें कि सुधारानी तथा संजू पाल एक ही महिला का अलग-अलग नाम है जो कि लेखपाल हरमुख सिंह की दूसरी पत्नी है। इस प्रकार लेखपाल हरमुख सिंह ने तीन बार में लगभग ५२ बीघा कृषि भूमि अपनी पत्नी तथा नजदीकी रिस्तदारों के नाम दर्ज कर ली। यह कृषि भूमि इटावा बरेली मुख्य मार्ग पर स्थित है जिसकी बाजारू कीमत इस समय तीन से चार करोड़ रुपये है।
हदें तो तब लांघ गई जब इस भूमि में से गाटा संख्या २१८५ रकवा २५ बीघा की निजी जमीन की बिक्री सीमा देवी को कर दी, जिसमें हरमुख सिंह ने स्वयं गवाही की है। भूमि घोटाले का खुलासा होने पर तहसीलदार ने हरमुख सिंह के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई के लिये उप जिलाधिकारी को लिखा। इस मामले में ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के हस्तक्षेप के बाद लेखपाल हरमुख सिंह को निलंबित कर दिया गया तथा जांच का काम नायब तहसीलदार अनिल तिवारी को सौंपा गया। नायब तहसीलदार ने लेखपाल को फर्जी इंदराज का दोषी मानते हुये आरोप पत्र १४ सितंबर ११ को हरमुख सिंह को सौंप दिया। जबकि इसी दिन हरमुख सिंह के एक प्रार्थना पत्र पर उप जिलाधिकारी एके लाल ने जांच का काम अनिल तिवारी से वापस लेकर तत्कालीन तहसीलदार मोहन सिंह को सौंप दिया। तहसीलदार ने भी इस मामले में तकनीकी कमी को आधार बनाते हुए लेखपाल को बचाने का प्रयास किया। इसी दौरान उप जिलाधिकारी ए के लाल ने लेखपाल हरमुख सिंह को सवेतन बहाल कर दिया। जबकि इस क्षेत्र में तैनात लेखपाल रामलखन पांडे का इस प्रकरण से कोई लेना देना नहीं था लेकिन एसडीएम ने उन्हें निलंबित कर दिया। फिलहाल रामलखन को अब अवैतनिक बहाल किया गया है। उधर ग्राम मौधा में एक ही परिवार के सात व्यक्तियों की लगभग ८८ बीघा भूमि का आनन फानन में अमल दरामद करा दिया गया जबकि अधिवक्ताओं द्वारा विरोध किये जाने पर अमल दरामद का आदेश स्थगित कर दिया गया। जमीन घोटाले के इस पूरे मामले में लेखपालों को सह देते हुए एसडीएम ने सारे सारी हदें पार कर दीं। चहेते लेखपालों के प्रार्थना पत्र पर धड़ाधड़ आदेश पारित करते हुए उन्होंने ग्राम समाज की जमीन का तो गोलमाल किया ही, कुछ लोगों की भूमिधरी जमीनों को भी अभिलेखों में हेराफेरी कर करोडों रूपए की चपत लगा दी।
मुख्यमंत्री को भेजे गए शिकायती पत्र में सपा नेता ने कहा कि उप जिलाधिकारी एके लाल करोड़ों की भूमि घोटाला करने वाले लेखपाल को बचाने के लिये तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। आरोप है कि इसके पीछे एके लाल के निजी स्वार्थ हैं। ऐसा इसलिए भी क्योंकि एसडीएम ही सदर तहसील में सबसे उच्च पदस्‍थ अधिकारी हैं और सरकारी जमीनों में नाम इधर से उधर होने के जिम्मेदार भी वही हैं। आरोप है कि एसडीएम ने भूमि घोटाले का खुलासा करने वाले लेखपाल रामलखन पाण्डेय को दंडित किया गया जबकि अपने चहेते लेखपालों को दोषी सिद्ध होने के बावजूद सह देते गए। सपा नेता जियाउद्दीन ने बताया कि मुख्यमंत्री ने इस मामले को गंभीरता से लेकर जांच के आदेश दिये हैं।